Thursday, December 26, 2013

भाग्य और लक्ष्मी|

एक शहर में एक गरीब बुढा ब्राह्मण अपनी पत्नि व् सोमदत्त नाम के एक पुत्र के साथ रहता था| सोमदत्त प्रतिदिन राजा की लड़की को कथा सुनाने जाया करता था| वहां से दक्षिणा में जो मिलता उसमे ही वह अपने परिवार का पालन करता था|

एक बार  भाग्य और लक्ष्मी एक दूसरे से अपने आप को बडा बताने लगे| आपस में कोई निर्णय न होने पर दोनों ब्रह्मा जी के पास गए| ब्रह्मा जी ने खुद बूरा न बनते हुए कहा मेरे पास इसका उत्तर नहीं है चलो मैं भी तुम्हारे साथ विष्णु जी के पास चलता हूँ|

तीनों ने विष्णु जी के पास पहुँच कर भाग्य और लक्ष्मी में कौन बडा है यह प्रश्न किया| विष्णु जी ने भी ब्रह्मा जी की तरह बुरा न बनते हुए उत्तर न देकर उन्हें अपने साथ लेकर शिवजी जी के पास पहुँच कर उपरोक्त प्रश्न पुछा| शिवजी जी ने भी कोई उत्तर न देकर कहा कि चलो पृथ्वी पर चलकर इस प्रश्न का उत्तर मालूम करते हैं|

पांचो देवी देवता ने साधू का वेश धारण कर पृथ्वी पर उपरोक्त ब्राह्मण के घर पहुँच अलख जगाई और कहा कि हम रात्रि में भी आपके घर पर ही विश्राम करेंगे| इस पर ब्राह्मण पुत्र सोमदत्त ने अतिथि देवो भव:ऐसा विचार कर कहा महाराज मेरे घर में दक्षिणा में मिले दाल भात आदि से हम तीनों के भोजन की पूर्ति होती है| अत: मैं एक समय के भोजन की व्यवस्था कर सकता हूँ|

साधुओं ने उसे एक बर्तन देकर कहा कि वह दाल भात इस बर्तन में बनाओ तो हम सब का दोनों समय का भोजन बन जाया करेगा| इस प्रकार उस बर्तन में बने भोजन से दोनों समय के भोजन की पूर्ति हो गयी|

अगले दिन प्रात:में सोमदत्त जाने लगा तो एक साधू ने पूछा,तुम कहाँ जा रहे हो? उसने कहा, मैं राजा की लड़की को कथा सुनाने जा रहा हूँ| साधू ने कहा,तुम कथा सुनाने के बाद राजा की लड़की से पूछना कि तुम किस अभिलाषा की पूर्ति हेतु कथा सुनती हो?

सोमदत्त ने कथा सुनाने के बाद उपरोक्त प्रश्न पूछा? राजा की लड़की ने कहा, मैं इस अभिलाषा से कथा सुनती हूँ कि मुझे ऐसा वर मिले जिसकी चर्चा सभी की जबान पर हो, उसके माथे पर चाँद और सूरज की रोशनी हो तथा वह भाग्य का ऐसा धनी हो कि उसके क़दमों में लक्ष्मी थिरकती हुयी हो| तथा ऐसी बारात हो जैसी किसी ने अब तक न देखी हो|

वापस आकर उसने साधुओं को लड़की के उत्तर से अवगत करा दिया| अगले दिन प्रात:काल में जब वह कथा सुनाने के लिए जाने लगा तो साधुओं ने कहा कि बच्चा आज फिर वाही प्रश्न करना वह फिर तुम्हे कल वाली बातें बताये तो तुम तुरंत यह कह कर कि "जैसा पति तुम्हे चाहिए वैसा केवल मैं ही हूँ"यह कह कर भाग आना|

सोमदत्त ने कहा,हे साधू महाराज कहाँ एक मैं गरीब ब्राह्मण जिसका घर उसकी दी हुयी दक्षिणा पर पलता है और कहाँ वह एक राजा की पुत्री? राजा मुझे और मेरे परिवार को मृत्युदंड देकर मोत के घाट उतर देगा| अत; मैं ऐसा नहीं करूँगा|

साधूओं ने कहा कि ठीक है हम तुम्हे परिवार सहित अभी अपने श्राप से भस्म किये देते हैं| सोमदत्त पहले से ही उनके चमत्कार से डरा हुआ था उसने सोचा कि राजा तो बाद में म्रत्युदंड देगा यें अभी अपने श्राप से भस्म कर देंगे|अत:साधुओं को आश्वासन देकर कथा सुनाने चला गया|

कथा सुनाने के बाद सोमदत्त ने कहा कि कल वाले प्रश्न के अनुसार जैसा वर तुम्हे चाहिए वैसा वर मैं ही हूँ|ऐसा कहकर वह वहाँ से भाग आया| राजा की पुत्री को एक दम बहुत आघात पहुंचा| उसने दासी के द्वारा अपने पिता जी को बुला कर सब बात बताई| राजा ने आश्वासन दिया कि उस उदंड ब्राह्मण को इसकी सजा मिलेगी|

राजा ने तुरंत अपने मंत्रियों से विचार विमर्श किया| एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि उसने अपराध तो  फांसी दिए जाने वाला किया है|परन्तु वह एक ब्राह्मण है| उसे फांसी देने पर एक ब्रहमहत्या का पाप लगेगा| कुछ ऐसा किया जाए कि वह दण्डित भी हो और ब्रहमहत्या का पाप भी न लगे|

काफी विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि शादी का निमंत्रण पत्र कुछ शर्तों के साथ भिजवाया जाए| राजा ने शर्तों वाला निमंत्रण पत्र लिखवा कर हलकारे के हाथ सोमदत्त के पिता जी के पास भेज दिया|

उधर सोमदत्त ने घर पहुंच कर साधुओं को बताया कि आपके कहे अनुसार कहने पर राजकन्या बहुत क्रोधित हो गयी थी| अब शीघ्र ही फांसी का सन्देश पहुँचने वाला है| कुछ समय के बाद हलकारा निमंत्रण पत्र लेकर पहुँच गया| साधुओं ने हलकारे को सम्मान सहित बिठा कर सोमदत्त को निमंत्रण पत्र पढ़कर सुनाने के लिए कहा| पत्र इस प्रकार था|

हे ब्राह्मण पुत्र :-
                        हमें तुम्हारा शादी का प्रस्ताव मंजूर है| परन्तु साथ साथ हमारी कुछ शर्तें भी हैं| तुम्हारे द्वारा सभी शर्तें पूरी करने पर हम अपनी लड़की की शादी तुम्हारे साथ कर देंगे| शर्तें पूरी न होने पर तुम्हे परिवार सहित फांसी दे दी जायेगी| शर्तें इस प्रकार हैं|
१:-बारातियों के ठहरने वाले सभी बारातघर तथा बनाए गए सभी तम्बू भरे हुए होने चाहिए| कोई भी तम्बू खाली नहीं रहना चाहिए|
२:-बारातियों के आथित्य सत्कार में बनायी गयी सभी खाद्य सामग्री प्रयोग होनी चाहिए|
३:-ऐसी अद्भुत बारात आनी चाहिए जिसकी चर्चा हर व्यक्ति की जबान पर हो|
बारात आने पर यदि कोई भी शर्त अधूरी होगी तो बरात में आने वाले सभी बारातियों को भी फांसी दे दी जाएगी|

पत्र पढ़कर सोमदत्त डर से कांपने लगा| साधुओं ने कहा, तुम डरो नहीं| हलकारे को भोजन खिला कर पत्र का उत्तर देकर विदा करो और पत्र में लिखो कि आप शादी की तैयारी करैं  हम फला दिन बरात लेकर आ रहे हैं|

हलकारे को भोजन में दाल भात परोसा गया| हलकारे की थाली में वह छतीस प्रकार का भोजन बन गया| विदाई में साधुओं ने उसे मुठ्ठी भर धुनी की राख व् पत्र देकर विदा किया| बाहर आकर हलकारे ने देखा कि वह राख नहीं बल्कि हीरे मोती हैं| वह बहुत खुश हुआ|

राजा ने सकारात्मक उत्तर प्राप्त होने पर विचार किया कि वह गरीब ब्राह्मण किसके भरोसे ऐसा कर रहा है| क्या कोई दुश्मन राजा उसका साथ दे रहा है? यही सोचकर राजा ने शहर के तमाम बारातघर सजवा दिए और अनेकोनेक तम्बू लगवा दिए| राजा को विश्वास था कि अधिक आदमी न आने के कारण वह शर्त हार जाएगा|

सोमदत्त अपनी बारात में चलने के लिए जिसे भी कहता वही उसे यह कह कर मना कर देता कि तुम्हारा तो अंतिम समय आ गया है हम बारात में तुम्हारे साथ मरने के लिए क्यों जाएँ| ऐसी बातें सुनसुन कर वह बहुत परेशान था|

शादी वाले दिन सोमदत्त को परेशान देखकर साधुओं ने कहा, बच्चा आज तुम्हारी शादी है और तुम परेशान हो रहे हो| तैयार होकर हमारे साथ चलो| तुम किसी बात की चिंता मत करो हम तुम्हारे साथ हैं| सोमदत्त ने (भाग्य में जो लिखा है वही होगा) यही सोचकर तैयार होकर साधुओं के साथ चल दिया|

भगवान् शिवजी जी ने इस बारात में चलने के लिए सभी देवताओं को मनुष्य रूप में आमंत्रित किया हुआ था| तथा भुत प्रेत व् अपने सभी गणों को  भी शादी में बुला लिया| जिसके कारण सभी बारातघर व् लगवाये गए सभी तम्बू भर गए| इसके बाद भी कुछ बाराती बिना तम्बू के रह गए|

राजा के पास सूचना भिजवायी गयी कि बारातियों के ठहरने का और प्रबंध कराया जाये| सुचना मिलने पर राजा ने विचार किया कि कहाँ से इतने बाराती आ गए हैं चलकर देखना चाहिए| राजा तुरंत वहां पहुंचे| राजा को आया देखकर शिवजी जी ने शुक्र व शनि जी को बच्चे के रूप में बना कर भूख के कारण रुला दिया| राजा ने दो बच्चों को रोते देखकर पुछा कि यह बच्चे क्यों रो रहे हैं| साधू बने शिवजी जी ने कहा इन्हें भुख लगी है| राजा ने उन बच्चों को खाना खिलाने के लिए भेज दिया|

कुछ समय के बाद राजा के कर्मचारियों ने आकर बताया कि महाराज वें दोनों बच्चे तो सारा का सारा भोजन खा गए हैं और फिर भी भुख भुख चिल्ला रहे हैं| ऐसा सुनकर राजा बहुत परेशान हुए| उन्होंने अपना घमंड त्याग कर साधुओं के सामने नतमस्तक होकर कहा, महाराज अब मेरी लाज आपके हाथ में है| साधुओं ने कहा कि कोई बात नहीं सब कुछ ठीक हो जायेगा| तुम घर जाकर बारात की अगवानी की तैयारी करो|

राजा ने शहर को बहुत ही सुन्दर ढंग से सजवाया| जगह जगह  झालरों से पूरा शहर एक दुल्हन की तरह से सजाया गया| सोमदत्त भी शादी की पोशाक में एक राजकुमार की तरह बहुत सुन्दर दिखाई दे रहा था|

 शाम के समय उसे एक सुन्दर रथ में बिठाया गया| रथ के आगे अनेक प्रकार के बैंडबाजे, नफीरी वाले, ढोल नगाड़े वाले मधुर तान में झूमते हुए चल रहे थे| दुल्हे के मस्तक पर सेहरे को चाँद और सूरज से सजाया गया| बाराती हाथों में नोट (लक्ष्मी) लेकर एक दुसरे पर न्योछावर कर इधर उधर उड़ा रहे थे|

बारात के इस विहंगम द्रश्य को देख कर आपस में कहने लगे कि इस गरीब ब्राह्मण के भाग्य को तो देखो| इसके मस्तक के सेहरे में चाँद सूरज और चारों तरफ से इस प्रकार धन(लक्ष्मी) उड़ाया जा रहा है मानो किसी बहुत बड़े राजा की बारात निकल रही है| ऐसी बारात हमने अपने जीवन में कभी नहीं देखी और न आगे देखने की उम्मीद है|यह भाग्य का बहुत ही धनी है|

पब्लिक की इस प्रकार की बातों को सुनकर ब्रह्मा जी, विष्णु जी, तथा शिवजी जी ने भाग्य व् लक्ष्मी जी से कहा कि देखो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर पब्लिक दे रही है|

अत: मनुष्य को फल की इच्छा न करते हुए कर्म करते रहना चाहिए| मनुष्य को समय से पहले और भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता|










 

Saturday, December 21, 2013

म्रगत्रष्णा

मानव का मन बहुत ही चंचल होता है| मन की इस चंचलता के कारण ही मनुष्य को कभी कभी अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है| कभी कभी अपने आप को ठगा हुआ सा, और कभी कभी सांसारिक मोह माया के जाल में फंस कर मन की म्रगत्रष्णा के कारण अपने आप को लज्जित महसूस करता है |

उपरोक्त विषय में एक पोराणिक कथा का वर्णन करता हूँ| एक बार ऋषि नारद जी ने अपनी घोर तपस्या के बल से कामदेव पर विजय प्राप्त की| कामदेव पर विजय प्राप्त करने के बाद उन्हें घमंड हो गया| जहाँ भी जाते  वहीँ अपनी विजय का ही बखान करते नहीं थकते थे| इसी प्रसंग को नारद जी ने विष्णु जी के सामने भी खूब बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया|

नारद जी के मुख से घमंड भरी बातें सुनकर विष्णु जी ने मन में विचार किया कि एक ऋषि के अन्दर घमंड होना उचित नहीं है| इनका घमंड दूर होना चाहिए| ऐसा विचार कर उन्होंने अपनी योग माया से प्रथ्वी पर एक नगरी बसा कर वहां के राजा की लड़की के रूप में लक्ष्मी जी को भेज दिया|

नारद जी पृथ्वी लोक में  भ्रमण करते करते उसी राजा के दरबार में पहुंचे| राजा उन्हें बहुत ही आदर से अपने घर ले गए| राजा की लड़की विवाह योग्य हो गयी थी| राजा ने नारद जी को अपनी कन्या की जन्म पत्री दिखा कर उसके भविष्य के विषय में पूछा|

नारद जी ने जन्म पत्री देख कर बताया कि यह कन्या तो बहुत ही भाग्यशाली है, जिसके साथ इसकी शादी होगी वह तीनो लोकों का राजा होगा| सुन्दरता में भी इस कन्या के बराबर कोई नहीं है उन्होंने राजा को सलाह दी कि इस कन्या की शादी का स्वम्बर करके जिसके गले में वरमाला पहनाये उससे इसकी शादी करदो| राजा ने कहा ऐसा ही करूँगा|

नारद जी ने मन में विचार किया कि यदि इस कन्या से मेरी शादी हो जाए तो मैं तीनो लोकों का राजा बन जाऊंगा| नारद जी विष्णु जी के पास पहुंचे और उन्हें कन्या की सुन्दरता और भाग्य के विषय में बता कर कहा कि आप मुझे ऐसा सुन्दर रूप प्रदान करें कि वह कन्या मेरी सुन्दरता पर मोहित होकर मेरे गले में वरमाला डाल दे| विष्णु जी ने कहा कि तुम्हे दूसरा रूप दे दिया जाएगा|

राजा ने लड़की की शादी के लिए स्वम्बर करके राजाओं को आमंत्रित किया| वहां विष्णु जी व् नारद जी भी भेष बदल कर स्वम्बर में शामिल हो गए| नारद जी को देखकर उनके आस पास बैठे राजा आपस में खुसर पुसर करने लगे| नारद जी मन ही मन प्रसन्न थे कि ये राजा मेरी सुन्दरता पर ही विचार करके खुसर पुसर कर रहे हैं|

राजा की लड़की वर माला लेकर जब नारद जी के पास पहुंची तो वह उन्हें देखकर हंसती हुई आगे निकल कर जहाँ विष्णु जी भेष बदल कर बैठे थे वहां पहुँच कर उनके गले में वर माला डाल दी| नारद जी ने उस ओर देख कर अपने तपोबल के कारण विष्णु जी को पहचान लिया|

नारद जी क्रोधित होकर विष्णु जी के पास पहुंचे और कहा कि जब आपको ही शादी करनी थी तो मुझे इतना सुन्दर रूप ही क्यों दिया? नारद जी की बात सुनकर सभा में उपस्थित सभी राजा जोर जोर से हँसते हुए कहने लगे कि तुम अपना चेहरा आईने में जाकर देखो, आपका चेहरा एक बन्दर जैसा दिखाई दे रहा है|

ऐसा सुनकर नारद जी को अपना जीवन रात की कालिमा के अनुसार अंधकारमय प्रतीत हुआ उन्होंने अत्यंत क्रोधित होकर विष्णु जी को श्राप दिया कि तुमने जिस रूप को देकर आज मुझे उपहास का पात्र बनाया है एक दिन ऐसा आएगा कि तुम्हे बंदरों से ही सहायता लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा|

विष्णु जी ने कहा कि हे भक्त तुम्हारे वचन सत्य हों| और ऐसा ही हुआ|  रामायण में श्री राम रूपी विष्णु जी को वानरों की सहायता से ही रावण पर विजय प्राप्त हुई थी|

मेरा तो कहना है कि जब एक ऐसे महान तपस्वी ऋषि का मन चलायमान हो सकता है तो मानव की क्या गिनती है| कभी कभी मनुष्य अपने मन की म्रगत्रष्णा के कारण उपहास का पात्र बनकर समाज में लज्जित हो जाता है






 

Wednesday, December 18, 2013

दोस्त की नादानी|

एक गाँव में मोहन और सोहन नाम के दो दोस्त रहते थे| मोहन बहुत ही सीधे स्वभाव का व्यक्ति था| सोहन का स्वभाव चंचल था| कभी कभी सोहन की चंचलता के कारण वह उससे नाराज भी हो जाता था|

सर्दियों के दिन थे| एक दिन  मोहन ने सोहन से कहा कि आज मैंने तरबूज खाया है| उसकी बात सुनकर सोहन ने कहा कि सर्दियों में तरबूज कहाँ से आएगा तुम झूठ बोलकर मेरा बेवकूफ बना रहे हो|

मोहन ने उसे बताया कि शहर में सर्दियों में भी तरबूज मिलते हैं| कल किसी काम से शहर गया था वहां से ही तरबूज खरीद कर लाया था| तुम मेरे घर चलो मैं तुम्हे भी तरबूज खिलाऊंगा|

सोहन ने कहा कि मुझे तुम्हारी बात पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है| यदि तुम तरबूज न खिला पाए तो मुझे क्या  दोगे? मोहन ने कहा ऐसा कुछ नहीं होगा फिर भी तरबूज न खिलाने पर जो तुम कहोगे मैं तुम्हे दे दूंगा|

सोहन ने कहा शर्त हारने पर जिसे मैं मुठ्ठी से पकड़ लूँगा वह मेरी हो जायेगी| मोहन ने यह सोचकर कि तरबूज तो मैं इसे खिला ही दूंगा फिर मुझे शर्त मानने में क्या डर है अत: उसने सरल स्वभाव से उसकी शर्त मान ली| 

मोहन उसे अपने साथ लेकर घर आया| उसने अपनी पत्नी से तरबूज खिलने के लिए कहा| उसकी पत्नी ने कहा कि शेष बचे हुए तरबूज को तो बच्चों ने खा लिया है|  मैं कुछ ओर खिला देती हूँ|

इस पर सोहन ने कहा बात खाने खिलाने की नहीं है आप तरबूज का वह कच्चा भाग ही दिखा दो जो कूड़े में डाल दिया जाता है|मोहन की पत्नी ने कहा कि उस कूड़े को तो जमादार उठा कर ले गया| इस पर सोहन ने कहा चलो जमादार के पास चलते हैं|

दोनों मित्रों ने जमादार के पास जाकर तरबूज के कूड़े के बारे में पुछा तो जमादार ने कहा तरबूज के कूड़े को जानवर खा गए| ऐसा सुनकर सोहन ने कहा तुम शर्त हार चुके हो अत:शर्त के अनुसार वायदा पूरा करो| मोहन ने  कहा ठीक है भाई, हम शर्त हार गए तुम्हारी मुठ्ठी में जितना आये आप लेलें|

सोहन की नियत पहले से ही उसकी पत्नि पर थी| अत: उसने उसकी पत्नि की ओर बढ़ कर उसका हाथ मुठ्ठी में पकड़ना चाहा| सोहन की नियत को भांप कर मोहन व् उसकी पत्नि क्रोधित हो कर उसे डांटने लगे| सोहन ने  कहा यह तो शर्त की बात है, तुम चाहो तो किसी ओर से फैसला करा लो| मोहन ने कहा कि कल किसी ओर से ही इसका फैसला कराया जाएगा|

मोहन ने गाँव के सरपंच से मिलने का निर्णय किया| सरपंच जी के मोहल्ले में पहुँच कर उसने एक लड़के से सरपंच जी के मकान का पता पूछा| लड़के ने कहा पता बताने पर मुझे क्या मिलेगा| मोहन ने कहा तुम पता तो बताओ तुम्हे भी कुछ दे दूंगा|

लड़के ने कहा कि सामने वाला घर सरपंच जी का ही है| मोहन ने जेब से कुछ पैसे निकाल कर उसे देने चाहे तो उस लड़के ने कहा कि मुझे पैसे नहीं मुझे तो आपने कुछ देने का वायदा किया था अत: मुझे तोकुछ ही चाहिए| मोहन के समझाने पर भी बच्चा अपनी जिद पर अड़ कर झगड़ने लगा| बाहर बच्चे के शोर को सुनकर सरपंच जी ने घर से बाहर आकर झगड़े का कारण पूछा?

मोहन ने उन्हें अपने यहाँ आने और पता पूछने वाली बात बताई| सरपंच जी ने दोनों को अपनी बैठक में बिठा कर मकान के अन्दर चले गए| कुछ समय के बाद सरपंच जी दो गिलास दूध लेकर बैठक में वापस आये| एक गिलास मोहन को तथा दूसरा गिलास लड़के को देकर कहा कि आप लोग दूध पियो|

लड़के ने गिलास में देख कर कहा कि इसमें तो कुछ पड़ा हुआ है| सरपंच जी ने कहा कि तुम्हे कुछ चाहिए था इसमें से निकाल कर लेलो| इस पर बच्चा शर्मा कर भाग गया| तब उन्होंने मोहन से आने का कारण पूछा? मोहन ने शर्त वाली बात बता कर सोहन की बदनियती से अवगत कराया| सरपंच जी ने कहा कल सोहन को अपने घर बुला लो, मैं भी समय पर पहुँच जाऊंगा|

अगले दिन सरपंच जी ने मोहन के घर पहुँच कर उसकी पत्नि को कहा कि तुम आँगन में कड़ी सीडी से छत पर पहुँच कर मुडेर के पास खड़ी हो जाओ| इसके बाद सोहन को बुला कर शर्त के अनुसार मुठ्ठी भरने के लिए कहा| सोहन ने देखा कि मोहन की पत्नि छत पर खड़ी है,तो वह सीडी के पास पहुंचा| जैसे ही उसने ऊपर जाने के लिए सीडी का पहला डंडा हाथ से पकड़ा तो सरपंच जी ने कहा कि आपने शर्त के अनुसार अपनी मुठ्ठी में डंडा पकड़ लिया है अत: दूसरा डंडा पकड़ने पर वह डंडा आपके शरीर पर पड़ेगा| तुम सीडी का पहला डंडा उखड कर अपने साथ लेजा सकते हो|

सोहन को जैसे ही अपनी गलती का अहसास हुआ तो वह पश्चाताप करने लगा| सरपंच जी ने उसे समझाते हुए कहा कि तुमने अपने अच्छे और सच्चे मित्र के साथ विश्वासघात किया है| जिसके कारण तुम कभी भी सुखी नहीं रहोगे|

सच्चा और अच्छा मित्र निस्वार्थ भाव से एक दुसरे की सहायता करने के लिए तत्पर रहता है| सच्चा मित्र वही होता है जो मित्र पर आपत्ति आने पर तन,मन और धन से उसके ऊपर न्योछावर हो जाए| सच्चे मित्र की आपत्ति में ही परीक्षा होती है|

   

Friday, December 13, 2013

आम आदमी पार्टी से मेरा निवेदन

भाई कजरीवाल जी व् उनकी आम आदमी पार्टी आज एक ईमानदार, जुझारू, निडर और कर्मठ समाजसेवी के रूप में उभर कर सामने आई है| आम आदमी पार्टी की कार्य प्रणाली शुरू से ही जनता की समस्याओं को उजागर कर एक मजबूत विपक्ष जैसी है|

माननीय उपराज्यपाल जी ने आम आदमी पार्टी के संयोजक श्री केजरीवाल जी को सरकार बनाने के लिए परामर्श करने हेतु बुलाया परन्तु उन्होंने सरकार बनाने से इंकार कर दिया| मेरी सोच के अनुसार सरकार न बनाने के पीछे निम्न कारण हो सकते हैं|

१.सरकार बनाने के लिए बहुमत न होना :- इस विषय में मैं यह कहना चाहता हूँ कि कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी को समर्थन देने से सम्बन्धित एक पत्र माननीय उपराज्यपाल जी को लिखित रूप में दे दिया है| इसके अलावा इन्होने स्वयं अन्य दलों से निवेदन किया है कि ईमानदार छवि के विधायक हमारा समर्थन करें| इस विषय में मेरा कहना है कि हर पार्टी में ईमानदार विधायकों की काफी संख्या होती है| हो सकता है कि जो व्यक्ति अन्य दलों में ईमानदार छवि वाले जीत कर आये हैं वह बहुमत सिद्ध करने वाले दिन सदन में उपस्थित ही न रहें और आपकी पार्टी का बहुमत सिद्ध हो जाये|

२.सरकार न चलाने का तजुर्बा :- इस विषय में मेरा मानना है कि प्रयास करने पर ही तजुर्बा होता है| अन्यथा की स्थिति में आपकी हालत कबीर दास जी की इन पक्तियों के अनुसार हो जायेगी जो  इस प्रकार हैं :-

                                       जिन ढूंढा तिन पाइया गहरे पानी पैंठ |
                                       मैं बावरी बूढन डरी रही किनारे  बैठ ||

अत;केजरीवाल जी आपकी पार्टी के अबतक के ब्यान से यही दिखाई दे रहा है कि आप डूबने के डर से सरकार बनाने में अपने कदम पीछे हटा रहे हो| यदि मोती प्राप्त करना है तो छलांग तो लगानी ही होगी, अन्यथा जनता की नज़रों में उपेक्षित हो जाओगे|

३.जनता से किये गए वायदे :- हो सकता है कि अब आप ऐसा महसूस कर रहे हों कि मैंने जो जनता से वायदे किये हैं वह पुरे न हों| क्योंकि आपने वायदे ही कुछ इस प्रकार के किये हैं | जैसे बिजली के मूल्यों में ५०% तक की कटोती करना| पानी को भी काफी हद तक मुफ्त में जनता को दिलाना| तथा दिल्ली की दबी कुचली जनता को महंगाई, बेरोजगारी, लुट खसोट, बलात्कार से भय मुक्त वातावरण बनाना | दिनांक १३-१२-२०१३ के अमर उजाला अखबार में मैंने पढ़ा कि दिल्ली बिजली वितरण कम्पनियों ने बिजली नियामक बोर्ड से बिजली की दरों में लगभग ४ या 5 % बढाने के लिए लिखा है| यदि सरकार नहीं बनेगी तो बिजली का मूल्य घटने के बजाये बढ़ जायेगा |

अत: में मैं अपनी बात यह ही कह कर समाप्त करता हूँ कि :-
करत करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान|  इसलिए आपको सभी तथ्यों सहित मेरी बात पर विचार करते हुए सरकार बना कर दुसरे दलों के ईमानदार विधायकों का समर्थन लेकर अपने द्वारा जनता से किये गए वायदे पुरे करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए| दुसरे दलों के अवरोध पैदा करने पर आप पुन:जनता के बीच जाएँ| ऐसा करने पर आपको तजुर्बा भी हो जाएगा और यदि फिर से चुनाव हुए तो आपको पूर्ण बहुमत भी मिलेगा

 

Saturday, December 7, 2013

ईर्ष्या|

एक गावं में एक लक्कडहारा रहता था| वह जंगल से सुक्खी लकड़ी काट कर बाज़ार में बेचने पर जो प्राप्त होता, उसी से वह अपने परिवार का पालन करता था|

जंगल में एक पेड़ पर एक जिन्न रहता था| एक दिन लक्कडहारे ने उस पेड़ को काटने के लिये कुल्हाड़ा उठाया तो जिन्न ने प्रगट होकर कहा कि हरे पेड़ काटना पाप है| अत: इसे मत काटो|

लक्कडहारे ने कहा कि यहाँ के सभी सुक्खे पेड़ समाप्त हो गए हैं| मुझे अपने परिवार के पालन पोषण हेतु हरे पेड़ ही काटने पड़ेंगे, यह मेरी मज़बूरी है|

जिन्न ने कहा, मैं तुम्हे ऐसा वरदान देता हूँ कि अपनी उचित आवश्यकता के अनुसार जो तुम मांगोगे वही तुम को मिल जाया करेगा| जिन्न से वरदान मिलने पर वह वापस लौट आया| उसने घर आकर जिन्न वाली घटना को अपनी पत्नि को बताया| पत्नि ने कहा कि जिन्न के कहे अनुसार कुछ मांग कर देख लो|

लक्कडहारा अपनी आवश्यकता के अनुसार जो मांगता गया उसे वही मिलता गया लक्कडहारा इसे भगवान का प्रसाद समझ भगवान की भक्ति में लीन रहकर अपना समय बिताने लगा| पड़ोस में भी चर्चा होने लगी कि लक्कडहारा अब लकड़ी काटने भी  नहीं जाता और इसका परिवार का रहन सहन भी ठीक हो गया है कहीं इसे कोई गडा हुआ धन तो नहीं मिल गया|

मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने दुःख से नहीं बल्कि दुसरे के सुख से दुखी होता है| अत: ईर्ष्यावश एक पडोसी उसके पास पहुंचा और कहा कि अब तुम लकड़ी काटने भी नहीं जाते हो, क्या जंगल से कोई गडा हुआ धन मिल गया?

लक्कडहारा बहुत ही सरल स्वभाव का व्यक्ति था उसने जिन्न वाली पूरी घटना उसे सुना दी| जिसे सुनकर पडोसी ने लालचवश सोचा कि यदि मैं भी उस पेड़ को काटने के लिए जाऊंगा तो मुझे भी वरदान मिल जायेगा|

अगले दिन वह भी हाथ में कुल्हाड़ी लेकर उस पेड़ को काटने के लिए जंगल में पहुंचा और पेड़ काटने के लिए जैसे ही कुल्हाड़ी उठाई तो जिन्न ने प्रगट हो कर कहा कि तुम तो लकड़ी काटने का काम भी नहीं करते हो फिर इस पेड़ को क्यों काटते हो?

पडोसी ने कहा, यदि लक्कडहारे वाला वरदान मुझे दो तो मैं पेड़ नहीं काटूँगा| जिन्न ने कहा कि ठीक है|  तुम जो मांगोगे तुम्हे वही मिलेगा परन्तु लक्कडहारे को उसका दुगना अपने आप मिल जाया करेगा|

इससे खुश होकर उस व्यक्ति ने घर आकर लालच के वशीभूत होकर जो धन दौलत मांगी वही उसे मिली परन्तु लक्कडहारे को उससे दोगुनी दौलत प्राप्त होती गयी|

लक्कडहारा उस प्राप्त धन से गरीब और असहाय व्यक्तियों की सहायता करने लगा जिससे उसकी ख्याति दूर दूर तक फैलने लगी| जिसे देख वह पडोसी और अधिक ईर्ष्या करने लगा| ईर्ष्यावश उसने जिन्न से माँगा कि मेरा  एक पैर, एक हाथ टूट जाये और एक आँख भी फूट जाये| 

फलस्वरूप उसका एक हाथ, एक पैर टूट गया और एक आँख भी फूट गयी परन्तु लक्कडहारे के दोनों पैर,दोनों हाथ टूट गए और दोनों आँखे फूट गयी जिसे देख कर वह अपने दुःख को भूल कर लक्कडहारे को देखकर खुश होने लगा|

लक्कडहारे ने मन ही मन जिन्न को याद करते हुए कहा कि हे जिन्न महाराज मेरे शरीर के सभी अंगों को ठीक कर दो ताकि मैं फिर से सेवा कार्य में अपना सहयोग दे सकूँ| ऐसा कहते ही वह ठीक हो गया|

पडोसी ने फिर जिन्न को याद कर फिर से उसका बुरा करना चाहा तो जिन्न ने प्रगट होकर कहा कि हे मूर्ख मानव तूने ईर्ष्या के कारण दूसरे का बुरा करना चाहा इसलिए दिया गया वरदान समाप्त हो गया और मैं भी इस जिन्न के रूप को त्याग रहा हूँ तुझे तेरे किये का फल मिल गया है|
ईर्ष्या किसी अनजान व्यक्ति से न होकर किसी अपने मित्र, पड़ोसी, या रिश्तेदार से ही होती है|ईर्ष्या से अपना ही नुकसान होता है अत: हमें ईर्ष्या के चक्रव्यूह से दूर ही रहना चाहिए|












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Friday, November 29, 2013

डावांडोल आस्था|

एक बार एक व्यक्ति हवाई जहाज से यात्रा कर रहा था| अचानक से घोषणा की गयी कि किसी तकनीकी  कारण से हवाई जहाज में कुछ खराबी आ गयी है| अत:सभी यात्री पैरासूट पहन कर नीचे कूद जाएँ|

उस व्यक्ति ने भी पैरासूट पहन कर नीचे छलांग लगा दी| वह पैरासूट के सहारे नीचे किसी समुद्री विरान टापू पर गिरा| उसने देखा कि वह बच गया तो उसने भगवान को धन्यवाद दिया|

कुछ समय बाद भुख, प्यास का अहसास हुआ तो उसने खाने पीने की तलाश शुरू की| समुद्री टापू पर तरह तरह  के पेड़ पौधे, झाड़ियाँ तथा घास थी| कोई फलदार वृक्ष नहीं था| तथा समुद्र के खारे पानी के अलावा पीने योग्य पानी नहीं था|

भुख, प्यास से परेशान उस व्यक्ति ने घास व् वृक्षों के पत्तें खाकर समुद्र का खारा पानी पीकर अपनी जान बचाई| वह व्यक्ति भगवान् को याद कर कहने लगा कि हे प्रभु मैंने जब से होश सम्भाला है तभी से तुम्हारी पूजा करता आया हूँ| फिर मुझे यह कष्ट क्यों प्राप्त हो रहा है|

उसने वहां से बाहर निकलने के लिए बहुत कोशिश की| कईं दिनों की भागदौड़ करने पर भी जब कोई सहायता नहीं मिली तो फिर से दुखी मन से भगवान् को दोष देते हुए कहने लगा कि मैंने अपने जीवन में किसी का बुरा नहीं किया फिर भी मैं अनेक कष्ट भोग रहा हूँ| मेरा आप से विश्वास समाप्त होता जा रहा है|

उसने देखा कि आकाश में घने काले बादल छा गए हैं| अत: बारिस से बचने के लिए पेड़ों से सुखी लकड़ी तोड़ कर एक झोपडी बनाकर उसे घासफुंस से ढक दिया|

काले काले बादलों की गडगडाहट से वह अकेला इस विरान टापू पर बहुत डर रहा था कि बादलों से बिजली भी कडकने लगी| अचानक से कडकती हुयी बिजली उसके द्वारा बनायी गयी झोपडी पर गिर पड़ी| ओर वह धू धू कर जलने लगी|

इस द्रश्य को देख कर वह व्यक्ति बदहवास होकर जोर जोर से बोलते हुए अनेक प्रकार के अपशब्दों के साथ भगवान् को कोसने लगा कि संसार में तेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है| इस प्रकार भगवान् से उसकी आस्था डावांडोल होने लगी|

कुछ समय बाद उसे किसी व्यक्ति की आवाज सुनाई दी| आवाज सुन वह उस दिशा में दौड़ता हुआ गया| वहां उसे कुछ आदमी दिखाई दिए| उन आदमियों ने उसे कहा कि हम नाव के द्वारा इधर से जा रहे थे कि अचानक यहाँ लगी आग और तुम्हारे जोर जोर से बोलने की आवाज सुन कर ही यहाँ पहुंचे हैं|

अचानक मिली सहायता से वह खुश भी हुआ और आत्मग्लानि से भी भर गया| वह सोचने लगा कि जिस आग को देखकर मैं भगवान् को दोष दे रहा था उसी आग के कारण ही मुझे इस दारुण दुःख से छुटकारा मिला|

मानव स्वभाव है कि वह आपत्ति आने पर परेशान हो कर भगवान को दोष देने  लगता है जबकि गीता में कहा गया है कि जो हुआ वह ठीक हुआ, जो हो रहा है वह ठीक हो रहा है और जो होगा वह भी ठीक ही होगा| अत: हमें भगवान् पर भरोसा करके पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कार्य करते रहना चाहिए|

Friday, November 22, 2013

करे कोई भरे कोई|

एक गाँव नदी के किनारे पर बसा था| नदी के दुसरे किनारे पर एक साधू का आश्रम था| साधू सुबह से ही तपस्या में लगे रहते थे| वे प्रतिदिन शाम के समय गाँव में भिक्षा मांगने जाते थे| वें गाँव में क्रमवार अपनी आवश्यकता के अनुसार ही भिक्षा में भोजन लेते थे| आश्रम में वापस आकर संध्यावंदन से फारिग होकर भिक्षा में प्राप्त भोजन कर रात्रि विश्राम करते थे|

गाँव में एक महिला का पति कुछ माह पूर्व धन कमाने हेतु बाहर गया हुआ था| उसके पति की शक्ल साधू से बहुत कुछ मिलती थी| साधू की शक्ल देख कर उसे अपने पति की याद आने लगती थी| जिसके कारण वह साधू से मन ही मन घ्रणा करने लगी|

मन में आये विकार के कारण उस स्त्री ने विचार किया कि यदि यह साधू मर जाए तो मुझे दिखाई नहीं देगा,और मुझे पति की याद भी नहीं सताएगी|

साधू के द्वारा भिक्षा मांगने के क्रमानुसार अगले दिन साधू को उस स्त्री के घर ही भिक्षा मांगनी थी| अत:उस स्त्री ने अगले दिन साधू के भोजन में जहर मिला कर दे दिया|

साधू जैसे ही गाँव से वापस आ रहे थे|कि मौसम खराब हो गया| हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गयी| बारिश में भीगने के कारण साधू की तबियत खराब हो गयी| संध्यावंदन करते करते मुसलाधार पानी भी बरसने लगा| तबियत ख़राब होने के कारण साधू बिना भोजन किये ही लेट गए|

एक मुसाफिर बारिश में भीगता हुआ आश्रम में पहुंचा| साधू को प्रणाम कर उसने कहा कि मैं नदी पार के गाँव का रहने वाला हूँ| बाहर बारिश बहुत तेज हो रही है| बारिश के कारण नदी का जलस्तर भी बढ़ गया है| साधू ने कहा ठीक है तुम रात्रि में आश्रम में विश्राम करो| प्रात:में घर चले जाना|

मुसाफिर ने कहा कि मुझे भुख भी बहुत लगी है कुछ खाने के लिए हो तो दो?साधू ने दिन में भिक्षा में प्राप्त वही खाना उसे दे दिया| उसने भरपेट खाना खाया| मुसाफिर खाना खाकर सो गया|

दिन निकलने पर भी जब मुसाफिर सोता ही रहा तो साधू ने उसे जगाने की कोशिश की परन्तु  वह नहीं उठा| साधू ने देखा कि उसकी म्रत्यु हो चुकी है| और उसका शरीर भी नीला हो गया| साधू ने अपने शिष्य के द्वारा गाँव में सुचना भिजवाई|

गाँव वालों ने आकर देखा| उसे पहचान कर उस मुसाफ़िर की पत्नी जोर जोर से विलाप कर रोने लगी| साधू ने उसे बताया कि पुत्री तुम्हारा पति रात्रि में बारिश  के कारण यहाँ रुका था| वह बहुत भूखा था अत:मैंने तुम्हारे यहाँ से प्राप्त भोजन इसको खिलाया जिसे खाकर वह सो गया|

यह सुन कर वह स्त्री रोते रोते पश्चाताप कर कहने लगी| और कहने लगी महाराज यह मेरी करनी का फल है| जिसे मैं तो पूरी उम्र भरुंगी ही परन्तु मेरे पति की निर्दोष होते हुए भी मौत हो गयी| ऐसा कह उसने अपने द्वारा भोजन में जहर मिलाने वाली घटना साधू को बताई|

साधू ने उसे समझाते हुए कहा कि हमें अपने जीवन में भावनाओं में बह कर कोई भी पाप कर्म नहीं करना चाहिए| पाप तुमने किया और भरना तुम्हारे पति को पड़ा| इसी को कहते हैं कि करे कोई और भरे कोई|






 

Tuesday, November 19, 2013

जोश में होश खोना|

मनुष्य किसी भी कार्य को करने में अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है| सही प्रकार से बुद्धि के प्रयोग करने पर कठिन से कठिन कार्य भी पूर्ण हो जाता है| मनुष्य का मन चंचल होता है| किसी भी कार्य को करने में बुद्धि मन को कार्य के अच्छे व् बुरे होने के विषय में अवगत कराती है|

मन दो प्रकार से कार्य करता है| मन के दो भाग (तराजू के दो पलड़ों के अनुसार) होते हैं| एक भाग अच्छे कार्यों की और आकर्षित करता है| दूसरा भाग बुरे कार्य की और खींचता है| मन पर जिस भाग का अधिक प्रभाव होता है मनुष्य उसी दिशा में कार्य करने लगता है|

कभी कभी मनुष्य जोश में बुद्धि का प्रयोग न करते हुए तथा मन से अच्छे और बुरे पर विचार न करते हुए होश खो बैठने पर ऐसा कार्य कर बैठता है कि उसे तमाम उम्र अपने किये पर पछतावा होता रहता है| इस विषय में मैं एक घटना का वर्णन करता हूँ| 

हरियाणा के किसी शहर में लक्खी नाम का एक बंजारा रहता था| वह बहुत ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति था| तथा मन के अच्छे विचारों के साथ बुद्धि का प्रयोग करते हुए ईमानदारी के साथ व्यापार करता था| उसने अनेक प्रकार के दुधारू पशु भी पाल रक्खे थे|

लक्खी ने एक कुत्ता भी पाल रक्खा था| वह कुत्ते को बहुत प्यार करता था| कुत्ता भी अपने मालिक के प्रति पूर्ण वफादार था वह अपने मालिक की हर प्रकार से रक्षा करने के लिए तत्पर रहता था| इस प्रकार वह सभी सुखों को भोगते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहा था|

अच्छे बुरे समय का कुछ पता नहीं चलता| लक्खी बंजारे को अचानक से व्यापार में हानि होने लगी| पशु भी बीमार होकर मरने लगे| आहिस्ता आहिस्ता कारोबार सिमटता चला गया| एक दिन ऐसा आया कि उसे घर खर्च में भी परेशानी होने लगी|

लक्खी बंजारे ने बुरे समय में भी ईमानदारी का साथ बिल्कुल नहीं छोड़ा| अत:वह अपने वफादार कुत्ते को साथ लेकर दूसरे शहर में अपने एक साहूकार मित्र के पास गया| उसे अपनी स्थिति से अवगत कराकर कहा कि मित्र मुझे कुछ समय के लिए कुछ धन की आवश्यकता है अत: आप मेरे कुत्ते को गिरवी रखलें|

साहूकार ने कहा कि आप कुत्ते को गिरवी न रखकर धन ले जाओ| परन्तु लक्खी बंजारे ने कुत्ते को गिरवी रखकर ही धन लिया| और वापस अपने शहर आ गया|

एक दिन साहूकार के घर में चोर घुस गए| चोर घर से सोने चांदी के जेवरात व् धन दौलत चुरा कर लेजाने लगे| बंजारे का कुत्ता भी उनके पीछे पीछे चल दिया| चोरों ने सभी सामान शहर से बाहर एक गड्ढे में दबा दिया ताकि उन्हें कोई सामान ले जाते हुए देख न ले| परन्तु कुत्ता यह सब देख रहा था|

प्रात: में साहूकार ने देखा कि चोर उसके सब जेवर और धन दौलत चुराकर ले गए| तो वह विलाप करके रोने लगा| रोने की आवाज सुनकर पडोसी भी इकटठे हो गए| उसी समय कुत्ता साहूकार की धोती पकड़ कर एक दिशा की ओर खींचने लगा|

पड़ोसियों ने कहा कि कुत्ता तुम्हे कहीं लेजाना चाहता है| अत: सभी लोग कुत्ते के पीछे पीछे चल दिए| कुत्ते ने गड्ढे के पास पहुँच कर अपने पैरों से गड्ढे की मिटटी हटानी शुरू कर दी| मिटटी के हटते ही सारा सामान दिखाई  देने लगा| जिसे देख कर साहूकार बहुत खुश हुआ|

साहूकार ने मन में  विचार किया कि इस कुत्ते के कारण आज मेरा सब धन दौलत और जेवरात चोरी होने से बच गया है| आज इसने अपने मालिक के द्वारा लिया हुआ कर्ज ब्याज सहित चुकता कर दिया| अत: अब मुझे इस कुत्ते को गिरवी के रूप में अपने पास रखने का कोई अधिकार नहीं है|

साहूकार ने उपरोक्त सभी बातों को एक तख्ती पर लिख कर कुत्ते के गले में बाँध दिया|और कुत्ते को मुक्त कर दिया| कुत्ता मुक्त होकर अपने मालिक के पास चल दिया|

लक्खी बंजारे ने दूर से कुत्ते को आता देखकर सोचा कि मेरा कुत्ता साहूकार से बेवफाई करके भाग आया है| ऐसा विचार मन में आते ही उसने जोश में होश खोकर अपनी बुद्धि का प्रयोग न करते हुए विवेकहीन होकर कुत्ते को गोली मार दी|

कुत्ते के मरने के बाद बंजारे ने उसके पास जाकर उसके गले में पड़ी हुई तख्ती पढ़ी तो वह आत्मग्लानि से भर गया|और उसने जोश में होश खोकर अपने वफादार कुत्ते को खो दिया| जिसका उसे तमाम उम्र पछतावा रहा|

अत: हमें कोई भी कार्य करने से पहले अपनी बुद्धि का प्रयोग कर मन में विवेक पूर्ण विचार करके ही कार्य को करना चाहिए ताकि बाद में अपने द्वारा किये गए कार्य पर बंजारे की तरह पछताना न पड़े|



 

Thursday, November 14, 2013

मानव,दानव|

रामायण में जब किसी राक्षस का वर्णन आता है तो हम कल्पना करते हैं कि राक्षसों के दो सींग,बड़े बड़े दांत व् लम्बे,लम्बे नाख़ून होते थे| और वह मानव जाति को तरह तरह से सता कर उनका खून पीते थे| परन्तु ऐसा कुछ नहीं है|

आदमी के ही दो रूप होते हैं| सात्विक और सद्विचारों के साथ जीवन बिताने वाले को मानव,और राक्षसी विचारधारा के साथ मांस व् शराब आदि तामसी भोजन का प्रयोग करने वाले को राक्षस कहते हैं| बच्चा जब पैदा होता है तब उसका स्वभाव सोम्य और निर्मल होता है| उसका मन कुम्हार की मिटटी के समान होता है| जिस प्रकार कुम्हार मिटटी को ढाल, ढाल कर सुन्दर सुन्दर बर्तन बनाता है उसी प्रकार बच्चे के कोमल मन पर परिवार के संस्कारों व् विचारों का जैसा जैसा प्रभाव पड़ता है उसी दिशा में उसका विकास होने लगता है


आज हमारे समाज में मनुष्य अनेक प्रकार की प्रति स्पर्धा के बीच जीवन व्यतीत करता है| अपने से अधिक सामर्थ्यवान व्यक्ति के पास अपने से अधिक वस्तुएं देख कर उसका मन कुंठा से भर जाता है| उसके समान जीने की प्रति स्पर्धा के कारण वह गलत तरीके से धनोपार्जन करने हेतु गलत काम करने लगता है तब उसका स्वभाव बदलने के कारण वह मानव से दानव बन जाता है|

पाप की दुनिया चकाचोंद भरी होती है| मनुष्य एक बार गलत काम करके इसकी दलदल में फंसता चला जाता है| इससे बचने के लिए हमें अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है| हमें अपनी मुलभुत आवश्यकताओं की पूर्ति अच्छे मार्ग पर चलते हुए करनी चाहिए| कबीर दास जी ने कहा है कि:-

                                सांई इतना दीजिये जामे कुटुम्ब समाय|
                               मैं भी भूखा न रहूँ साधू भी भूखा न जाए||

अच्छे संस्कारों के मिलने से दानव भी मानव बन सकता है| जैसे बाल्मीकि ऋषि अपने परिवार के पालन हेतु लूट खसोट का कार्य करते थे| एक बार उन्होंने रास्ते में जा रहे साधुओं को रोक कर लूटने का प्रयत्न किया| साधुओं ने कहा हम अपना सब कुछ तुम्हे स्वयं ही दे देंगे| परन्तु तुम हमारे एक प्रश्न का उत्तर दो कि तुम यह गलत कार्य किसके लिए करते हो?

बाल्मीकि जी ने कहा कि मैं यह गलत कार्य अपने परिवार के पालन हेतु करता हूँ| साधुओं ने कहा कि तुम अपने परिवार वालों से यह पूछ कर बताओ कि मेरे द्वारा गलत रास्ते से कमाए गए धन के पाप कर्म में भी आप बराबर के हिस्सेदार बनोगे?

बाल्मीकि जी ने कहा बहुत खूब मैं परिवार वालों से पूछने जाऊं और तुम रफूचक्कर हो जाओ| साधुओं ने कहा तुम हमें पेड़ से बांध कर चले जाओ| साधुओं की बात मान उन्हें पेड़ से बांध कर वह अपनी पत्नी से पूछने के लिए घर आया|

बाल्मीकि जी ने पत्नी से वही प्रश्न किया तो पत्नी ने उत्तर दिया कि तुम्हारे द्वारा किये गए किसी भी अच्छे या बुरे कार्य में हम कैसे हिस्सेदार हो सकते हैं| पत्नी की बातें सुन कर उनका मन अपने आप से घर्णा करने लगा| उन्होंने तुरंत वापस आकर साधुओं को खोल दिया,और तपस्या करने के लिए बनों में चले गए| तपस्या करके बाल्मीकि जी दानव से मानव बनकर बहुत बड़े ऋषि बने|

समाज में कुछ ऐसी भी घटनाएँ घटित होती हैं कि शक्तिशाली व्यक्ति के द्वारा अपने से कमजोर व्यक्ति को आवश्यकता से अधिक सताए जाने पर भी वह मजबूरीवश उससे बदला लेने के लिए बहुत बडा बदमाश(दानव) बन जाता है|

अत:जो व्यक्ति सत्य मार्ग पर चलते हुए समाज द्वारा बनाये गए नियमों का पालन करते हुए अपने परिवार का पालन करता है सही मायने में वही सच्चा मानव कहलाने का अधिकारी है|

 

Monday, November 11, 2013

नफ़रत की बदबू|

एक छोटी कक्षा में पढने वाले बच्चे आपस में लड़ झगड़ कर एक दुसरे की शिकायत गुरु जी से किया करते थे| गुरु जी के समझाने के बाद भी उनमे झगडे होते ही रहते थे|

एक दिन गुरु जी ने विचार किया कि इनको खेल के माध्यम से नफरत के विषय में शिक्षा देनी चाहिए| अत: उन्होंने एक प्लास्टिक का एक एक छोटा थैला सभी बच्चों को देकर कहा कि मैं तुम्हारे साथ एक खेल खेलना चाहता हूँ|

गुरु जी ने कहा कि प्रत्येक छात्र अपने घर से स्केच पेन के द्वारा अलग अलग आलूओं पर उन बच्चों के नाम लिख कर लायेगा जिन जिनके साथ झगडा होता है| अगले दिन प्रत्येक छात्र से उन्होंने पूछा कि बताओ आपके थैले में कितने कितने आलू हैं?

किसी छात्र ने कहा कि मेरे थैले में दो आलू हैं, किसी ने तीन तो किसी ने पांच आलू बताये| कुछ बच्चों ने कहा कि हमारे थैले में एक भी आलू नहीं है| क्योंकि हमारा किसी से झगडा नहीं होता है|

गुरु जी ने कहा हमारे खेल के अनुसार आपको एक सप्ताह तक सोते जागते यह थैला हर समय अपने पास रखना होगा|

एक सप्ताह बाद गुरु जी ने बच्चों से थैले के आलूओं के विषय में पूछा| तो सभी बच्चों ने कहा कि थैले के सभी आलू सड़ गए हैं| उनमे से बदबू आरही है|

तब गुरु जी ने बच्चों को समझाया कि जिस प्रकार आलू एक साथ रहकर भी बिना शुद्ध हवा के सड़ गए उसी प्रकार हमारे अन्दर से भी प्यार रूपी हवा से दूर रहने पर नफरत रूपी बदबू आने लगेती है| इसलिए हमें आपस के झगडे रूपी नफरत की बदबू से दूर रहकर प्यार रूपी हवा में मिलजुल कर रहना चाहिए|  

Wednesday, November 6, 2013

गुल्लर भी पकवान|

गर्मियों के दिन थे| एक गडरिया भेड़ चराने जंगल गया हुआ था| भयंकर गर्मी पड रही थी मानो आकाश से आग बरस रही हो| ऐसे में वह गडरिया एक पेड़ के नीचे लेट कर सो गया|

एक राजा जंगल में शिकार खेलने के लिए गया हुआ था| कि वह अपने काफिले से बिछड़ कर रास्ते से भटक गया| इधर उधर भटकते हुए भुख, प्यास से परेशान राजा ने अचानक से गडरिये को देखा|

राजा ने विनय भरे शब्दों में कहा, थोडा पानी मिलेगा? गडरिये ने अपने गिलास से राजा को पानी पिलाया| पानी पीने के बाद राजा की जान में जान आई| तब उन्होंने पूछा कि क्या कुछ खाने को भी मिलेगा?

राजा की बात सुन गडरिये ने कहा कि हे भाई मैं दोपहर के लिए दो रोटी लेकर आता हूँ| अत:एक रोटी तुम खा लो एक मैं खा लूँगा|

ऐसा कह कर उसने एक मोटी अधपकी नमक की रोटी पर गंठा(प्याज )रखकर खाने के लिए दी| भुख से परेशान राजा ने उस अधपकी नमक की रोटी को बड़े ही चाव से खायी| कहते हैं कि भुख में गुल्लर भी पकवान|

अब जैसे ही राजा को ख्याल आया कि मैं जंगल में भटका हुआ हूँ| तो उसने गडरिये से कहा कि देखो भाई मैं इस इलाके का राजा हूँ| अपने काफिले के साथ जंगल में शिकार खेलने आया था| काफिले से बिछड़ कर रास्ते से भटक गया हूँ, अत:रास्ता बता कर मेरी सहायता करें|

राजा की बात सुन गडरिया डर से कांप कर कहने लगा कि महाराज मैंने भूलवश आपके साथ अपने समकक्ष व्यवहार किया है| मैंने रुखी सुखी रोटी खिलाकर आपका अपमान किया है| मैं आपका अपराधी हूँ जो चाहें सजा दें|

राजा ने कहा हे भाई तुमने भूख  प्यास से मेरी जान बचाई है आप तो मेरे प्राणदाता हो आज से तुम मेरे मित्र हो आप मेरे मित्र के रूप में सदा आमंत्रित हैं| गडरिये के द्वारा रास्ता बताने पर राजा अपने शहर चले गए| गडरिये ने घर आ कर राजा से अपनी मित्रता के विषय में पत्नी को बताया|

बारिश न होने से उस इलाके में अकाल पड गया| पानी व् घास की कमी के कारण गडरिये की भेड़ बकरियां भी एक एक करके मरने लगी| गडरिये की पत्नी ने कहा कि तुम्हारा तो राजा मित्र है| ऐसी मुसीबत के समय में उनसे सहायता मांग कर देख लो|

पत्नि की बात सुन कर गडरिया राजा से मिलने उसके शहर पहुंचा| राजा ने उसे देख गले से लगा कर अपने दरबारियों से अभीष्ट मित्र की भांति परिचय कराकर उसे महल में ले गया| तथा आदर सहित ठहरा कर उसकी सेवा में अनेक दास दासियाँ छोड़ दी|

गडरिया अनेक प्रकार के सुख जैसे स्वादिस्ट भोजन. दास दासियों के द्वारा सेवा किया जाना व् मखमली गद्दों पर सोना इत्यादि प्रकार के आराम के कारण यहाँ आने का उद्देश्य भी भूल गया|

प्रति दिन राजा उससे मिलने आते थे| एक दिन हालचाल पूछने पर उसने कहा कि मुझे आज रात में ठीक से नींद नहीं आई| राजा के पूछने पर उसने कहा कि रात भर कुछ चुभता रहा है|

नौकर के द्वारा बिस्तर देखने पर गद्दे की ऊपरी सतह में एक बिनोला मिला| जिसके चुभने के कारण गडरिये को नींद नहीं आई|

इस पर राजा ने कहा कि इसमें इसका कोई दोष नहीं है| पहले इसे भेड़ बकरी चराते चराते भीषण गर्मी में पेड़ के नीचे ऊबड़ खाबड़ जमीन पर नींद आ जाती थी| परन्तु यहाँ मिली सुविधाओं के कारण समय बिताने पर एक बिनोला ही कष्ट पहुंचा रहा है|

अत:उपरोक्त कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि जिस प्रकार एक राजा जो प्रतिदिन अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन चखता था उसे भुख, प्यास में रुखी सुखी रोटी भी स्वादिष्ट पकवान से अच्छे लगे|और इसके विपरीत गडरिये को राजसी सुविधाओं के मिलने पर एक बिनोला भी चुभने लगा| उसी प्रकार हमारे मन की स्थिति है| हमें हर परिस्थिति में मन पर कंट्रोल रख कर कर्म करते रहना चाहिए|

Thursday, October 31, 2013

अन्न और मन|

खान पान का मनुष्य के रहन सहन, स्वास्थ्य, आचार विचार और व्यवहार पर बहुत प्रभाव पड़ता है| खान पान के अनुसार ही मनुष्य के अन्दर गुण या अवगुण आते हैं| खाना दो प्रकार का होता है| राजसी खाना तथा तामसी खाना|

राजसी खाना खाने वाले व्यक्ति में रजो गुण तथा तामसी खाना खाने वाले व्यक्ति में तमो गुण का समावेश होता है| प्राय:राजसी भोजन खाने वाला व्यक्ति सहनशील, गंभीर और दूसरों के प्रति समर्पित होता है तथा तामसी भोजन खाने वाले व्यक्ति का स्वभाव अक्सर चिडचिडा और गुस्सेला होता है| कहते हैं कि:-

                      जैसा खाए अन्न वैसा हो मन | जैसा पीये पानी वैसी हो वाणी ||

उपरोक्त के विषय में एक घटना इस प्रकार है| एक साधू ने भ्रमण करते करते रात्रि होने पर किसी गाँव में पहुँच कर एक ग्रामीण का दरवाजा खटखटाया| और रात्रि विश्राम की इच्छा प्रकट की| उस व्यक्ति ने साधू को आदर सहित अपने घर पर ठहरा कर व् भोजन खिला कर घर के बरामदे में विश्राम हेतु बिस्तर बिछा दिया|

बिस्तर पर लेटने के बाद साधू ने देखा कि आँगन में एक बहुत सुन्दर हस्ट पुष्ट घोडा बंधा है| उसे देख कर साधू के मन में विचार आया कि मुझे पैदल चल कर गाँव दर गाँव जाने में कष्ट होता है| यदि यह घोडा मेरे  पास हो तो मैं शीघ्र ही दुसरे गाँव पहुंच सकता हूँ|

ऐसा विचार कर साधू आधी रात के बाद आँगन से घोडा चुरा कर आगे के लिए चल दिया| चलते चलते भोर हो गयी तो उसे दिशा मैदान अर्थात मल त्यागने की इच्छा हुई तो घोड़े को एक पेड़ से बांध दिया|

उपरोक्त कार्य से फारिग होने पर जब साधू घोड़े के पास आया तो अचानक से मन में विचार आया कि जिस व्यक्ति ने मुझे रात्रि विश्राम के लिए स्थान दिया मैंने उसी व्यक्ति का घोडा चुरा लिया| साधू मन ही मन बहुत दुखी हुआ कि मैंने यह घ्रणित कार्य क्यों किया?

ऐसा सोचने पर साधू ने वापिस आकर घोडा उस व्यक्ति को वापिस लोटा दिया| घोडा चुराने का पश्चाताप कर साधू ने उस व्यक्ति से पूछा कि तुम क्या काम करते हो? उस व्यक्ति ने कहा मैं चोरी करके अपने परिवार का पालन पोषण करता हूँ|

इस पर साधू ने कहा कि ठीक है मुझे मेरे मन के डामाडोल होने का उत्तर मिल गया| मैंने तुम्हारे यहाँ एक समय का अन्न जल खाया पिया है जिसके कारण मेरा मन डोल गया| और मेरे द्वारा यह घ्रणित कार्य होगया| भोर में मल त्यागने के बाद ही मेरी भ्रमित बुध्धि  ठीक हुयी|

अत: अन्न और मन का आपस में गहरा रिश्ता है| हमें अपने खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि हमारा तन और मन दोनों स्वस्थ रहें| 

Saturday, October 26, 2013

विधार्थी|

विधार्थी कैसा होना चाहिए? विधार्थी के अन्दर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कौन कौन सी विशेषताएं होनी चाहिए? इस विषय में कहा गया है कि:-
    
                                              काक चेष्टा वको ध्यानम श्वान निद्रा तदेव च |
                                              अल्प हारी  ग्रह त्यागी  विधार्थी  पंच लक्षणं   ||

विधार्थी के अंदर कव्वे जैसी लग्न, बगुले की तरह पढाई पर ध्यान तथा कुत्ते जैसी तुरंत जागने वाली नींद होनी चाहिए| विधार्थी को कम भोजन करना चाहिए ताकि आलस्य दूर रहे| ग्रह त्यागी अर्थात घर के शोर शराबे से दूर रहना चाहिए|

 पुराने समय में विधा ग्रहण करने हेतु बच्चों को गुरु के आश्रम में भेजते थे| आज भी बच्चों को गुरुकुल या होस्टल में शिक्षा प्राप्त करने हेतू भेजा जाता है| यदि बच्चे घर पर ही पढ़ते हैं तो उन्हें घर के एकान्त स्थान पर या अलग कमरे में ही पाठन कार्य करना चाहिए|

एक बार एक लड़का गुरु जी के पास पढने के लिए आया| गुरु जी ने देखा कि लड़का कुछ मंद बुध्धि है. परन्तु लड़के के अन्दर उपरोक्त सभी विशेषताएं थी| इसी कारण गुरु जी भी उस बालक का विशेष ध्यान रखते हुए एक ही बात को बार बार पूछने पर समझाते थे| गुरु जी उसे पढाने में गुस्से और प्यार दोनों का प्रयोग करते थे आहिस्ता आहिस्ता गुरु और शिष्य का परिश्रम रंग लाया, और उस मंद बुध्धि बालक ने उच्च शिक्षा प्राप्त की| जैसे करत करत अभ्यास के जड़ मत होत सुजान|

ऐसे बहुत उदाहरण हैं कि निर्धन व्यक्ति का बच्चा भी इन्ही गुणों के कारण अनेक कष्टों को सहता हुआ उच्च
  शिक्षा प्राप्त कर लेता है|

आज के इस आधुनिक युग में शिक्षा देना व् शिक्षा लेना दोनों ही कार्य का आधुनिकरण हो गया है  गुरु, शिष्य के सम्बन्ध बदल गए हैं गुरु अपने कर्तव्य को भूल कर अतिरिक्त समय में पढ़ा कर धन इकठ्ठा करते हैं, जबकि गुरु को अपने शिष्य को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए|

आज के इस आधुनिक युग में परिवार के द्वारा मिली सुविधाओं के कारण शिष्य के अन्दर भी आज के इस आधुनिक युग की हवा प्रवेश कर गयी है| माना कि हमें समय के साथ साथ चलना चाहिए परन्तु होता उल्टा है| बच्चे इस आधुनिक युग की हवा में चलते ही नहीं बल्कि दौड़ने लगते हैं जिसके कारण वह अपनी दशा और दिशा दोनों से भटक जाते हैं|

अत:अभिभावकों को भी अपने व्यस्त समय में से थोडा सा समय निकल कर अपने बच्चों के प्रति बहती इस आधुनिक हवा के साथ तालमेल बिठाकर उन्हें ऊँचे आदर्श और उच्च शिक्षा दिलाने हेतु उन पर नजर रखते हुए प्रयत्नशील रहना चाहिए|

Wednesday, October 23, 2013

सच्ची भक्ति|

हमारे देश में श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शिव् रात्रि का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है| भक्तगण लाखों की संख्या में भगवे वस्त्र पहन कर कुछ दिन पहले से ही गौमुख, हरिद्वार आदि स्थानों से कावड में गंगाजल भर कर लाते हैं| तथा अलग अलग स्थानों पर पैदल चल कर पहुँचते हैं|

जब कावडिये झुंडों के रूप में सड़क मार्ग से जयकारे लगाते हुए भगवे वस्त्र पहने हुए चलते हैं तो बहुत ही विहंगम द्रश्य दिखाई देता है|

एक बार माता पार्वती जी ने ऐसे द्रश्य को देख कर शिवजी जी से कहा कि देखो महाराज आपके भक्त कितने कष्ट उठाते हुए पैदल चल कर आपको प्रसन्न करने के लिए श्रद्धाभाव से जल चढाते हैं फिर भी आप चन्द भक्तों का ही क्यों कल्याण करते हो?

शिवजी जी ने कहा, हे देवी पार्वती ये सभी मेरे सच्चे भक्त नही हैं| आप इनका तरह तरह का नशा करने के बाद वार्तालाप तो सुनिए| जो व्यक्ति मुझे सच्चे मन से याद करते हैं मैं उनका कल्याण अवश्य करता हूँ|

पार्वती जी उनके इस उत्तर से संतुस्ट नहीं हुयी| तो शिव जी ने कहा कि ठीक है हम इनके बीच भेष बदल कर चलते हैं तब आपको स्वयं ही मालूम हो जायेगा|

उन्होंने स्वयं एक अपाहिज रुग्ण बूढ़े व्यक्ति का रूप धारण कर पार्वती जी से कहा कि तुम एक सुन्दर नवयुवती का रूप धारण कर मुझे अपने कन्धों पर बैठा कर इनके बीच चलो|

पार्वती जी एक सुन्दर नारी का रूप धारण कर शिवजी जी को अपने कन्धों पर बिठा कर कावड़ियों के बीच मार्ग में चलना शुरू किया तो कुछ कावड़ियों ने इन्हें देख कर तरह तरह की फब्तियां कसनी शुरू कर दी| कोई कहता कि तुम इतनी सुन्दर और जवान होकर इस बूढ़े खूसट के साथ अपना जीवन क्यों नष्ट कर रही हो, इसे छोड़ कर हमारे साथ चलो, और जीवन का आनंद लो, कोई कहता कि अरे बूढ़े तूने इस स्त्री का जीवन बर्बाद कर दिया है मर क्यों नहीं जाता| इसी प्रकार कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता|

ऐसी फब्तियों को सुन कर शिवजी जी ने पार्वती जी से कहा कि देखो मेरे कैसे कैसे भक्त हैं| उसी समय अचानक एक जवान कावड़िया कंधे पर कावड लिए उनके पास पहुंचा और कहने लगा कि बहन आप इन्हें कहाँ ले कर जा रही हो?

पार्वती जी ने कहा कि हे भाई मुझे एक साधू ने कहा है कि श्रावण मास की चतुर्दशी को अमुक स्थान पर शिवजी जी के मंदिर इनके हाथों से जल चढवा दोगी तो ये ठीक हो जायेंगे इसलिए मैं इनसे मंदिर में गंगाजल चढ़वाना चाहती हूँ| वह व्यक्ति कहने लगा बहन मैं आपकी मदद करना चाहता हूँ आप इन्हें मेरे कंधे पर बिठा दें तो मैं इन्हें मंदिर तक पहुंचा दूंगा|

पार्वती जी ने कहा कि भैया तुन्हारे कंधे पर तो पहले से ही कावड है आप इन्हें कंधे पर कैसे बिठाओगे? तब उसने कहा कि हे बहन मेरे से अधिक आपके पति के द्वारा शिवजी जी पर जल चढ़ाना अति आवश्यक है| मेरा क्या है मैं तो अपनी कावड अगले वर्ष भी चढ़ा लूँगा| यह कोई कुम्भ का मेला तो है नहीं जो बारह साल के बाद आएगा|

ऐसा कहकर उसने आग्रहपूर्वक कहा कि एक भाई के होते बहन कष्ट में हो तो भाई का कावड चढाने का कोई महत्व नहीं है|

उसकी ऐसी आग्रहपूर्वक और भावनाओं से भरी वाणी को सुनकर शिवजी जी ने पार्वती जी से कहा कि देखो पार्वती इस विशाल भीड़ में मेरा यह भी एक भक्त है| ऐसा कहकर शिवजी महाराज ने पार्वती जी के साथ उसे दर्शन देकर क्रतार्थ किया|

अलग अलग धर्म के साधू, संत, फ़कीर व् मुल्ला मोलवी भी हमें यही शिक्षा देते हैं कि मानव जीवन प्राप्त होने पर यदि मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब व् बीमार व्यक्तियों की सहायता करे और सत्य मार्ग पर चलते हुए जीवन व्यतीत करे तो यही भगवान की सच्ची भक्ति है|


 

Sunday, October 20, 2013

कुत्ते की शादी|

आज के आधुनिक समय में कुत्ते व् कुतिया की शादी भी होने लगी है| लंदन में दिनांक ०३ मई २०११ को एक महिला ने अपनी पालतू कुतिया की शादी पर लगभग २०,००० पोंढ (करीब १४ लाख रूपये )खर्च किये| जैसे एक हजार पोंढ दुल्हन की पोशाक पर, चार हजार पोंढ़ फूलों के गुलदस्ते गुब्बारे आदि सजावट की चीजों पर, कुछ दुल्हे के कपड़ों पर तथा लगभग अस्सी बारातियों की पार्टी पर खर्च किये|

इसी प्रकार दिनांक १३-७-२०१२ को  एक कुत्ते, कुतिया की शादी अमेरिका के न्यूयार्क शहर के सेंट्रल पार्क में संपन्न हुयी| जिसमे १,५८,१८७.२६ डालर ( ९५ लाख रूपये )खर्च हुए|

हमारे भारत देश में भी हाल ही में एक कुत्ते की शादी का किस्सा सामने आया. यह शादी अमृतसर में  ११ सितम्बर को हुई और हनीमून लंदन में मनाया गया. यह शादी इतने धूमधाम से मनाई गयी कि मीडिया ने भी इस किस्से को खूब उछाला|

शादी तो एक अतिश्योक्ति से कम नहीं है लेकिन कुत्तों पर अनेक प्रकार से धन लुटाया जाता है| कुत्तों को तरह तरह के शेम्पू से नहलाया जाता है ब्यूटी पार्लर के द्वारा मेकअप कराया जाता है| बाज़ार में भी कुत्तों के लिए अनेक प्रकार के  ब्रांडेड खाने  उपलब्ध है|

देहली की एक कालोनी में प्रियवदा शर्मा ने अपनी ओरिया नाम की कुत्तिया का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाया| उसकी चोबीस घंटे सेवा के लिए एक नोकरानी रक्खी हुयी है जो उसके सभी काम करती है| वह उसके लिए मांसाहारी भोजन भी तैयार करती है जबकि उनके घर में मांसाहारी भोजन नहीं खाते हैं|

हमारे देश के कुछ लोग विदेशों से विदेशी नस्ल के कुत्ते मंगाने पर बहुत धन खर्च करते हैं| जबकि दिनांक १५-४-२०१३ से हमारे देश में विदेशी नस्ल के कुत्ते मंगाने पर प्रतिबंध है|

हमारे देश में मध्यमवर्गीय व् निम्न श्रेणी के परिवारों का ब्रांडेड खाना, होटलों में जाना ब्यूटी पार्लर में मेकअप कराना एक सपना होता है|जबकि ये सभी सुविधाएँ कुत्तों को उपलब्ध हैं|

माना कि कुत्ता मनुष्य का एक अच्छा दोस्त है| वह एक वफादार नौकर की तरह निस्वार्थ भाव से अपने मालिक की रक्षा करता है| हमें भी हर प्रकार से उसके खानपान, रहन सहन तथा बीमार होने पर दवा का ध्यान रखना चाहिए| लेकिन हमें उस पर अपनी शानोशौकत दिखाने में इस प्रकार धन नहीं लुटाना चाहिए|

अन्त में मैं अपने देश के उन सभी कुत्ता प्रेमियों से अनुरोध करता हूँ कि वह कुत्ते को अपना वफादार साथी समझ कर उचित धन खर्च करें| अच्छा हो कि बचाए गए धन से दुधारू पशु पालने की व्यवस्था करें जिससे मेरे देश में फिर से घी दूध की नदियाँ बहने लगे और सभी हस्ट पुष्ट हों|

Thursday, October 17, 2013

चमड़े का जूता|

एक देश के राजा ने अपने मंत्रियों से अपनी प्रजा के सुख दुःख के विषय में पूछा| मंत्रियों ने अपने अपने हिसाब से बताया कि प्रजा ठीक प्रकार से जीवन व्यतीत कर रही है| राजा मंत्रियों की बातो से संतुस्ट नहीं हुए|

राजा ने विचार किया कि मुझे खुद प्रजा के बीच जा कर उनके बारे में जानना चाहिए| राजा भेष बदल कर अपने राज्य के गाँव गाँव और शहर शहर गए|

राजा ने देखा कि उसके राज्य में प्रत्येक व्यक्ति हंसी ख़ुशी के साथ रह रहा है प्रत्येक व्यक्ति के पास रहने, खाने और पहनने का उचित प्रबंध है| इसके साथ साथ राजा ने देखा कि लोग नंगे पैरों से सड़क पर घूमते हैं जिसके कारण सड़क पर पड़े छोटे छोटे कंकर पत्थर चुभने के कारण उनके पैरों में घाव हो जाते हैं| ऐसा देख कर राजा को बहुत दुःख हुआ|

राजा ने वापस आकर मंत्रियों को आदेश दिया कि राज्य की सभी सड़कों को चमड़े से ढक दिया जाये ताकि लोगों को नंगे पैर सड़क पर चलने से कोई घाव न हो|

राजा की बातें सुनकर सभी मंत्रियों ने मंत्रणा की| उन्होंने विचार किया कि राज्य की सभी सडकों को चमड़े से ढकने में राजकोष का पूरा धन खर्च करने पर भी यह कार्य पूर्ण नहीं होगा|

सभी मंत्री राजा के पास पहुंचे और राजकोष की स्तिथि से अवगत कराया| तभी एक वरिष्ठ मंत्री ने राजा से  निवेदन किया कि महाराज यदि राज्य के व्यक्तियों के पैरों पर चमड़ा चढवा दिया जाए तो लोगों के पैरों में जख्म भी नहीं होंगे और धन भी अधिक नहीं लगेगा| उसकी सलाह सबको अच्छी लगी और राजा के द्वारा आदेश जारी कर दिया गया|

ऐसा मानते हैं कि उसी समय से चमड़े के जूते पहनने का प्रचलन शुरू हुआ|

Wednesday, October 16, 2013

आँखों की शर्म|

उपरोक्त विषयक एक घटना इस प्रकार है| एक व्यक्ति परिवार सहित एक शहर में रहता था| उसका एक पुत्र बुरी संगत के कारण शराब पीने लगा|

एक दिन वह किसी होटल में बैठा शराब पी रहा था| उसके पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति ने उसे शराब पीते हुए देख लिया| वापस आ कर पडोसी ने उसके पिता जी से कहा| ऐसा सुन कर पिता जी को विश्वास नहीं हुआ, उन्होंने कहा कि मेरा बेटा शराब पी ही नहीं सकता तुमने किसी और को देखा होगा| तुम मेरे बेटे पर गलत दोष लगा रहे हो|

कुछ समय बाद फिर उस व्यक्ति ने उसी लड़के को किसी दुसरे होटल में शराब पीते देखा तो उसने वापस आ कर उसके पिता जी से कहा कि मैंने निश्चित रूप से तुम्हारे बेटे को ही होटल में शराब पीते हुए देखा है तो उसके पिता जी ने कहा कि देखो भाई जब तक मैं अपनी आँखों से न देख लूँ तब तक मुझे विश्वास नहीं होगा|

उनकी ऐसी बातें सुन कर वह व्यक्ति अपने को अपमानित समझ गुस्से से कहने लगा कि आँखों से देखकर तो विश्वास करोगे? पिता जी के हाँ कहने पर उसने कहा कि तुम्हारे बेटे को शराब पीते देखकर मैं तुम्हे फोन करूँगा मेरे बताये पते पर तुम्हे तुरंत पहुंचना होगा| ऐसा कह कर वह व्यक्ति चला गया

एक दिन फिर उस लड़के को एक होटल में शराब पीते देख कर उस व्यक्ति ने लड़के के पिता जी को सूचित कर अपने बताये पते पर बुला लिया|

लड़के ने अपने पिता जी को होटल में प्रवेश करते हुए देख लिया| उसने देखा कि उसका पडोसी उसके बारे में पिता जी को बता रहा है तो उसने तुरंत मेज पर रक्खी हुई माचिस को अपनी और पिता जी की आँखों के बीच इस प्रकार से लगायी कि दोनों की आंखे एक दुसरे से न टकराएँ और आँखों की शर्म बनी रहे|

पिता जी ने अपने पुत्र की भावनाओं को समझ कर उधर देखना बंद कर दिया| उसी समय उसके पडोसी ने कहा कि देखो उस मेज पर बैठा तुम्हारा बेटा शराब पी रहा है| इस पर तुरंत उसके पिता जी ने कहा कि उस मेज पर तो कोई शर्मदार व्यक्ति बैठा है जो हमें देखकर अपनी आँखों के आगे माचिस लगा कर अपने आप को छिपा रहा है इसका मतलब है कि अभी उसकी आँखों में शर्म बाकी है अब हमें चलना चाहिए|

अपने पिता जी की बातें सुनकर वह बहुत प्रभावित हुआ| इस घटना से उसकी आँखें शर्म से झुक गई और उसने शराब पीनी छोड़ दी|

Sunday, October 13, 2013

भय का भुत

मान्यता के अनुसार संसार में भुत प्रेत का अस्तित्व होता है| कभी कभी वह प्राणी को कष्ट भी देने लगते हैं| परन्तु कभी कभी किसी डर या भ्रान्तिवश भी एक साधारण सी घटना को व्यक्ति भुत समझ कर डर जाता है|

इस विषय में मैं एक घटना का वर्णन करता हूँ| एक व्यक्ति अपनी पत्नि व् बच्चों के साथ एक मकान में रहता था| एक दिन उस व्यक्ति का भाई अपने एक मोलवी मित्र के साथ उनके यहाँ आये और रात्रि विश्राम किया|

मध्य रात्रि में अचानक उसके भाई की तबियत ख़राब हो गयी| जिसके कारण वह जोर जोर से बडबड़ाने लगे| जोर से बडबडाने  के कारण परिवार के सभी सदस्य व् मोलवी जी भी जाग गए| मोलवी जी ने कहा कि इस मकान में कोई प्रेत आत्मा (भुत )निवास करती है जो इन्हे परेशान कर रही है| मैं उस भुत को अभी भगाता हूँ ऐसा कह कर मोलवी कुछ मन्त्र कहते हुए उनके ऊपर पानी के छींटे मारने लगा| कुछ समय पश्चात् उनका बडबडाना शांत हो गया और वह ठीक हो गए|

अगले दिन उनका भाई व् मोलवी तो अपने घर चले गए परन्तु वह और उसका परिवार भुत प्रेत के कारण बहुत डर डर कर रहने लगे, डर के कारण उनका दिन का चैन और रात की नींद ख़राब हो गयी|

एक रात वह परिवार सहित मकान के बरामदे में सोने के लिए लेटे थे कि अचानक बहुत तेज आंधी तूफ़ान आया, बिजली चली जाने से अँधेरा हो गया और हल्की हल्की बारिस होने लगी|

ऐसे वातावरण में उन्हें डर लग रहा था अचानक उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि आँगन की दीवार के पास कोई आदमी है जो शनै शनै बडा होने लगा तो वह परिवार भुत समझ कर बहुत जोर जोर से चिल्लाने लगा| उसी समय बिजली आने से रौशनी हो गयी उन्होंने देखा कि दीवार पर हल्की हल्की बूंदे पड़ने के कारण एक आक्रति सी बन रही थी जो आहिस्ता आहिस्ता बड़ी होकर पूरी दीवार गीली हो गयी जिसे देखकर उनके मन से भुत का डर दूर हो गया|

कभी कभी मनुष्य डर के कारण भी भय के भुत का शिकार हो जाता है| वह परिवार पहले से ही भुत प्रेत के डर से ग्रसित था जिसके कारण दीवार पर पानी के फैलने को ही वह भुत प्रेत समझ बैठा और डर गया|  

Thursday, October 10, 2013

भूतों का त्यौहार|

भारत मे ही नहीं अपितु पुरे विश्व मे भूत प्रेतों पर विश्वास किया जाता है| अमेरिका जैसे विकसित देश मे भी हर वर्ष इकतीस अक्तूबर को हेलोवीन के नाम से भूतों से सम्बन्धित एक त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है|

प्रत्येक अमेरिकन कुछ दिन पहले से ही अपने घरों के बाहर भूतों की मूर्तियाँ, मकड़ी का जाला, मकड़ी, नर कंकाल आदि लटकाते हैं| तरह तरह की डरावनी आकर्तियों को अपने बाहर के पेड़ों पर लटकाकर उनके पीछे लाइट जलाते हैं,जिन्हें देख कर डर भी लगता है| घर के द्वार के दोनों ओर पम्पकीन (कद्धू) सजा कर रखते हैं| जिन मकानों के बाहर सीडियां होतीं हैं उनकी पेडियों पर भी पम्पकीन पर तरह  तरह की डरावनी आक्रतियाँ बना कर रखते हैं|

यह त्यौहार घर पर ही नहीं बल्कि स्कूलों मे भी एक उत्सव के रूप में मनाते है| बच्चें स्कूल  में अनेकों प्रकार की  डरावनी भूतों  वाली ड्रेस पहन कर जाते हैं| इस दिन ऑफिस और मॉल को भी भूतों की डरावनी तस्वीरें लगा कर सजाया जाता है|

इस दिन बच्चें तरह तरह की डरावनी पोशाकें पहन कर घर घर जाते हैं| प्रत्येक घर से बच्चों को टाफी व् चाकलेट मिलती है| लोग परिवार सहित बच्चों को भूतों वाली ड्रेस में ही मॉल में घुमाने ले जाते है| इस प्रकार यह त्यौहार अमेरिका में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है|

भक्त की परीक्षा|

एक बार श्री कृष्ण जी से अर्जुन ने कहा कि इस संसार में मेरे समान आपका कोई भक्त नहीं है परन्तु कृष्ण जी जी ने कोई उत्तर नहीं दिया| इससे खीज कर अर्जुन इस बात को बार बार दोहराने लगे| अर्जुन के द्वारा बार बार ऐसा कहने पर कृष्ण जी ने कहा कि चलो कहीं दुसरे स्थान पर चल कर देखते है| ऐसा विचार कर दोनों ने साधू का भेष धारण कर राजा मोरध्वज के राज्य में प्रवेश किया|

राजा मोरध्वज एक सत्यपरायण और धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे| वह अपनी पत्नि व् एक पुत्र के साथ रहते थे| दोनों साधू उनके द्वार पर पहुंचे और अलख जगायी| राजा ने द्वार पर आ कर कहा कि महाराज भोजन तैयार है| साधू रूपी श्री कृष्ण जी ने कहा कि हम  ताजा और तुम्हारे द्वारा तैयार किया हुआ तामसी भोजन करेगें| राजा के द्वारा तामसी भोजन को मना करने पर दोनों साधू वापस जाने लगे| अतिथि देवो भव: ऐसा विचार कर राजा ने पूछा कि आप किस जीव का भोजन करेगें,तो साधू ने कहा कि जो जीव तुम्हे अधिक प्रिय हो|

राजा ने कहा मुझे मेरा घोडा अधिक प्रिय है तो साधू ने पुछा कि क्या तुम्हे घोडा अपने पुत्र से भी अधिक प्रिय है?इस पर राजा ने कहा कि वह तो मेरा पुत्र है| साधू ने पूछा कि क्या वह जीव नहीं है? राजा ने कहा कि वह जीव मेरी पत्नि को भी प्रिय है| साधू ने कहा कि उनसे पूछ लो वर्ना हम वापस चले जाते हैं|

राजा ने अपनी पत्नि व् पुत्र को बुला कर सब बातें बताई| इस पर पत्नि ने कहा कि महाराज मैं पूर्ण रूप से आपकी सहचरी हूँ| जैसा आप उचित समझे| पुत्र भी अपने माता पिता कि बातें सुन रहा था|

राजा ने पुत्र से पूछा| तो उसने कहा कि आप मेरे जन्मदाता है| मुझ पर आपका पूर्ण अधिकार है| यदि मेरा जीवन आपके कर्तव्य पालन में काम आ सके तो मेरा जीवन सफल होगा|

साधू बने श्री कृष्ण जी ने कहा महाराज बहुत जोर की भूख लगी है बातो  में समय नष्ट न करो| तुरंत आरे से अपने पुत्र कि गर्दन काट कर भोजन तैयार करो|

राजा ने जैसे ही आरे से अपने पुत्र कि गर्दन पर वार करना चाहा तो साधू बने श्री कृष्ण जी ने राजा का हाथ पकड़ लिया और अपने चतुर्भुजी रूप में राजा को दर्शन देकर कहा कि हम तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे| उनके इस रूप को देख कर राजा ने निवेदन किया कि हे प्रभो जैसी मेरी परीक्षा ली है ऐसी परीक्षा किसी और भक्त कि मत लेना
श्री कृष्ण जी ने एवमस्तु कहते हुए अर्जुन कि ओर देखा तो अर्जुन की आँखे शर्म से झुक गयी|



 

Tuesday, October 8, 2013

साम्प्रदायिकता|

आज हमारा देश साम्प्रदायिकता की आग में झुलस रहा है| समय समय पर देश के अलग अलग हिस्सों मे इस प्रकार कि घटनाएँ घटती रहती हैं परन्तु शासन  अपनी वोटों कि राजनीति के कारण अपनी आखें मुंदकर बैठा रहता है और यह आग विशाल रूप धारण कर लेती है|

मुज़फ्फरनगर जिले में फैला दंगा इसकी जीती जागती मिसाल है| इसकी आंच आसपास के जिलों में भी पहुंची| इस दंगे को भड़काने में शासन व् प्रशासन के द्वारा A for avoid, B for by-pass, C for confusion create, D for dismiss की नीति अपनाई गयी जिसके कारण यह आग शहर ही नहीं, गाँव, गाँव में फैलती चली गयी जिसमे अनेक निर्दोष व्यक्तियों की जाने चली गयी तथा अनेक घर भी फूंके गए|

यदि शासन व् प्रशासन दोनों मिलकर A for availability, B for Behavior,C for Confidence के साथ D for Dil से कार्य किया होता तो इतना बड़ा विकार न फैलता| अभी भी समय है कि शासन व् प्रशासन एक तरफ़ा कार्यवाही न करके निष्पक्ष भाव से कार्य करे जिससे व्यक्तियों में पुनः सोहार्द और प्रेम का भाव पनप सके|                                                          

Sunday, October 6, 2013

वस्तु की उपयोगिता|

एक बार भगवान बुद्ध अपने एक शिष्य के साथ दुसरे शिष्य के यहाँ पहुंचे| उन्होंने देखा कि उनका शिष्य बहुत पुराने कपडे पहने हुए है तो उन्होंने अपने दुसरे शिष्य से उसे नए कपडे पहनने हेतू दिला दिए और आगे चले
गए| कुछ समय बाद वापस लौटते हुए फिर भगवान बुद्ध अपने उसी शिष्य के घर पहुंचे|

उन्होंने शिष्य से प्रश्न किया कि तुमने पुराने वस्त्रों का क्या किया?शिष्य ने उत्तर दिया कि पुराने वश्त्र ओढने के काम आये|

बुद्ध जी ने प्रशन किया कि ओढने वाले वस्त्रों का क्या किया? उसने उत्तर दिया कि उनको फाड़ कर रसोई में चूल्हे से पतीले उतारने के काम लिया|

भगवान बुद्ध जी ने फिर प्रश्न किया:-रसोई के पुराने पतीले उतारने वाले वश्त्रों का क्या किया?उसने उत्तर दिया कि महाराज उन वस्त्रों से खाना बनाने के बाद रसोई को साफ करने के काम में प्रयोग किये|

उन्होंने फिर प्रश्न किया कि पुराने रसोई साफ करने वाले वस्त्रों का क्या किया?तो उसने कहा कि हे प्रभु वें वश्त्र तो फट कर तार तार हो गये थे इसलिए उन वस्त्रों की बत्ती बनाई है जो आपके सामने जले दीपक में लगी है|

अपने सभी प्रश्नों के उत्तर से भगवान बुद्ध बहुत खुश हुए और कहा कि संसार में कोई भी वस्तु खराब नहीं होती है|समयानुसार उस वस्तु की उपयोगिता बदल जाती है|



 

Friday, October 4, 2013

भोलेभाले व्यक्ति की समझदारी

बहुत पहले कि बात है एक गॉव मे चौपाल पर कुछ लोग बैठे हुक्का पी रहे थे| उनमे से एक आदमी कहने लगा कि राजा के दर्शन करने पर भगवान के दर्शन करने जैसा पुण्य मिलता है| ऐसा सुनकर वहां बैठे एक सीधे भोलेभाले व्यक्ति ने राजा के दर्शन करने के लिए शहर कि ओर प्रस्थान किया| शहर पहुँचने पर वह राजा से मिलने के लिये महल के अन्दर जाने लगा तो गेट पर खड़े दरबान ने उसे रोका| वह अन्दर जाने कि जिद करते हुए कहने लगा कि यदि तुमने मुझे अन्दर न जाने दिया तो मैं यहीं पर अपने प्राण त्याग दूंगा| यह सुचना राजा तक पहुंचाई गयी राजा ने उसे अन्दर बुला लिया|

राजा तक पहुँचने के लिए सात दरवाजे पार करके जाना होता था| सातों दरवाजों पर एक-एक दरबान था| वह सातों दरवाजे पार कर अन्दर पहुंचा| राजा ने आने का कारण पूछा? उस व्यक्ति ने कहा, आपके दर्शन करने पर मुझे भगवान के दर्शन करने का पुन्य मिल गया यह कह कर वह बाहर चला गया|

राजा ने उसके भोलेपन पर बहुत प्रसन्न होकर ईनाम देने की घोषणा की और एक कर्मचारी को उसे बुलाने हेतु भेजा| कर्मचारी ने बाहर जाकर उस आदमी से कहा कि तुम्हे राजा ने ईनाम देने के लिए बुलाया है ऐसा सुनकर वह वापस महल में जाने लगा तो पहले दरबान ने कहा, तुम्हे ईनाम मिलेगा हमें क्या दोगे| उसने कहा आधा तुम बाँट लेना प्रत्येक दरवाजे के दरबान के द्वारा ईनाम में हिस्सा मांगने पर आधा बाँट लेने का वायदा किया साथ में चल रहे कर्मचारी ने कहा मुझे क्या दोगे उसने कहा शेष तुम ले लेना|

दरबार में राजा ने कहा हम तुमसे  बहुत खुश हैं जो चाहो मांग लो| उसने कहा जो मैंने माँगा वही दोगे ऐसा वचन दो तो मांगू? राजा ने उसे वचन दे दिया| उसने सोचविचार कर कहा| महाराज मुझे १२८ कोड़े लगाये जाएँ| राजा ने कहा कि अरे मुर्ख हमने सजा नहीं ईनाम मागने के लिए कहा है| उसने कहा मुझे तो कोड़े ही चाहिए देना हो तो दो नहीं तो वचन हार जाओ|

मजबूर होकर राजा ने कोड़े लगाने की इजाजत दे दी| तब उसने कहा रुको मेरे हिस्सेदारों को भी ईनाम मिलना चाहिए| उसने किये गए वायदे के अनुसार पहले दरबान को बुला कर ६४, दुसरे को ३२, तीसरे को १६, चोथे को ८, पांचवे को ४, छठे को २, तथा सातवें को १ कोड़ा लगवाया| शेष बचे एक कोड़े को उसने बाहर से बुला कर लाने वाले कर्मचारी को लगवा दिया| राजा ने उसके होधियारी भरे भोलेपन से अति प्रसन्न होकर कुछ अशर्फियाँ देकर विदा किया|  

Thursday, October 3, 2013

विश्वास,अन्धविश्वास

हम अपने जीवन में अनेक प्रकार की अवधारणाओं के साथ जीवन व्यतीत करते हैं| हम किसी भी कार्य मे कामयाब होने के लिए अनेक प्रकार की मन्नतें मांगते हैं कि अमुक कार्य पूरा होने परभगवान के मंदिर मे प्रसाद,चदर,दान आदि करूँगा.कार्य पूर्ण होने पर ऐसा करते भी हैं| परन्तु हमने कभी यह विचार नहीं किया कि  ऐसा क्यों होताहै इसविषय मे मेराविचारहै कि मन्नत मांगने के बाद हमारा आत्मविश्वास बढ़ जाता है और सोचा हुआ कार्य पुरे विश्वास से परिश्रम करने पर पूर्ण हो जाता है |प्राय देखने मे आता है कि हम अपने व्यापर मे भगवान को पार्टनर मान कर( जैसे क्रिष्णा ज्वेलर्स ,दुर्गा औतोपार्ट  ,साईं जनरल स्टोर ,शिवा मेडिकल स्टोर आदि )व्यापर करते है हम भगवान को पार्टनर मानते हुए पूर्ण परिश्रम करते है और लाभान्वित होते है परन्तु ऐसा भी देखने मे आता है कि भगवान को पार्टनर बनाने पर भी व्यापर मे हानि हो जाती है हम यह सोच कर कि भगवान हमारे पार्टनर है लाभ तो होगा ही परिश्रम नहीं करते और नुकसान होने पर भगवान  को दोष देते हैं|
       भगवान ,अल्लाह,वाहे गुरु ,गोद हमारे अन्दर ही हैं| कहते हैं कि आत्मा दो परमात्मा | मंदिर ,मस्जिद ,चर्च गुरुद्वारा वें पवित्र स्थान हैं जहाँ कुछ समय व्यतीत करने पर हम अपने मन की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं |मंदिर मे दिए गए दान से मंदिर में होने वाले खर्चों जैसे प्रसाद ,बिजली व् पानी का बिल ,सफाई ,साज सज्जा तथा पुजारी का वेतन आदि की पूर्ति होती है| भगवान ही तो हमें सबकुछ देते हैं यदि हम किसी धार्मिक कार्य मे दान करते हैं या किसी की सहायता करते हैं तो हमें घमंड नहीं करना चाहिए |    

Tuesday, September 17, 2013

पाप, पुन्य।

पाप और पुण्य क्या है? पाप, पुण्य की कोई परिभाषा नहीं है। पाप करते पुण्य हो जाया करता है पुण्य करते पाप। जिसे मैं पुण्य सोचता हूँ हो सकता है वह दूसरों के लिये पाप हो और जिसे पाप समझता हूँ वह पुन्य हो।

आक्हे के पेड़ का दूध यदि किसी की आंख मे लग जाये तो उसकी ख़राब हो जाती हैं और आक्हे के पेड़ के फूल से पेट की बीमारी की दवाई बनायी जाती है।

डाक्टर एक ही बीमारी मे दो मरीजों को एक ही दवाई देता है जिससे एक मरीज तो ठीक हो जाता है परन्तु दूसरे मरीज को वही दवाई नुकसान देकर दूसरी बिमारी को भी जन्म दे देती है तो क्या डाक्टर ने पहले मरीज के साथ पुन्य तथा दुसरे के साथ पाप किया।

 पुराने समय मे एक राजा बहुत ही धर्मपरायण था। वह प्रतिदिन दान,हवन पूजन करते हुए अपनी प्रजा के प्रति पूर्ण समर्पित रहते हुए राज्य करता था। मृत्यु के बाद उसे यमलोक लेजाया गया। वहां उसका पाप पुण्य का लेखा जोखा देखकर बताया गया कि इस व्यक्ति ने कोई पाप नहीं किया परन्तु देवताओं के हिस्से का भोजन खाया है राजा बड़ा अचम्भित हुआ और कहा कि मैं प्रतिदिन हवन पूजन करके गरीबों को भोजन खिला कर ही खुद भोजन खाया करता था कृपया बतायें मैंने कैसे देवताओं के हिस्से का भोजन खाया है?ऐसा कहते हैं कि हवन मे प्रयोग होने वाली सामग्री देवताओं का भोजन होता है और अग्नि देवताओं का मुख। जिस देवता के निमित हवन किया जाता है उसका आवाहन करते हुए आहुति दी जाती है। राजा को बताया गया कि आपने सामग्री को मुट्ठी मे लेकर आहुति दी जिससे सामग्री आपके नाखूनों मे भर गई। वह सामग्री भोजन करते समय दाल सब्जी के माध्यम से आपके शरीर मे चली गयी,केवल यही पाप आपने किय। जिसके लिये आपको फिरसे मृत्यु लोक मे जाना होगा।

विचार करें कि क्या उस राजा ने जानबूझ कर उस सामग्री का भक्षण किया जिसकी उसे सजा मिली। इसीलिए हमें अपने विवेक से कार्य करना चाहिए।और  यदि किसी कार्य को करने से हमारी आत्मा को शान्ति मिले वही पुन्य है।यदि किसी कार्य को करने के बाद पश्चाताप हो वह पाप है।    

Thursday, September 12, 2013

आत्मबल

मनुष्य अपने आत्मबल के माध्यम से कोई भी कठिन से कठिन कार्य कर लेता है। कोई भी कार्य असंभव नही है। इस  विषय मे मैं अपने जीवन की सच्ची घटना का वर्णन करता हूँ। मुझे बचपन से ही धुर्मपान की आदत पड़ गयी थी। मैं एक दिन मे लगभग तीन ,चार पैकिट सिगरेट पी लेता था जबकि घर या कार्यालय मे सिगरेट जेब मे नही रखता था। रात्रि मे भी नींद खुलने पर सिगरेट पीने के बाद ही नींद आती थी। मेरी इस आदत से मेरे परिवार वाले भी दुखी रहते थे।  12 मार्च 1999 को कार्यालय जाते समय अपने बेटे से सिगरेट खरीद कर लाने को कह कर मैं कार्यालय चला गया।
कार्य मे व्यस्त रहने के कारण देर से घर आया तो अचानक आंधी व तूफान के साथ तेज बारिश शुरू हो गयी। मैंनेदेखा घर पर सिगरेट नही है तो बेटे से पूछा ?उसने कहा कि सिगरेट लाना तो मेरे याद नही रहा। मुझे बहुत तेज गुस्सा आया और कहा कि जाओ अभी जाकर सिगरेट लाओ। उसी समय छोटी बिटिया हाथ जोड़ कर कहने लगी कि पापा आज की माफ़ी देदो इस तूफान और बारिस मे भैया कैसे बाज़ार जायेगा। उसको हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने पर मेरा मन आत्मग्लानि से भर गया और सोचने लगा कि ऐब मैं करूँ और माफ़ी कोई और मांगे। मैंने निश्चय करके बेटी से कहा कि ठीक है बेटी आज के बाद मैं सिगरेट नही पिऊंगा। इस घटना के बाद मैंने बचपन से शुरू किया गया ऐब अपने आत्मबल के कारण सहज मे ही छोड़ दिया।   

 
 

Tuesday, September 10, 2013

परिवार की इज्जत

परिवार की इज्जत परिवार के सदस्यों से होती है ,इस विषय मे एक घटना का वर्णन करता हूँ। एक गावं में एक छोटा सा वैश्य परिवार रहता था। वैश्य अपनी पत्नि व बेटे के साथ घर में ही दुकान करके परिवार का पालन करता था। उसका बेटा विवाह योग्य हो गया था।
वह अपनी पत्नि से  कहता रहता था कि इस घर की इज्जत मेरे ही कारण है मै ही अपनी मेहनत से धन कमा कर परिवार का पालन करता हूँ पत्नि उसे समझती रहती थी कि परिवार की इज्जत परिवार के सभी सदस्यों के आचरण से होती है। वह इससे इंकार करके कहता था कि मेरे पास काफी धन है जिसके कारण  पूरा गावं व आसपास के गावों मे मेरी इज्जत है। पत्नि ने कहा कि समय आने पर खुद समझ जाओगे।
कुछ समय पश्चात पास के गावं से उसके लड़के का रिश्ता आया उन्होंने लड़का पसंद कर लिया। इसके बाद वह वापस जाने लगे वैश्य ने उन्हें कहा कि आप खाना खा कर ही जायेगें। उसने लड़के के कहा कि घर जा कर मेहमानों के लिए खाना तैयार कराओ।
लड़के ने घर जाकर अपनी माता जी से खाना बनाने के लिए कहा वैश्य की पत्नि ने विचार किया कि उन्हें सबक़ सिखाने का अच्छा अवसर है वैश्य सभी मेहमानों को घर ले आया।पत्नि ने आवाज दे कर कहा कि मेहमानों के लिये चावलों का मांड तैयार है आकर ले जाओ ऐसा सुनकर वह दौड़ कर पत्नि के पास आकार क्रोधित हो कहने लगा कि तुमने यह क्या किया तुमने तो मेरी इज्जत मिटटी में मिला दी। पत्नी ने कहा कि मैंने जो बनाया है  वही तो खिलाऊँगी आपने तो मुझे कुछ बनाने के लिए नहीं कहलवाया था यदि इसमें तुम्हारी इज्जत जा रही है तो मै क्या करूँ।
मेहमानों ने जब चावलों के मांड को खाने के लिए सुना तो वें आपस में विचार करने लगे कि यह वैश्य तो बहुत कंजूस है हम अपनी लड़की की शादी इस परिवार मे नही करेगें।
वैश्य बहुत दुखी था पत्नि ने जले पर नमक छिडकते हुए कहा कि आपकी इज्जत तो पुरे गावं व आसपास के गावों मे है वहां से बुला कर बचा लो वैश्य पत्नी के इस आचरण से दुखी होकर बोला ,भाग्यवान पहले वाली बातो को भुल कर इस घर की इज्जत बचा लो। तब पत्नि बोली अच्छा ऐसा है तो तुम मेहमानों के पास जाकर बैठ जाओ और कहो कि चावलों का मांड जल्दी भेजो।मजबूर हो कर उसने ऐसा ही किया मेहमानों के सामने जब कटोरी में मांड पहुंचा तो वे खाने में आनाकानी करने लगे तो पत्नि ने कहा कि अच्छा एक -एक चम्मच तो खालो।उन्होंने बेमन से चम्मच से मांड को खाना शुरू किया तो देखा उसमे अनेक प्रकार के मेवा है ऐसा देखकर वे विचार करने लगे कि इनके यहाँ जब मांड इस प्रकार से बनता है तो इनका खानपीन और रहनसहन तो बहुत उत्तम होगा।वे बड़े खुश हुए तथा रिश्ता तय हो गया.घर की इज्जत पूरे परिवार के सदस्यों के शुद्ध आचरण से ही होती है.

Monday, September 9, 2013

आत्मा सो परमात्मा

आस्था ,पूजा ,अर्चना इन शब्दों का मनुष्य के जीवन से गहरा संबंध है. मनुष्य चाहे किसी भी धर्म से हो, वह अपने धर्म के अनुसार धर्म के प्रति आस्था व विश्वास के साथ पूजा, अर्चना अवश्य करता है। पूजा किसी भी देव, अल्लाह, गॉड, वाहे गुरू आदि को खुश करने के लिए नही जाती बल्कि अपने ही मन के शुद्धिकरण के लिए की जाती है. (आत्मा सो परमात्मा )पूर्ण आस्था से पूजा ,अर्चना करके मनुष्य अपने अन्दर की आत्मा को ही शुद्ध करता है । ज्यों -ज्यों आत्मा शुद्ध होती है त्यों- त्यों मनुष्य अपने जीवन को दूसरों के प्रति समर्पित कर प्रेम से जीने के लिए प्रेरित होता  है।


 

Sunday, September 8, 2013

मुज़फ्फरनगर: मेरा अनुरोध

मेरे शहर के प्यारे हिंदू व मुस्लिम भाइयों,

मुज़फ्फरनगर: मेरा अनुरोध

मुझे अपने शहर व जिले मे भड़के फ़साद को अमेरिका मे इनेट के माध्यम से पढ कर हार्दिक दुख पहुंचा। हम एक परिवार के सदस्यों की तरह है। परिवार मे प्यार के साथ -साथ झगडे भी होते है। हम सभी को यह समझना होगा कि हम जातिवाद के दंश से बाहर निकल कर यह विचार करें क़ि हम जाति बिरादरी से पहले एक व्यक्ति है। हमें इस जातिवाद मे उलझा कर कुछ राजनैतिक पार्टिया अपने फायदे के लिए हमै लड़ा कर फायदा उठाना चाह्ती है जब भी इलेक्शन का समय होता है ऐसा ही होता है हमें इस पर विचार करना होगा। हमारा कोई भी कार्य एक दूसरे के बगैर पुरा नहीं होता यह भी हम जानते है फिर भी चंद असामाजिक तत्वों के भड़कावे मे आकर हम एक दूसरे के खून के प्यासे होकर लड़ने लगते है ऐसा क्यों ?

यदि सोचा जाये कि यें जाति बिरादरी तो बाद मे आयी पहले आया आदमी। आदमी के अन्दर हर जाति विधमान  है जैसे आदमी जब दिमाक से सोचने का कार्य करता है तो वह एक चिन्तक, विचारक (ब्राहमण, मोलवी, पादरी या गुरु) कोई भी हो सकता है। जब वह हाथों से कोई कार्य करता है तो वह पुरुषार्थी होता है जब उसे भूख लगती है तो वह एक वैश्य (वैश्य कोई जाति नही है वह व्यापर के माध्यम से हर जाति के व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करता है) का कार्य करता है। हर जाति का व्यक्ति अपने ही हाथों से अपने शरीर ,घर आदि की सफाई का कार्य करता है। तो फिर विचार करें कि हम किस जाति के आदमी है?

अंत में मेरा अपने प्यारे शहरवासियों से पुरजोर अनुरोध है कि आप इस जातिवाद से ऊपर उठ कर शहर व जिले मे शान्ति व्यवस्था कायम करने मे अपना पूर्ण सहयोग दें।