Sunday, March 30, 2014

स्वार्थी न बनों|

आज समाज में हर व्यक्ति केवल अपने ही विषय में सोचता है| हम केवल अपने ही उत्थान के लिए हर प्रकार के अच्छे और बुरे हथकंडों को अपना कर आगे बढ़ना  चाहते हैं| जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए|

हर व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा, और मकान है| यदि ईमानदारी से शान्ति पूर्वक प्रयास करने पर हमारी आवश्यकताएं पूरी हो जाएँ तो हमें और अधिक की चाह में पड़ कर अनैतिक तरीकों को प्रयोग करके अपने मन को अशांत नहीं करना चाहिए|

भविष्य में आगे बढ़ने की इच्छा होना अच्छी बात है| परन्तु आज हम स्वार्थी बन कर अच्छे और बुरे का विचार छोड़ कर दूसरों के माल को  हड़पने में भी नहीं हिचकते| मैं इस विषय से जुडी एक घटना का वर्णन करता हूँ|

एक गाँव में लच्छु और नत्थू नाम के दो भाई रहते थे| बडा भाई लच्छु कुछ स्वार्थी किस्म का व्यक्ति था जबकि नत्थू बहुत ही सीधा सादा था| उनके पास संपत्ति के नाम पर एक झोपड़ी, एक गाय, एक चारपाई और एक कम्बल था| लच्छु दिन में मजदूरी करता था और नत्थू गाय को जंगल में घास चराने के लिए ले जाता था| रात में दोनों भाई खाना खा कर व् दूध पीकर एक ही चारपाई पर कम्बल ओढ़ कर सो जाते थे| इस प्रकार दोनों भाई आराम से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे|

एक दिन लच्छु ने स्वार्थ से परिपूर्ण होकर मन में विचार किया कि मजदूरी करके मैं लाता हूँ| गाय का दूध मैं निकालता हूँ| नत्थू तो दिन भर गाय चराने के नाम पर जंगल में भी आराम करता है| मन में ऐसा विचार आने पर लच्छु ने नत्थू से कहा कि हम कब तक इकट्ठे रहेंगे इसलिए हमें प्रेम से बंटवारा करके अलग हो जाना चाहिए|

नत्थू की स्वीक्रति के बाद लच्छु ने कहा कि यदि मैं बंटवारा कर दूँ तो क्या तुम्हे मंजूर होगा इस पर नत्थू ने कहा भैया तुम जो करोगे वह ठीक ही होगा| परन्तु लच्छु पूरी तरह से स्वार्थी बन चुका था|

लच्छु ने कहा कि झोपडी का बाहरी हिस्सा तुम्हारा होगा  अन्दर का हिस्सा मेरा, गाय का अगला हिस्सा तुम्हारा और पीछे का हिस्सा मेरा होगा| दिन में चारपाई और कम्बल तुम्हारा और रात में मेरा होगा| नत्थू अपने बड़े भाई की बहुत इज्जत करता था और कभी भी उनका विरोध नहीं करता था|

अगले दिन से बंटवारे के अनुसार ही कार्यवाही शुरू होगई| परन्तु इस बंटवारे से नत्थू बहुत ही परेशान रहने लगा| दिन में गाय को जंगल में चराने के बाद हार थक कर घर आने पर बिना चारपाई और कम्बल के तमाम रात झोपड़ी  के बाहर बिताता था| नींद पूरी न होने के कारण वह थका थका सा रहने लगा|

एक दिन जंगल में दुसरे चरवाहे ने उससे पुच्छा कि क्या बात है आजकल तुम बहुत परेशान रहते हो? इस पर नत्थू ने बंटवारे की पूरी बात बता कर कहा कि वें मेरे बड़े भाई हैं मैं उनके द्वारा किये गए बंटवारे के विरुद्ध आवाज भी नहीं उठा सकता| इस पर चरवाहे ने उसे एक सुझाव देते हुए कहा कि इस प्रकार करोगे तो लच्छु जी को अपनी गलती का अहसास भी हो जाएगा और आपसी सम्बन्ध भी खराब नहीं होंगे|

शाम को जब दोनों भाई झोपडी में इक्कठे हुए तो नत्थू ने झोपडी के अगले हिस्से पर मिटटी का तेल छिड़कना  शुरू कर दिय| ऐसा देख कर लच्छु ने पुछा कि यह क्या कर रहे हो? नत्थू ने कहा कि झोपड़ी का बाहरी हिस्सा मेरा है मैं इसे जला रहा हूँ| लच्छु ने कहा  कि फिर तो अन्दर का हिस्सा भी जल जाएगा तुम ऐसा न करो अरे भाई तुम भी अन्दर ही सो जाया करो|

कुछ समय बाद जब लच्छु गाय का दूध निकालने लगा तो नत्थू ने गाय के अगले हिस्से की गाय के गले में पड़ी  रस्सी को पकड़ कर गाय को हिलाना शुरू कर दिया जिससे गाय ने बिदक कर दूध निकाल रहे लच्छु को लात मार दी और दूध भी जमीन पर गिर गया| लच्छु ने फिर कहा कि यह तुम क्या कर रहे हो? तो उसने कहा  गाय का अगला हिस्सा मेरा है मैं गाय के अगले हिस्से से खेल रहा हूँ| तब लच्छु ने कहा कि ऐसा न करो गाय भी मेरी और तुम्हारी दोनों की ही है|

रात में लच्छु ने चारपाई पर बैठ  कर  कम्बल माँगा तो नत्थू ने पानी में भीगा हुआ कम्बल ला कर दे दिया| लच्छु ने कहा यह तो पानी में भीगा हुआ है| नत्थू ने कहा जब मैं गाय को जंगल में चराने के लिए जाता हूँ तो वहां दोपहर में गर्मी लगती है तब मैं इसको पानी में भिगो कर ओढ़ लेता हूँ|

नत्थू की बात सुन कर लच्छु ने मन में विचार किया कि यह सब मेरा ही किया धरा है मैंने ही स्वार्थ में अँधा होकर ऐसा बंटवारा किया था| इस पर उसे घोर पश्चाताप हुआ| उसने अपने छोटे भाई को गले से लगा कर कहा कि मैं स्वार्थ में अँधा हो गया था मुझे माफ़ कर दो| इसके बाद वे दोनों फिर से तेरे मेरे को छोड़ कर प्रेम पूर्वक रहने लगे|

इस कहानी के माध्यम से मेरा केवल यही कहना है कि हमें अपने जीवन में अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए किसी के भी विश्वास को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए|