Thursday, October 10, 2013

भक्त की परीक्षा|

एक बार श्री कृष्ण जी से अर्जुन ने कहा कि इस संसार में मेरे समान आपका कोई भक्त नहीं है परन्तु कृष्ण जी जी ने कोई उत्तर नहीं दिया| इससे खीज कर अर्जुन इस बात को बार बार दोहराने लगे| अर्जुन के द्वारा बार बार ऐसा कहने पर कृष्ण जी ने कहा कि चलो कहीं दुसरे स्थान पर चल कर देखते है| ऐसा विचार कर दोनों ने साधू का भेष धारण कर राजा मोरध्वज के राज्य में प्रवेश किया|

राजा मोरध्वज एक सत्यपरायण और धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे| वह अपनी पत्नि व् एक पुत्र के साथ रहते थे| दोनों साधू उनके द्वार पर पहुंचे और अलख जगायी| राजा ने द्वार पर आ कर कहा कि महाराज भोजन तैयार है| साधू रूपी श्री कृष्ण जी ने कहा कि हम  ताजा और तुम्हारे द्वारा तैयार किया हुआ तामसी भोजन करेगें| राजा के द्वारा तामसी भोजन को मना करने पर दोनों साधू वापस जाने लगे| अतिथि देवो भव: ऐसा विचार कर राजा ने पूछा कि आप किस जीव का भोजन करेगें,तो साधू ने कहा कि जो जीव तुम्हे अधिक प्रिय हो|

राजा ने कहा मुझे मेरा घोडा अधिक प्रिय है तो साधू ने पुछा कि क्या तुम्हे घोडा अपने पुत्र से भी अधिक प्रिय है?इस पर राजा ने कहा कि वह तो मेरा पुत्र है| साधू ने पूछा कि क्या वह जीव नहीं है? राजा ने कहा कि वह जीव मेरी पत्नि को भी प्रिय है| साधू ने कहा कि उनसे पूछ लो वर्ना हम वापस चले जाते हैं|

राजा ने अपनी पत्नि व् पुत्र को बुला कर सब बातें बताई| इस पर पत्नि ने कहा कि महाराज मैं पूर्ण रूप से आपकी सहचरी हूँ| जैसा आप उचित समझे| पुत्र भी अपने माता पिता कि बातें सुन रहा था|

राजा ने पुत्र से पूछा| तो उसने कहा कि आप मेरे जन्मदाता है| मुझ पर आपका पूर्ण अधिकार है| यदि मेरा जीवन आपके कर्तव्य पालन में काम आ सके तो मेरा जीवन सफल होगा|

साधू बने श्री कृष्ण जी ने कहा महाराज बहुत जोर की भूख लगी है बातो  में समय नष्ट न करो| तुरंत आरे से अपने पुत्र कि गर्दन काट कर भोजन तैयार करो|

राजा ने जैसे ही आरे से अपने पुत्र कि गर्दन पर वार करना चाहा तो साधू बने श्री कृष्ण जी ने राजा का हाथ पकड़ लिया और अपने चतुर्भुजी रूप में राजा को दर्शन देकर कहा कि हम तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे| उनके इस रूप को देख कर राजा ने निवेदन किया कि हे प्रभो जैसी मेरी परीक्षा ली है ऐसी परीक्षा किसी और भक्त कि मत लेना
श्री कृष्ण जी ने एवमस्तु कहते हुए अर्जुन कि ओर देखा तो अर्जुन की आँखे शर्म से झुक गयी|



 

No comments:

Post a Comment