इस वर्ष ही नहीं बल्कि काफी समय से हमारे देश में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में महिला दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह बहुत ही अच्छी बात है। लेकिन वास्तविकता इसके बिलकुल विपरीत है।
आज भी सारी दुनिया में महिलाओं पर जिस जिस प्रकार के अत्याचार होते हैं यदि उसके विषय जरा भी जानकारी हो जाए तो निश्चित रूप से मन आत्म ग्लानि से भर उठे। मनुष्य नारी के उदर से जन्म लेकर नारी पर ही अनेकों प्रकार के जुल्म करता है। नारी भी अपने आप को अबला समझ कर पुरुष के सभी अन्याय सहती हुई अपना जीवन जी लेती है। इसी विषय में कवि ने कहा है कि;-
हे अबला तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥
माना पहले अशिक्षित समाज था, लेकिन आज विश्व में पढ़े लिखों की बहुत बड़ी संख्या है इसके बावजूद भी महिलाओं पर अत्याचार होते ही रहते है। लेकिन इतिहास गवाह है, स्त्री को अबला समझना पुरुष वर्ग की बहुत बड़ी भूल है जब जब नारी ने सबला बन कर हुंकार भरी है तो अच्छे अच्छों को धूल चटाई है।
आज स्त्रियां भी पढ़ी लिखी हैं पहले से अधिक अच्छी तरह से अपने परिवार की देखभाल करती हैं। गलतियां सभी से होती हैं। मिल बैठकर हर समस्या का समाधान किया जा सकता है।
महिला दिवस मनाना भी तभी सार्थक होगा जब पुरुष वर्ग भी महिलाओं को बराबरी का सम्मान दें। अन्यथा इस प्रकार के दिखावे का कोई अर्थ नहीं है।
इस महिला दिवस के अवसर पर पुरुषों के द्वारा सताई जाने वाली महिलाओं को बस मैं केवल यही कहना चाहूंगा कि जितना गुनाहगार जुल्म करने वाला होता है उससे अधिक गुनाहगार जुल्म को सहने वाला होता है। इसलिए यदि जुल्म की इंतहा होने लगे तो सबला बन कर जुल्म का सामना करना चाहिए। इस विषय में कवि ने कहा है कि:-
छोड़ो मेहंदी खडग सम्भालो,
खुद ही अपना चीर बचा लो।
चाल बिछाये बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जाएंगे।
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविन्द ना आएंगे॥
कब तक आस लगाओगी तुम बिके हुए महतारों से।
कैसी रक्षा मांग रही हो, दू:शासन दरबारों से॥
सुनो द्रोपदी शास्त्र उठालो, अब गोविन्द ना आएंगे।
कल तक केवल अँधा राजा, अब गूंगा बहरा है।
होठ सी दिए हैं जनता के, कानो पर भी पहरा है॥
तुम ही कहो ये अक्षु तुम्हारे , किसको क्या समझायेंगे।
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविन्द ना आएंगे॥