Thursday, October 31, 2013

अन्न और मन|

खान पान का मनुष्य के रहन सहन, स्वास्थ्य, आचार विचार और व्यवहार पर बहुत प्रभाव पड़ता है| खान पान के अनुसार ही मनुष्य के अन्दर गुण या अवगुण आते हैं| खाना दो प्रकार का होता है| राजसी खाना तथा तामसी खाना|

राजसी खाना खाने वाले व्यक्ति में रजो गुण तथा तामसी खाना खाने वाले व्यक्ति में तमो गुण का समावेश होता है| प्राय:राजसी भोजन खाने वाला व्यक्ति सहनशील, गंभीर और दूसरों के प्रति समर्पित होता है तथा तामसी भोजन खाने वाले व्यक्ति का स्वभाव अक्सर चिडचिडा और गुस्सेला होता है| कहते हैं कि:-

                      जैसा खाए अन्न वैसा हो मन | जैसा पीये पानी वैसी हो वाणी ||

उपरोक्त के विषय में एक घटना इस प्रकार है| एक साधू ने भ्रमण करते करते रात्रि होने पर किसी गाँव में पहुँच कर एक ग्रामीण का दरवाजा खटखटाया| और रात्रि विश्राम की इच्छा प्रकट की| उस व्यक्ति ने साधू को आदर सहित अपने घर पर ठहरा कर व् भोजन खिला कर घर के बरामदे में विश्राम हेतु बिस्तर बिछा दिया|

बिस्तर पर लेटने के बाद साधू ने देखा कि आँगन में एक बहुत सुन्दर हस्ट पुष्ट घोडा बंधा है| उसे देख कर साधू के मन में विचार आया कि मुझे पैदल चल कर गाँव दर गाँव जाने में कष्ट होता है| यदि यह घोडा मेरे  पास हो तो मैं शीघ्र ही दुसरे गाँव पहुंच सकता हूँ|

ऐसा विचार कर साधू आधी रात के बाद आँगन से घोडा चुरा कर आगे के लिए चल दिया| चलते चलते भोर हो गयी तो उसे दिशा मैदान अर्थात मल त्यागने की इच्छा हुई तो घोड़े को एक पेड़ से बांध दिया|

उपरोक्त कार्य से फारिग होने पर जब साधू घोड़े के पास आया तो अचानक से मन में विचार आया कि जिस व्यक्ति ने मुझे रात्रि विश्राम के लिए स्थान दिया मैंने उसी व्यक्ति का घोडा चुरा लिया| साधू मन ही मन बहुत दुखी हुआ कि मैंने यह घ्रणित कार्य क्यों किया?

ऐसा सोचने पर साधू ने वापिस आकर घोडा उस व्यक्ति को वापिस लोटा दिया| घोडा चुराने का पश्चाताप कर साधू ने उस व्यक्ति से पूछा कि तुम क्या काम करते हो? उस व्यक्ति ने कहा मैं चोरी करके अपने परिवार का पालन पोषण करता हूँ|

इस पर साधू ने कहा कि ठीक है मुझे मेरे मन के डामाडोल होने का उत्तर मिल गया| मैंने तुम्हारे यहाँ एक समय का अन्न जल खाया पिया है जिसके कारण मेरा मन डोल गया| और मेरे द्वारा यह घ्रणित कार्य होगया| भोर में मल त्यागने के बाद ही मेरी भ्रमित बुध्धि  ठीक हुयी|

अत: अन्न और मन का आपस में गहरा रिश्ता है| हमें अपने खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि हमारा तन और मन दोनों स्वस्थ रहें| 

Saturday, October 26, 2013

विधार्थी|

विधार्थी कैसा होना चाहिए? विधार्थी के अन्दर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कौन कौन सी विशेषताएं होनी चाहिए? इस विषय में कहा गया है कि:-
    
                                              काक चेष्टा वको ध्यानम श्वान निद्रा तदेव च |
                                              अल्प हारी  ग्रह त्यागी  विधार्थी  पंच लक्षणं   ||

विधार्थी के अंदर कव्वे जैसी लग्न, बगुले की तरह पढाई पर ध्यान तथा कुत्ते जैसी तुरंत जागने वाली नींद होनी चाहिए| विधार्थी को कम भोजन करना चाहिए ताकि आलस्य दूर रहे| ग्रह त्यागी अर्थात घर के शोर शराबे से दूर रहना चाहिए|

 पुराने समय में विधा ग्रहण करने हेतु बच्चों को गुरु के आश्रम में भेजते थे| आज भी बच्चों को गुरुकुल या होस्टल में शिक्षा प्राप्त करने हेतू भेजा जाता है| यदि बच्चे घर पर ही पढ़ते हैं तो उन्हें घर के एकान्त स्थान पर या अलग कमरे में ही पाठन कार्य करना चाहिए|

एक बार एक लड़का गुरु जी के पास पढने के लिए आया| गुरु जी ने देखा कि लड़का कुछ मंद बुध्धि है. परन्तु लड़के के अन्दर उपरोक्त सभी विशेषताएं थी| इसी कारण गुरु जी भी उस बालक का विशेष ध्यान रखते हुए एक ही बात को बार बार पूछने पर समझाते थे| गुरु जी उसे पढाने में गुस्से और प्यार दोनों का प्रयोग करते थे आहिस्ता आहिस्ता गुरु और शिष्य का परिश्रम रंग लाया, और उस मंद बुध्धि बालक ने उच्च शिक्षा प्राप्त की| जैसे करत करत अभ्यास के जड़ मत होत सुजान|

ऐसे बहुत उदाहरण हैं कि निर्धन व्यक्ति का बच्चा भी इन्ही गुणों के कारण अनेक कष्टों को सहता हुआ उच्च
  शिक्षा प्राप्त कर लेता है|

आज के इस आधुनिक युग में शिक्षा देना व् शिक्षा लेना दोनों ही कार्य का आधुनिकरण हो गया है  गुरु, शिष्य के सम्बन्ध बदल गए हैं गुरु अपने कर्तव्य को भूल कर अतिरिक्त समय में पढ़ा कर धन इकठ्ठा करते हैं, जबकि गुरु को अपने शिष्य को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए|

आज के इस आधुनिक युग में परिवार के द्वारा मिली सुविधाओं के कारण शिष्य के अन्दर भी आज के इस आधुनिक युग की हवा प्रवेश कर गयी है| माना कि हमें समय के साथ साथ चलना चाहिए परन्तु होता उल्टा है| बच्चे इस आधुनिक युग की हवा में चलते ही नहीं बल्कि दौड़ने लगते हैं जिसके कारण वह अपनी दशा और दिशा दोनों से भटक जाते हैं|

अत:अभिभावकों को भी अपने व्यस्त समय में से थोडा सा समय निकल कर अपने बच्चों के प्रति बहती इस आधुनिक हवा के साथ तालमेल बिठाकर उन्हें ऊँचे आदर्श और उच्च शिक्षा दिलाने हेतु उन पर नजर रखते हुए प्रयत्नशील रहना चाहिए|

Wednesday, October 23, 2013

सच्ची भक्ति|

हमारे देश में श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शिव् रात्रि का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है| भक्तगण लाखों की संख्या में भगवे वस्त्र पहन कर कुछ दिन पहले से ही गौमुख, हरिद्वार आदि स्थानों से कावड में गंगाजल भर कर लाते हैं| तथा अलग अलग स्थानों पर पैदल चल कर पहुँचते हैं|

जब कावडिये झुंडों के रूप में सड़क मार्ग से जयकारे लगाते हुए भगवे वस्त्र पहने हुए चलते हैं तो बहुत ही विहंगम द्रश्य दिखाई देता है|

एक बार माता पार्वती जी ने ऐसे द्रश्य को देख कर शिवजी जी से कहा कि देखो महाराज आपके भक्त कितने कष्ट उठाते हुए पैदल चल कर आपको प्रसन्न करने के लिए श्रद्धाभाव से जल चढाते हैं फिर भी आप चन्द भक्तों का ही क्यों कल्याण करते हो?

शिवजी जी ने कहा, हे देवी पार्वती ये सभी मेरे सच्चे भक्त नही हैं| आप इनका तरह तरह का नशा करने के बाद वार्तालाप तो सुनिए| जो व्यक्ति मुझे सच्चे मन से याद करते हैं मैं उनका कल्याण अवश्य करता हूँ|

पार्वती जी उनके इस उत्तर से संतुस्ट नहीं हुयी| तो शिव जी ने कहा कि ठीक है हम इनके बीच भेष बदल कर चलते हैं तब आपको स्वयं ही मालूम हो जायेगा|

उन्होंने स्वयं एक अपाहिज रुग्ण बूढ़े व्यक्ति का रूप धारण कर पार्वती जी से कहा कि तुम एक सुन्दर नवयुवती का रूप धारण कर मुझे अपने कन्धों पर बैठा कर इनके बीच चलो|

पार्वती जी एक सुन्दर नारी का रूप धारण कर शिवजी जी को अपने कन्धों पर बिठा कर कावड़ियों के बीच मार्ग में चलना शुरू किया तो कुछ कावड़ियों ने इन्हें देख कर तरह तरह की फब्तियां कसनी शुरू कर दी| कोई कहता कि तुम इतनी सुन्दर और जवान होकर इस बूढ़े खूसट के साथ अपना जीवन क्यों नष्ट कर रही हो, इसे छोड़ कर हमारे साथ चलो, और जीवन का आनंद लो, कोई कहता कि अरे बूढ़े तूने इस स्त्री का जीवन बर्बाद कर दिया है मर क्यों नहीं जाता| इसी प्रकार कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता|

ऐसी फब्तियों को सुन कर शिवजी जी ने पार्वती जी से कहा कि देखो मेरे कैसे कैसे भक्त हैं| उसी समय अचानक एक जवान कावड़िया कंधे पर कावड लिए उनके पास पहुंचा और कहने लगा कि बहन आप इन्हें कहाँ ले कर जा रही हो?

पार्वती जी ने कहा कि हे भाई मुझे एक साधू ने कहा है कि श्रावण मास की चतुर्दशी को अमुक स्थान पर शिवजी जी के मंदिर इनके हाथों से जल चढवा दोगी तो ये ठीक हो जायेंगे इसलिए मैं इनसे मंदिर में गंगाजल चढ़वाना चाहती हूँ| वह व्यक्ति कहने लगा बहन मैं आपकी मदद करना चाहता हूँ आप इन्हें मेरे कंधे पर बिठा दें तो मैं इन्हें मंदिर तक पहुंचा दूंगा|

पार्वती जी ने कहा कि भैया तुन्हारे कंधे पर तो पहले से ही कावड है आप इन्हें कंधे पर कैसे बिठाओगे? तब उसने कहा कि हे बहन मेरे से अधिक आपके पति के द्वारा शिवजी जी पर जल चढ़ाना अति आवश्यक है| मेरा क्या है मैं तो अपनी कावड अगले वर्ष भी चढ़ा लूँगा| यह कोई कुम्भ का मेला तो है नहीं जो बारह साल के बाद आएगा|

ऐसा कहकर उसने आग्रहपूर्वक कहा कि एक भाई के होते बहन कष्ट में हो तो भाई का कावड चढाने का कोई महत्व नहीं है|

उसकी ऐसी आग्रहपूर्वक और भावनाओं से भरी वाणी को सुनकर शिवजी जी ने पार्वती जी से कहा कि देखो पार्वती इस विशाल भीड़ में मेरा यह भी एक भक्त है| ऐसा कहकर शिवजी महाराज ने पार्वती जी के साथ उसे दर्शन देकर क्रतार्थ किया|

अलग अलग धर्म के साधू, संत, फ़कीर व् मुल्ला मोलवी भी हमें यही शिक्षा देते हैं कि मानव जीवन प्राप्त होने पर यदि मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब व् बीमार व्यक्तियों की सहायता करे और सत्य मार्ग पर चलते हुए जीवन व्यतीत करे तो यही भगवान की सच्ची भक्ति है|


 

Sunday, October 20, 2013

कुत्ते की शादी|

आज के आधुनिक समय में कुत्ते व् कुतिया की शादी भी होने लगी है| लंदन में दिनांक ०३ मई २०११ को एक महिला ने अपनी पालतू कुतिया की शादी पर लगभग २०,००० पोंढ (करीब १४ लाख रूपये )खर्च किये| जैसे एक हजार पोंढ दुल्हन की पोशाक पर, चार हजार पोंढ़ फूलों के गुलदस्ते गुब्बारे आदि सजावट की चीजों पर, कुछ दुल्हे के कपड़ों पर तथा लगभग अस्सी बारातियों की पार्टी पर खर्च किये|

इसी प्रकार दिनांक १३-७-२०१२ को  एक कुत्ते, कुतिया की शादी अमेरिका के न्यूयार्क शहर के सेंट्रल पार्क में संपन्न हुयी| जिसमे १,५८,१८७.२६ डालर ( ९५ लाख रूपये )खर्च हुए|

हमारे भारत देश में भी हाल ही में एक कुत्ते की शादी का किस्सा सामने आया. यह शादी अमृतसर में  ११ सितम्बर को हुई और हनीमून लंदन में मनाया गया. यह शादी इतने धूमधाम से मनाई गयी कि मीडिया ने भी इस किस्से को खूब उछाला|

शादी तो एक अतिश्योक्ति से कम नहीं है लेकिन कुत्तों पर अनेक प्रकार से धन लुटाया जाता है| कुत्तों को तरह तरह के शेम्पू से नहलाया जाता है ब्यूटी पार्लर के द्वारा मेकअप कराया जाता है| बाज़ार में भी कुत्तों के लिए अनेक प्रकार के  ब्रांडेड खाने  उपलब्ध है|

देहली की एक कालोनी में प्रियवदा शर्मा ने अपनी ओरिया नाम की कुत्तिया का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाया| उसकी चोबीस घंटे सेवा के लिए एक नोकरानी रक्खी हुयी है जो उसके सभी काम करती है| वह उसके लिए मांसाहारी भोजन भी तैयार करती है जबकि उनके घर में मांसाहारी भोजन नहीं खाते हैं|

हमारे देश के कुछ लोग विदेशों से विदेशी नस्ल के कुत्ते मंगाने पर बहुत धन खर्च करते हैं| जबकि दिनांक १५-४-२०१३ से हमारे देश में विदेशी नस्ल के कुत्ते मंगाने पर प्रतिबंध है|

हमारे देश में मध्यमवर्गीय व् निम्न श्रेणी के परिवारों का ब्रांडेड खाना, होटलों में जाना ब्यूटी पार्लर में मेकअप कराना एक सपना होता है|जबकि ये सभी सुविधाएँ कुत्तों को उपलब्ध हैं|

माना कि कुत्ता मनुष्य का एक अच्छा दोस्त है| वह एक वफादार नौकर की तरह निस्वार्थ भाव से अपने मालिक की रक्षा करता है| हमें भी हर प्रकार से उसके खानपान, रहन सहन तथा बीमार होने पर दवा का ध्यान रखना चाहिए| लेकिन हमें उस पर अपनी शानोशौकत दिखाने में इस प्रकार धन नहीं लुटाना चाहिए|

अन्त में मैं अपने देश के उन सभी कुत्ता प्रेमियों से अनुरोध करता हूँ कि वह कुत्ते को अपना वफादार साथी समझ कर उचित धन खर्च करें| अच्छा हो कि बचाए गए धन से दुधारू पशु पालने की व्यवस्था करें जिससे मेरे देश में फिर से घी दूध की नदियाँ बहने लगे और सभी हस्ट पुष्ट हों|

Thursday, October 17, 2013

चमड़े का जूता|

एक देश के राजा ने अपने मंत्रियों से अपनी प्रजा के सुख दुःख के विषय में पूछा| मंत्रियों ने अपने अपने हिसाब से बताया कि प्रजा ठीक प्रकार से जीवन व्यतीत कर रही है| राजा मंत्रियों की बातो से संतुस्ट नहीं हुए|

राजा ने विचार किया कि मुझे खुद प्रजा के बीच जा कर उनके बारे में जानना चाहिए| राजा भेष बदल कर अपने राज्य के गाँव गाँव और शहर शहर गए|

राजा ने देखा कि उसके राज्य में प्रत्येक व्यक्ति हंसी ख़ुशी के साथ रह रहा है प्रत्येक व्यक्ति के पास रहने, खाने और पहनने का उचित प्रबंध है| इसके साथ साथ राजा ने देखा कि लोग नंगे पैरों से सड़क पर घूमते हैं जिसके कारण सड़क पर पड़े छोटे छोटे कंकर पत्थर चुभने के कारण उनके पैरों में घाव हो जाते हैं| ऐसा देख कर राजा को बहुत दुःख हुआ|

राजा ने वापस आकर मंत्रियों को आदेश दिया कि राज्य की सभी सड़कों को चमड़े से ढक दिया जाये ताकि लोगों को नंगे पैर सड़क पर चलने से कोई घाव न हो|

राजा की बातें सुनकर सभी मंत्रियों ने मंत्रणा की| उन्होंने विचार किया कि राज्य की सभी सडकों को चमड़े से ढकने में राजकोष का पूरा धन खर्च करने पर भी यह कार्य पूर्ण नहीं होगा|

सभी मंत्री राजा के पास पहुंचे और राजकोष की स्तिथि से अवगत कराया| तभी एक वरिष्ठ मंत्री ने राजा से  निवेदन किया कि महाराज यदि राज्य के व्यक्तियों के पैरों पर चमड़ा चढवा दिया जाए तो लोगों के पैरों में जख्म भी नहीं होंगे और धन भी अधिक नहीं लगेगा| उसकी सलाह सबको अच्छी लगी और राजा के द्वारा आदेश जारी कर दिया गया|

ऐसा मानते हैं कि उसी समय से चमड़े के जूते पहनने का प्रचलन शुरू हुआ|

Wednesday, October 16, 2013

आँखों की शर्म|

उपरोक्त विषयक एक घटना इस प्रकार है| एक व्यक्ति परिवार सहित एक शहर में रहता था| उसका एक पुत्र बुरी संगत के कारण शराब पीने लगा|

एक दिन वह किसी होटल में बैठा शराब पी रहा था| उसके पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति ने उसे शराब पीते हुए देख लिया| वापस आ कर पडोसी ने उसके पिता जी से कहा| ऐसा सुन कर पिता जी को विश्वास नहीं हुआ, उन्होंने कहा कि मेरा बेटा शराब पी ही नहीं सकता तुमने किसी और को देखा होगा| तुम मेरे बेटे पर गलत दोष लगा रहे हो|

कुछ समय बाद फिर उस व्यक्ति ने उसी लड़के को किसी दुसरे होटल में शराब पीते देखा तो उसने वापस आ कर उसके पिता जी से कहा कि मैंने निश्चित रूप से तुम्हारे बेटे को ही होटल में शराब पीते हुए देखा है तो उसके पिता जी ने कहा कि देखो भाई जब तक मैं अपनी आँखों से न देख लूँ तब तक मुझे विश्वास नहीं होगा|

उनकी ऐसी बातें सुन कर वह व्यक्ति अपने को अपमानित समझ गुस्से से कहने लगा कि आँखों से देखकर तो विश्वास करोगे? पिता जी के हाँ कहने पर उसने कहा कि तुम्हारे बेटे को शराब पीते देखकर मैं तुम्हे फोन करूँगा मेरे बताये पते पर तुम्हे तुरंत पहुंचना होगा| ऐसा कह कर वह व्यक्ति चला गया

एक दिन फिर उस लड़के को एक होटल में शराब पीते देख कर उस व्यक्ति ने लड़के के पिता जी को सूचित कर अपने बताये पते पर बुला लिया|

लड़के ने अपने पिता जी को होटल में प्रवेश करते हुए देख लिया| उसने देखा कि उसका पडोसी उसके बारे में पिता जी को बता रहा है तो उसने तुरंत मेज पर रक्खी हुई माचिस को अपनी और पिता जी की आँखों के बीच इस प्रकार से लगायी कि दोनों की आंखे एक दुसरे से न टकराएँ और आँखों की शर्म बनी रहे|

पिता जी ने अपने पुत्र की भावनाओं को समझ कर उधर देखना बंद कर दिया| उसी समय उसके पडोसी ने कहा कि देखो उस मेज पर बैठा तुम्हारा बेटा शराब पी रहा है| इस पर तुरंत उसके पिता जी ने कहा कि उस मेज पर तो कोई शर्मदार व्यक्ति बैठा है जो हमें देखकर अपनी आँखों के आगे माचिस लगा कर अपने आप को छिपा रहा है इसका मतलब है कि अभी उसकी आँखों में शर्म बाकी है अब हमें चलना चाहिए|

अपने पिता जी की बातें सुनकर वह बहुत प्रभावित हुआ| इस घटना से उसकी आँखें शर्म से झुक गई और उसने शराब पीनी छोड़ दी|

Sunday, October 13, 2013

भय का भुत

मान्यता के अनुसार संसार में भुत प्रेत का अस्तित्व होता है| कभी कभी वह प्राणी को कष्ट भी देने लगते हैं| परन्तु कभी कभी किसी डर या भ्रान्तिवश भी एक साधारण सी घटना को व्यक्ति भुत समझ कर डर जाता है|

इस विषय में मैं एक घटना का वर्णन करता हूँ| एक व्यक्ति अपनी पत्नि व् बच्चों के साथ एक मकान में रहता था| एक दिन उस व्यक्ति का भाई अपने एक मोलवी मित्र के साथ उनके यहाँ आये और रात्रि विश्राम किया|

मध्य रात्रि में अचानक उसके भाई की तबियत ख़राब हो गयी| जिसके कारण वह जोर जोर से बडबड़ाने लगे| जोर से बडबडाने  के कारण परिवार के सभी सदस्य व् मोलवी जी भी जाग गए| मोलवी जी ने कहा कि इस मकान में कोई प्रेत आत्मा (भुत )निवास करती है जो इन्हे परेशान कर रही है| मैं उस भुत को अभी भगाता हूँ ऐसा कह कर मोलवी कुछ मन्त्र कहते हुए उनके ऊपर पानी के छींटे मारने लगा| कुछ समय पश्चात् उनका बडबडाना शांत हो गया और वह ठीक हो गए|

अगले दिन उनका भाई व् मोलवी तो अपने घर चले गए परन्तु वह और उसका परिवार भुत प्रेत के कारण बहुत डर डर कर रहने लगे, डर के कारण उनका दिन का चैन और रात की नींद ख़राब हो गयी|

एक रात वह परिवार सहित मकान के बरामदे में सोने के लिए लेटे थे कि अचानक बहुत तेज आंधी तूफ़ान आया, बिजली चली जाने से अँधेरा हो गया और हल्की हल्की बारिस होने लगी|

ऐसे वातावरण में उन्हें डर लग रहा था अचानक उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि आँगन की दीवार के पास कोई आदमी है जो शनै शनै बडा होने लगा तो वह परिवार भुत समझ कर बहुत जोर जोर से चिल्लाने लगा| उसी समय बिजली आने से रौशनी हो गयी उन्होंने देखा कि दीवार पर हल्की हल्की बूंदे पड़ने के कारण एक आक्रति सी बन रही थी जो आहिस्ता आहिस्ता बड़ी होकर पूरी दीवार गीली हो गयी जिसे देखकर उनके मन से भुत का डर दूर हो गया|

कभी कभी मनुष्य डर के कारण भी भय के भुत का शिकार हो जाता है| वह परिवार पहले से ही भुत प्रेत के डर से ग्रसित था जिसके कारण दीवार पर पानी के फैलने को ही वह भुत प्रेत समझ बैठा और डर गया|  

Thursday, October 10, 2013

भूतों का त्यौहार|

भारत मे ही नहीं अपितु पुरे विश्व मे भूत प्रेतों पर विश्वास किया जाता है| अमेरिका जैसे विकसित देश मे भी हर वर्ष इकतीस अक्तूबर को हेलोवीन के नाम से भूतों से सम्बन्धित एक त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है|

प्रत्येक अमेरिकन कुछ दिन पहले से ही अपने घरों के बाहर भूतों की मूर्तियाँ, मकड़ी का जाला, मकड़ी, नर कंकाल आदि लटकाते हैं| तरह तरह की डरावनी आकर्तियों को अपने बाहर के पेड़ों पर लटकाकर उनके पीछे लाइट जलाते हैं,जिन्हें देख कर डर भी लगता है| घर के द्वार के दोनों ओर पम्पकीन (कद्धू) सजा कर रखते हैं| जिन मकानों के बाहर सीडियां होतीं हैं उनकी पेडियों पर भी पम्पकीन पर तरह  तरह की डरावनी आक्रतियाँ बना कर रखते हैं|

यह त्यौहार घर पर ही नहीं बल्कि स्कूलों मे भी एक उत्सव के रूप में मनाते है| बच्चें स्कूल  में अनेकों प्रकार की  डरावनी भूतों  वाली ड्रेस पहन कर जाते हैं| इस दिन ऑफिस और मॉल को भी भूतों की डरावनी तस्वीरें लगा कर सजाया जाता है|

इस दिन बच्चें तरह तरह की डरावनी पोशाकें पहन कर घर घर जाते हैं| प्रत्येक घर से बच्चों को टाफी व् चाकलेट मिलती है| लोग परिवार सहित बच्चों को भूतों वाली ड्रेस में ही मॉल में घुमाने ले जाते है| इस प्रकार यह त्यौहार अमेरिका में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है|

भक्त की परीक्षा|

एक बार श्री कृष्ण जी से अर्जुन ने कहा कि इस संसार में मेरे समान आपका कोई भक्त नहीं है परन्तु कृष्ण जी जी ने कोई उत्तर नहीं दिया| इससे खीज कर अर्जुन इस बात को बार बार दोहराने लगे| अर्जुन के द्वारा बार बार ऐसा कहने पर कृष्ण जी ने कहा कि चलो कहीं दुसरे स्थान पर चल कर देखते है| ऐसा विचार कर दोनों ने साधू का भेष धारण कर राजा मोरध्वज के राज्य में प्रवेश किया|

राजा मोरध्वज एक सत्यपरायण और धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे| वह अपनी पत्नि व् एक पुत्र के साथ रहते थे| दोनों साधू उनके द्वार पर पहुंचे और अलख जगायी| राजा ने द्वार पर आ कर कहा कि महाराज भोजन तैयार है| साधू रूपी श्री कृष्ण जी ने कहा कि हम  ताजा और तुम्हारे द्वारा तैयार किया हुआ तामसी भोजन करेगें| राजा के द्वारा तामसी भोजन को मना करने पर दोनों साधू वापस जाने लगे| अतिथि देवो भव: ऐसा विचार कर राजा ने पूछा कि आप किस जीव का भोजन करेगें,तो साधू ने कहा कि जो जीव तुम्हे अधिक प्रिय हो|

राजा ने कहा मुझे मेरा घोडा अधिक प्रिय है तो साधू ने पुछा कि क्या तुम्हे घोडा अपने पुत्र से भी अधिक प्रिय है?इस पर राजा ने कहा कि वह तो मेरा पुत्र है| साधू ने पूछा कि क्या वह जीव नहीं है? राजा ने कहा कि वह जीव मेरी पत्नि को भी प्रिय है| साधू ने कहा कि उनसे पूछ लो वर्ना हम वापस चले जाते हैं|

राजा ने अपनी पत्नि व् पुत्र को बुला कर सब बातें बताई| इस पर पत्नि ने कहा कि महाराज मैं पूर्ण रूप से आपकी सहचरी हूँ| जैसा आप उचित समझे| पुत्र भी अपने माता पिता कि बातें सुन रहा था|

राजा ने पुत्र से पूछा| तो उसने कहा कि आप मेरे जन्मदाता है| मुझ पर आपका पूर्ण अधिकार है| यदि मेरा जीवन आपके कर्तव्य पालन में काम आ सके तो मेरा जीवन सफल होगा|

साधू बने श्री कृष्ण जी ने कहा महाराज बहुत जोर की भूख लगी है बातो  में समय नष्ट न करो| तुरंत आरे से अपने पुत्र कि गर्दन काट कर भोजन तैयार करो|

राजा ने जैसे ही आरे से अपने पुत्र कि गर्दन पर वार करना चाहा तो साधू बने श्री कृष्ण जी ने राजा का हाथ पकड़ लिया और अपने चतुर्भुजी रूप में राजा को दर्शन देकर कहा कि हम तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे| उनके इस रूप को देख कर राजा ने निवेदन किया कि हे प्रभो जैसी मेरी परीक्षा ली है ऐसी परीक्षा किसी और भक्त कि मत लेना
श्री कृष्ण जी ने एवमस्तु कहते हुए अर्जुन कि ओर देखा तो अर्जुन की आँखे शर्म से झुक गयी|



 

Tuesday, October 8, 2013

साम्प्रदायिकता|

आज हमारा देश साम्प्रदायिकता की आग में झुलस रहा है| समय समय पर देश के अलग अलग हिस्सों मे इस प्रकार कि घटनाएँ घटती रहती हैं परन्तु शासन  अपनी वोटों कि राजनीति के कारण अपनी आखें मुंदकर बैठा रहता है और यह आग विशाल रूप धारण कर लेती है|

मुज़फ्फरनगर जिले में फैला दंगा इसकी जीती जागती मिसाल है| इसकी आंच आसपास के जिलों में भी पहुंची| इस दंगे को भड़काने में शासन व् प्रशासन के द्वारा A for avoid, B for by-pass, C for confusion create, D for dismiss की नीति अपनाई गयी जिसके कारण यह आग शहर ही नहीं, गाँव, गाँव में फैलती चली गयी जिसमे अनेक निर्दोष व्यक्तियों की जाने चली गयी तथा अनेक घर भी फूंके गए|

यदि शासन व् प्रशासन दोनों मिलकर A for availability, B for Behavior,C for Confidence के साथ D for Dil से कार्य किया होता तो इतना बड़ा विकार न फैलता| अभी भी समय है कि शासन व् प्रशासन एक तरफ़ा कार्यवाही न करके निष्पक्ष भाव से कार्य करे जिससे व्यक्तियों में पुनः सोहार्द और प्रेम का भाव पनप सके|                                                          

Sunday, October 6, 2013

वस्तु की उपयोगिता|

एक बार भगवान बुद्ध अपने एक शिष्य के साथ दुसरे शिष्य के यहाँ पहुंचे| उन्होंने देखा कि उनका शिष्य बहुत पुराने कपडे पहने हुए है तो उन्होंने अपने दुसरे शिष्य से उसे नए कपडे पहनने हेतू दिला दिए और आगे चले
गए| कुछ समय बाद वापस लौटते हुए फिर भगवान बुद्ध अपने उसी शिष्य के घर पहुंचे|

उन्होंने शिष्य से प्रश्न किया कि तुमने पुराने वस्त्रों का क्या किया?शिष्य ने उत्तर दिया कि पुराने वश्त्र ओढने के काम आये|

बुद्ध जी ने प्रशन किया कि ओढने वाले वस्त्रों का क्या किया? उसने उत्तर दिया कि उनको फाड़ कर रसोई में चूल्हे से पतीले उतारने के काम लिया|

भगवान बुद्ध जी ने फिर प्रश्न किया:-रसोई के पुराने पतीले उतारने वाले वश्त्रों का क्या किया?उसने उत्तर दिया कि महाराज उन वस्त्रों से खाना बनाने के बाद रसोई को साफ करने के काम में प्रयोग किये|

उन्होंने फिर प्रश्न किया कि पुराने रसोई साफ करने वाले वस्त्रों का क्या किया?तो उसने कहा कि हे प्रभु वें वश्त्र तो फट कर तार तार हो गये थे इसलिए उन वस्त्रों की बत्ती बनाई है जो आपके सामने जले दीपक में लगी है|

अपने सभी प्रश्नों के उत्तर से भगवान बुद्ध बहुत खुश हुए और कहा कि संसार में कोई भी वस्तु खराब नहीं होती है|समयानुसार उस वस्तु की उपयोगिता बदल जाती है|



 

Friday, October 4, 2013

भोलेभाले व्यक्ति की समझदारी

बहुत पहले कि बात है एक गॉव मे चौपाल पर कुछ लोग बैठे हुक्का पी रहे थे| उनमे से एक आदमी कहने लगा कि राजा के दर्शन करने पर भगवान के दर्शन करने जैसा पुण्य मिलता है| ऐसा सुनकर वहां बैठे एक सीधे भोलेभाले व्यक्ति ने राजा के दर्शन करने के लिए शहर कि ओर प्रस्थान किया| शहर पहुँचने पर वह राजा से मिलने के लिये महल के अन्दर जाने लगा तो गेट पर खड़े दरबान ने उसे रोका| वह अन्दर जाने कि जिद करते हुए कहने लगा कि यदि तुमने मुझे अन्दर न जाने दिया तो मैं यहीं पर अपने प्राण त्याग दूंगा| यह सुचना राजा तक पहुंचाई गयी राजा ने उसे अन्दर बुला लिया|

राजा तक पहुँचने के लिए सात दरवाजे पार करके जाना होता था| सातों दरवाजों पर एक-एक दरबान था| वह सातों दरवाजे पार कर अन्दर पहुंचा| राजा ने आने का कारण पूछा? उस व्यक्ति ने कहा, आपके दर्शन करने पर मुझे भगवान के दर्शन करने का पुन्य मिल गया यह कह कर वह बाहर चला गया|

राजा ने उसके भोलेपन पर बहुत प्रसन्न होकर ईनाम देने की घोषणा की और एक कर्मचारी को उसे बुलाने हेतु भेजा| कर्मचारी ने बाहर जाकर उस आदमी से कहा कि तुम्हे राजा ने ईनाम देने के लिए बुलाया है ऐसा सुनकर वह वापस महल में जाने लगा तो पहले दरबान ने कहा, तुम्हे ईनाम मिलेगा हमें क्या दोगे| उसने कहा आधा तुम बाँट लेना प्रत्येक दरवाजे के दरबान के द्वारा ईनाम में हिस्सा मांगने पर आधा बाँट लेने का वायदा किया साथ में चल रहे कर्मचारी ने कहा मुझे क्या दोगे उसने कहा शेष तुम ले लेना|

दरबार में राजा ने कहा हम तुमसे  बहुत खुश हैं जो चाहो मांग लो| उसने कहा जो मैंने माँगा वही दोगे ऐसा वचन दो तो मांगू? राजा ने उसे वचन दे दिया| उसने सोचविचार कर कहा| महाराज मुझे १२८ कोड़े लगाये जाएँ| राजा ने कहा कि अरे मुर्ख हमने सजा नहीं ईनाम मागने के लिए कहा है| उसने कहा मुझे तो कोड़े ही चाहिए देना हो तो दो नहीं तो वचन हार जाओ|

मजबूर होकर राजा ने कोड़े लगाने की इजाजत दे दी| तब उसने कहा रुको मेरे हिस्सेदारों को भी ईनाम मिलना चाहिए| उसने किये गए वायदे के अनुसार पहले दरबान को बुला कर ६४, दुसरे को ३२, तीसरे को १६, चोथे को ८, पांचवे को ४, छठे को २, तथा सातवें को १ कोड़ा लगवाया| शेष बचे एक कोड़े को उसने बाहर से बुला कर लाने वाले कर्मचारी को लगवा दिया| राजा ने उसके होधियारी भरे भोलेपन से अति प्रसन्न होकर कुछ अशर्फियाँ देकर विदा किया|  

Thursday, October 3, 2013

विश्वास,अन्धविश्वास

हम अपने जीवन में अनेक प्रकार की अवधारणाओं के साथ जीवन व्यतीत करते हैं| हम किसी भी कार्य मे कामयाब होने के लिए अनेक प्रकार की मन्नतें मांगते हैं कि अमुक कार्य पूरा होने परभगवान के मंदिर मे प्रसाद,चदर,दान आदि करूँगा.कार्य पूर्ण होने पर ऐसा करते भी हैं| परन्तु हमने कभी यह विचार नहीं किया कि  ऐसा क्यों होताहै इसविषय मे मेराविचारहै कि मन्नत मांगने के बाद हमारा आत्मविश्वास बढ़ जाता है और सोचा हुआ कार्य पुरे विश्वास से परिश्रम करने पर पूर्ण हो जाता है |प्राय देखने मे आता है कि हम अपने व्यापर मे भगवान को पार्टनर मान कर( जैसे क्रिष्णा ज्वेलर्स ,दुर्गा औतोपार्ट  ,साईं जनरल स्टोर ,शिवा मेडिकल स्टोर आदि )व्यापर करते है हम भगवान को पार्टनर मानते हुए पूर्ण परिश्रम करते है और लाभान्वित होते है परन्तु ऐसा भी देखने मे आता है कि भगवान को पार्टनर बनाने पर भी व्यापर मे हानि हो जाती है हम यह सोच कर कि भगवान हमारे पार्टनर है लाभ तो होगा ही परिश्रम नहीं करते और नुकसान होने पर भगवान  को दोष देते हैं|
       भगवान ,अल्लाह,वाहे गुरु ,गोद हमारे अन्दर ही हैं| कहते हैं कि आत्मा दो परमात्मा | मंदिर ,मस्जिद ,चर्च गुरुद्वारा वें पवित्र स्थान हैं जहाँ कुछ समय व्यतीत करने पर हम अपने मन की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं |मंदिर मे दिए गए दान से मंदिर में होने वाले खर्चों जैसे प्रसाद ,बिजली व् पानी का बिल ,सफाई ,साज सज्जा तथा पुजारी का वेतन आदि की पूर्ति होती है| भगवान ही तो हमें सबकुछ देते हैं यदि हम किसी धार्मिक कार्य मे दान करते हैं या किसी की सहायता करते हैं तो हमें घमंड नहीं करना चाहिए |