Friday, November 29, 2013

डावांडोल आस्था|

एक बार एक व्यक्ति हवाई जहाज से यात्रा कर रहा था| अचानक से घोषणा की गयी कि किसी तकनीकी  कारण से हवाई जहाज में कुछ खराबी आ गयी है| अत:सभी यात्री पैरासूट पहन कर नीचे कूद जाएँ|

उस व्यक्ति ने भी पैरासूट पहन कर नीचे छलांग लगा दी| वह पैरासूट के सहारे नीचे किसी समुद्री विरान टापू पर गिरा| उसने देखा कि वह बच गया तो उसने भगवान को धन्यवाद दिया|

कुछ समय बाद भुख, प्यास का अहसास हुआ तो उसने खाने पीने की तलाश शुरू की| समुद्री टापू पर तरह तरह  के पेड़ पौधे, झाड़ियाँ तथा घास थी| कोई फलदार वृक्ष नहीं था| तथा समुद्र के खारे पानी के अलावा पीने योग्य पानी नहीं था|

भुख, प्यास से परेशान उस व्यक्ति ने घास व् वृक्षों के पत्तें खाकर समुद्र का खारा पानी पीकर अपनी जान बचाई| वह व्यक्ति भगवान् को याद कर कहने लगा कि हे प्रभु मैंने जब से होश सम्भाला है तभी से तुम्हारी पूजा करता आया हूँ| फिर मुझे यह कष्ट क्यों प्राप्त हो रहा है|

उसने वहां से बाहर निकलने के लिए बहुत कोशिश की| कईं दिनों की भागदौड़ करने पर भी जब कोई सहायता नहीं मिली तो फिर से दुखी मन से भगवान् को दोष देते हुए कहने लगा कि मैंने अपने जीवन में किसी का बुरा नहीं किया फिर भी मैं अनेक कष्ट भोग रहा हूँ| मेरा आप से विश्वास समाप्त होता जा रहा है|

उसने देखा कि आकाश में घने काले बादल छा गए हैं| अत: बारिस से बचने के लिए पेड़ों से सुखी लकड़ी तोड़ कर एक झोपडी बनाकर उसे घासफुंस से ढक दिया|

काले काले बादलों की गडगडाहट से वह अकेला इस विरान टापू पर बहुत डर रहा था कि बादलों से बिजली भी कडकने लगी| अचानक से कडकती हुयी बिजली उसके द्वारा बनायी गयी झोपडी पर गिर पड़ी| ओर वह धू धू कर जलने लगी|

इस द्रश्य को देख कर वह व्यक्ति बदहवास होकर जोर जोर से बोलते हुए अनेक प्रकार के अपशब्दों के साथ भगवान् को कोसने लगा कि संसार में तेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है| इस प्रकार भगवान् से उसकी आस्था डावांडोल होने लगी|

कुछ समय बाद उसे किसी व्यक्ति की आवाज सुनाई दी| आवाज सुन वह उस दिशा में दौड़ता हुआ गया| वहां उसे कुछ आदमी दिखाई दिए| उन आदमियों ने उसे कहा कि हम नाव के द्वारा इधर से जा रहे थे कि अचानक यहाँ लगी आग और तुम्हारे जोर जोर से बोलने की आवाज सुन कर ही यहाँ पहुंचे हैं|

अचानक मिली सहायता से वह खुश भी हुआ और आत्मग्लानि से भी भर गया| वह सोचने लगा कि जिस आग को देखकर मैं भगवान् को दोष दे रहा था उसी आग के कारण ही मुझे इस दारुण दुःख से छुटकारा मिला|

मानव स्वभाव है कि वह आपत्ति आने पर परेशान हो कर भगवान को दोष देने  लगता है जबकि गीता में कहा गया है कि जो हुआ वह ठीक हुआ, जो हो रहा है वह ठीक हो रहा है और जो होगा वह भी ठीक ही होगा| अत: हमें भगवान् पर भरोसा करके पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कार्य करते रहना चाहिए|

Friday, November 22, 2013

करे कोई भरे कोई|

एक गाँव नदी के किनारे पर बसा था| नदी के दुसरे किनारे पर एक साधू का आश्रम था| साधू सुबह से ही तपस्या में लगे रहते थे| वे प्रतिदिन शाम के समय गाँव में भिक्षा मांगने जाते थे| वें गाँव में क्रमवार अपनी आवश्यकता के अनुसार ही भिक्षा में भोजन लेते थे| आश्रम में वापस आकर संध्यावंदन से फारिग होकर भिक्षा में प्राप्त भोजन कर रात्रि विश्राम करते थे|

गाँव में एक महिला का पति कुछ माह पूर्व धन कमाने हेतु बाहर गया हुआ था| उसके पति की शक्ल साधू से बहुत कुछ मिलती थी| साधू की शक्ल देख कर उसे अपने पति की याद आने लगती थी| जिसके कारण वह साधू से मन ही मन घ्रणा करने लगी|

मन में आये विकार के कारण उस स्त्री ने विचार किया कि यदि यह साधू मर जाए तो मुझे दिखाई नहीं देगा,और मुझे पति की याद भी नहीं सताएगी|

साधू के द्वारा भिक्षा मांगने के क्रमानुसार अगले दिन साधू को उस स्त्री के घर ही भिक्षा मांगनी थी| अत:उस स्त्री ने अगले दिन साधू के भोजन में जहर मिला कर दे दिया|

साधू जैसे ही गाँव से वापस आ रहे थे|कि मौसम खराब हो गया| हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गयी| बारिश में भीगने के कारण साधू की तबियत खराब हो गयी| संध्यावंदन करते करते मुसलाधार पानी भी बरसने लगा| तबियत ख़राब होने के कारण साधू बिना भोजन किये ही लेट गए|

एक मुसाफिर बारिश में भीगता हुआ आश्रम में पहुंचा| साधू को प्रणाम कर उसने कहा कि मैं नदी पार के गाँव का रहने वाला हूँ| बाहर बारिश बहुत तेज हो रही है| बारिश के कारण नदी का जलस्तर भी बढ़ गया है| साधू ने कहा ठीक है तुम रात्रि में आश्रम में विश्राम करो| प्रात:में घर चले जाना|

मुसाफिर ने कहा कि मुझे भुख भी बहुत लगी है कुछ खाने के लिए हो तो दो?साधू ने दिन में भिक्षा में प्राप्त वही खाना उसे दे दिया| उसने भरपेट खाना खाया| मुसाफिर खाना खाकर सो गया|

दिन निकलने पर भी जब मुसाफिर सोता ही रहा तो साधू ने उसे जगाने की कोशिश की परन्तु  वह नहीं उठा| साधू ने देखा कि उसकी म्रत्यु हो चुकी है| और उसका शरीर भी नीला हो गया| साधू ने अपने शिष्य के द्वारा गाँव में सुचना भिजवाई|

गाँव वालों ने आकर देखा| उसे पहचान कर उस मुसाफ़िर की पत्नी जोर जोर से विलाप कर रोने लगी| साधू ने उसे बताया कि पुत्री तुम्हारा पति रात्रि में बारिश  के कारण यहाँ रुका था| वह बहुत भूखा था अत:मैंने तुम्हारे यहाँ से प्राप्त भोजन इसको खिलाया जिसे खाकर वह सो गया|

यह सुन कर वह स्त्री रोते रोते पश्चाताप कर कहने लगी| और कहने लगी महाराज यह मेरी करनी का फल है| जिसे मैं तो पूरी उम्र भरुंगी ही परन्तु मेरे पति की निर्दोष होते हुए भी मौत हो गयी| ऐसा कह उसने अपने द्वारा भोजन में जहर मिलाने वाली घटना साधू को बताई|

साधू ने उसे समझाते हुए कहा कि हमें अपने जीवन में भावनाओं में बह कर कोई भी पाप कर्म नहीं करना चाहिए| पाप तुमने किया और भरना तुम्हारे पति को पड़ा| इसी को कहते हैं कि करे कोई और भरे कोई|






 

Tuesday, November 19, 2013

जोश में होश खोना|

मनुष्य किसी भी कार्य को करने में अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है| सही प्रकार से बुद्धि के प्रयोग करने पर कठिन से कठिन कार्य भी पूर्ण हो जाता है| मनुष्य का मन चंचल होता है| किसी भी कार्य को करने में बुद्धि मन को कार्य के अच्छे व् बुरे होने के विषय में अवगत कराती है|

मन दो प्रकार से कार्य करता है| मन के दो भाग (तराजू के दो पलड़ों के अनुसार) होते हैं| एक भाग अच्छे कार्यों की और आकर्षित करता है| दूसरा भाग बुरे कार्य की और खींचता है| मन पर जिस भाग का अधिक प्रभाव होता है मनुष्य उसी दिशा में कार्य करने लगता है|

कभी कभी मनुष्य जोश में बुद्धि का प्रयोग न करते हुए तथा मन से अच्छे और बुरे पर विचार न करते हुए होश खो बैठने पर ऐसा कार्य कर बैठता है कि उसे तमाम उम्र अपने किये पर पछतावा होता रहता है| इस विषय में मैं एक घटना का वर्णन करता हूँ| 

हरियाणा के किसी शहर में लक्खी नाम का एक बंजारा रहता था| वह बहुत ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति था| तथा मन के अच्छे विचारों के साथ बुद्धि का प्रयोग करते हुए ईमानदारी के साथ व्यापार करता था| उसने अनेक प्रकार के दुधारू पशु भी पाल रक्खे थे|

लक्खी ने एक कुत्ता भी पाल रक्खा था| वह कुत्ते को बहुत प्यार करता था| कुत्ता भी अपने मालिक के प्रति पूर्ण वफादार था वह अपने मालिक की हर प्रकार से रक्षा करने के लिए तत्पर रहता था| इस प्रकार वह सभी सुखों को भोगते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहा था|

अच्छे बुरे समय का कुछ पता नहीं चलता| लक्खी बंजारे को अचानक से व्यापार में हानि होने लगी| पशु भी बीमार होकर मरने लगे| आहिस्ता आहिस्ता कारोबार सिमटता चला गया| एक दिन ऐसा आया कि उसे घर खर्च में भी परेशानी होने लगी|

लक्खी बंजारे ने बुरे समय में भी ईमानदारी का साथ बिल्कुल नहीं छोड़ा| अत:वह अपने वफादार कुत्ते को साथ लेकर दूसरे शहर में अपने एक साहूकार मित्र के पास गया| उसे अपनी स्थिति से अवगत कराकर कहा कि मित्र मुझे कुछ समय के लिए कुछ धन की आवश्यकता है अत: आप मेरे कुत्ते को गिरवी रखलें|

साहूकार ने कहा कि आप कुत्ते को गिरवी न रखकर धन ले जाओ| परन्तु लक्खी बंजारे ने कुत्ते को गिरवी रखकर ही धन लिया| और वापस अपने शहर आ गया|

एक दिन साहूकार के घर में चोर घुस गए| चोर घर से सोने चांदी के जेवरात व् धन दौलत चुरा कर लेजाने लगे| बंजारे का कुत्ता भी उनके पीछे पीछे चल दिया| चोरों ने सभी सामान शहर से बाहर एक गड्ढे में दबा दिया ताकि उन्हें कोई सामान ले जाते हुए देख न ले| परन्तु कुत्ता यह सब देख रहा था|

प्रात: में साहूकार ने देखा कि चोर उसके सब जेवर और धन दौलत चुराकर ले गए| तो वह विलाप करके रोने लगा| रोने की आवाज सुनकर पडोसी भी इकटठे हो गए| उसी समय कुत्ता साहूकार की धोती पकड़ कर एक दिशा की ओर खींचने लगा|

पड़ोसियों ने कहा कि कुत्ता तुम्हे कहीं लेजाना चाहता है| अत: सभी लोग कुत्ते के पीछे पीछे चल दिए| कुत्ते ने गड्ढे के पास पहुँच कर अपने पैरों से गड्ढे की मिटटी हटानी शुरू कर दी| मिटटी के हटते ही सारा सामान दिखाई  देने लगा| जिसे देख कर साहूकार बहुत खुश हुआ|

साहूकार ने मन में  विचार किया कि इस कुत्ते के कारण आज मेरा सब धन दौलत और जेवरात चोरी होने से बच गया है| आज इसने अपने मालिक के द्वारा लिया हुआ कर्ज ब्याज सहित चुकता कर दिया| अत: अब मुझे इस कुत्ते को गिरवी के रूप में अपने पास रखने का कोई अधिकार नहीं है|

साहूकार ने उपरोक्त सभी बातों को एक तख्ती पर लिख कर कुत्ते के गले में बाँध दिया|और कुत्ते को मुक्त कर दिया| कुत्ता मुक्त होकर अपने मालिक के पास चल दिया|

लक्खी बंजारे ने दूर से कुत्ते को आता देखकर सोचा कि मेरा कुत्ता साहूकार से बेवफाई करके भाग आया है| ऐसा विचार मन में आते ही उसने जोश में होश खोकर अपनी बुद्धि का प्रयोग न करते हुए विवेकहीन होकर कुत्ते को गोली मार दी|

कुत्ते के मरने के बाद बंजारे ने उसके पास जाकर उसके गले में पड़ी हुई तख्ती पढ़ी तो वह आत्मग्लानि से भर गया|और उसने जोश में होश खोकर अपने वफादार कुत्ते को खो दिया| जिसका उसे तमाम उम्र पछतावा रहा|

अत: हमें कोई भी कार्य करने से पहले अपनी बुद्धि का प्रयोग कर मन में विवेक पूर्ण विचार करके ही कार्य को करना चाहिए ताकि बाद में अपने द्वारा किये गए कार्य पर बंजारे की तरह पछताना न पड़े|



 

Thursday, November 14, 2013

मानव,दानव|

रामायण में जब किसी राक्षस का वर्णन आता है तो हम कल्पना करते हैं कि राक्षसों के दो सींग,बड़े बड़े दांत व् लम्बे,लम्बे नाख़ून होते थे| और वह मानव जाति को तरह तरह से सता कर उनका खून पीते थे| परन्तु ऐसा कुछ नहीं है|

आदमी के ही दो रूप होते हैं| सात्विक और सद्विचारों के साथ जीवन बिताने वाले को मानव,और राक्षसी विचारधारा के साथ मांस व् शराब आदि तामसी भोजन का प्रयोग करने वाले को राक्षस कहते हैं| बच्चा जब पैदा होता है तब उसका स्वभाव सोम्य और निर्मल होता है| उसका मन कुम्हार की मिटटी के समान होता है| जिस प्रकार कुम्हार मिटटी को ढाल, ढाल कर सुन्दर सुन्दर बर्तन बनाता है उसी प्रकार बच्चे के कोमल मन पर परिवार के संस्कारों व् विचारों का जैसा जैसा प्रभाव पड़ता है उसी दिशा में उसका विकास होने लगता है


आज हमारे समाज में मनुष्य अनेक प्रकार की प्रति स्पर्धा के बीच जीवन व्यतीत करता है| अपने से अधिक सामर्थ्यवान व्यक्ति के पास अपने से अधिक वस्तुएं देख कर उसका मन कुंठा से भर जाता है| उसके समान जीने की प्रति स्पर्धा के कारण वह गलत तरीके से धनोपार्जन करने हेतु गलत काम करने लगता है तब उसका स्वभाव बदलने के कारण वह मानव से दानव बन जाता है|

पाप की दुनिया चकाचोंद भरी होती है| मनुष्य एक बार गलत काम करके इसकी दलदल में फंसता चला जाता है| इससे बचने के लिए हमें अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है| हमें अपनी मुलभुत आवश्यकताओं की पूर्ति अच्छे मार्ग पर चलते हुए करनी चाहिए| कबीर दास जी ने कहा है कि:-

                                सांई इतना दीजिये जामे कुटुम्ब समाय|
                               मैं भी भूखा न रहूँ साधू भी भूखा न जाए||

अच्छे संस्कारों के मिलने से दानव भी मानव बन सकता है| जैसे बाल्मीकि ऋषि अपने परिवार के पालन हेतु लूट खसोट का कार्य करते थे| एक बार उन्होंने रास्ते में जा रहे साधुओं को रोक कर लूटने का प्रयत्न किया| साधुओं ने कहा हम अपना सब कुछ तुम्हे स्वयं ही दे देंगे| परन्तु तुम हमारे एक प्रश्न का उत्तर दो कि तुम यह गलत कार्य किसके लिए करते हो?

बाल्मीकि जी ने कहा कि मैं यह गलत कार्य अपने परिवार के पालन हेतु करता हूँ| साधुओं ने कहा कि तुम अपने परिवार वालों से यह पूछ कर बताओ कि मेरे द्वारा गलत रास्ते से कमाए गए धन के पाप कर्म में भी आप बराबर के हिस्सेदार बनोगे?

बाल्मीकि जी ने कहा बहुत खूब मैं परिवार वालों से पूछने जाऊं और तुम रफूचक्कर हो जाओ| साधुओं ने कहा तुम हमें पेड़ से बांध कर चले जाओ| साधुओं की बात मान उन्हें पेड़ से बांध कर वह अपनी पत्नी से पूछने के लिए घर आया|

बाल्मीकि जी ने पत्नी से वही प्रश्न किया तो पत्नी ने उत्तर दिया कि तुम्हारे द्वारा किये गए किसी भी अच्छे या बुरे कार्य में हम कैसे हिस्सेदार हो सकते हैं| पत्नी की बातें सुन कर उनका मन अपने आप से घर्णा करने लगा| उन्होंने तुरंत वापस आकर साधुओं को खोल दिया,और तपस्या करने के लिए बनों में चले गए| तपस्या करके बाल्मीकि जी दानव से मानव बनकर बहुत बड़े ऋषि बने|

समाज में कुछ ऐसी भी घटनाएँ घटित होती हैं कि शक्तिशाली व्यक्ति के द्वारा अपने से कमजोर व्यक्ति को आवश्यकता से अधिक सताए जाने पर भी वह मजबूरीवश उससे बदला लेने के लिए बहुत बडा बदमाश(दानव) बन जाता है|

अत:जो व्यक्ति सत्य मार्ग पर चलते हुए समाज द्वारा बनाये गए नियमों का पालन करते हुए अपने परिवार का पालन करता है सही मायने में वही सच्चा मानव कहलाने का अधिकारी है|

 

Monday, November 11, 2013

नफ़रत की बदबू|

एक छोटी कक्षा में पढने वाले बच्चे आपस में लड़ झगड़ कर एक दुसरे की शिकायत गुरु जी से किया करते थे| गुरु जी के समझाने के बाद भी उनमे झगडे होते ही रहते थे|

एक दिन गुरु जी ने विचार किया कि इनको खेल के माध्यम से नफरत के विषय में शिक्षा देनी चाहिए| अत: उन्होंने एक प्लास्टिक का एक एक छोटा थैला सभी बच्चों को देकर कहा कि मैं तुम्हारे साथ एक खेल खेलना चाहता हूँ|

गुरु जी ने कहा कि प्रत्येक छात्र अपने घर से स्केच पेन के द्वारा अलग अलग आलूओं पर उन बच्चों के नाम लिख कर लायेगा जिन जिनके साथ झगडा होता है| अगले दिन प्रत्येक छात्र से उन्होंने पूछा कि बताओ आपके थैले में कितने कितने आलू हैं?

किसी छात्र ने कहा कि मेरे थैले में दो आलू हैं, किसी ने तीन तो किसी ने पांच आलू बताये| कुछ बच्चों ने कहा कि हमारे थैले में एक भी आलू नहीं है| क्योंकि हमारा किसी से झगडा नहीं होता है|

गुरु जी ने कहा हमारे खेल के अनुसार आपको एक सप्ताह तक सोते जागते यह थैला हर समय अपने पास रखना होगा|

एक सप्ताह बाद गुरु जी ने बच्चों से थैले के आलूओं के विषय में पूछा| तो सभी बच्चों ने कहा कि थैले के सभी आलू सड़ गए हैं| उनमे से बदबू आरही है|

तब गुरु जी ने बच्चों को समझाया कि जिस प्रकार आलू एक साथ रहकर भी बिना शुद्ध हवा के सड़ गए उसी प्रकार हमारे अन्दर से भी प्यार रूपी हवा से दूर रहने पर नफरत रूपी बदबू आने लगेती है| इसलिए हमें आपस के झगडे रूपी नफरत की बदबू से दूर रहकर प्यार रूपी हवा में मिलजुल कर रहना चाहिए|  

Wednesday, November 6, 2013

गुल्लर भी पकवान|

गर्मियों के दिन थे| एक गडरिया भेड़ चराने जंगल गया हुआ था| भयंकर गर्मी पड रही थी मानो आकाश से आग बरस रही हो| ऐसे में वह गडरिया एक पेड़ के नीचे लेट कर सो गया|

एक राजा जंगल में शिकार खेलने के लिए गया हुआ था| कि वह अपने काफिले से बिछड़ कर रास्ते से भटक गया| इधर उधर भटकते हुए भुख, प्यास से परेशान राजा ने अचानक से गडरिये को देखा|

राजा ने विनय भरे शब्दों में कहा, थोडा पानी मिलेगा? गडरिये ने अपने गिलास से राजा को पानी पिलाया| पानी पीने के बाद राजा की जान में जान आई| तब उन्होंने पूछा कि क्या कुछ खाने को भी मिलेगा?

राजा की बात सुन गडरिये ने कहा कि हे भाई मैं दोपहर के लिए दो रोटी लेकर आता हूँ| अत:एक रोटी तुम खा लो एक मैं खा लूँगा|

ऐसा कह कर उसने एक मोटी अधपकी नमक की रोटी पर गंठा(प्याज )रखकर खाने के लिए दी| भुख से परेशान राजा ने उस अधपकी नमक की रोटी को बड़े ही चाव से खायी| कहते हैं कि भुख में गुल्लर भी पकवान|

अब जैसे ही राजा को ख्याल आया कि मैं जंगल में भटका हुआ हूँ| तो उसने गडरिये से कहा कि देखो भाई मैं इस इलाके का राजा हूँ| अपने काफिले के साथ जंगल में शिकार खेलने आया था| काफिले से बिछड़ कर रास्ते से भटक गया हूँ, अत:रास्ता बता कर मेरी सहायता करें|

राजा की बात सुन गडरिया डर से कांप कर कहने लगा कि महाराज मैंने भूलवश आपके साथ अपने समकक्ष व्यवहार किया है| मैंने रुखी सुखी रोटी खिलाकर आपका अपमान किया है| मैं आपका अपराधी हूँ जो चाहें सजा दें|

राजा ने कहा हे भाई तुमने भूख  प्यास से मेरी जान बचाई है आप तो मेरे प्राणदाता हो आज से तुम मेरे मित्र हो आप मेरे मित्र के रूप में सदा आमंत्रित हैं| गडरिये के द्वारा रास्ता बताने पर राजा अपने शहर चले गए| गडरिये ने घर आ कर राजा से अपनी मित्रता के विषय में पत्नी को बताया|

बारिश न होने से उस इलाके में अकाल पड गया| पानी व् घास की कमी के कारण गडरिये की भेड़ बकरियां भी एक एक करके मरने लगी| गडरिये की पत्नी ने कहा कि तुम्हारा तो राजा मित्र है| ऐसी मुसीबत के समय में उनसे सहायता मांग कर देख लो|

पत्नि की बात सुन कर गडरिया राजा से मिलने उसके शहर पहुंचा| राजा ने उसे देख गले से लगा कर अपने दरबारियों से अभीष्ट मित्र की भांति परिचय कराकर उसे महल में ले गया| तथा आदर सहित ठहरा कर उसकी सेवा में अनेक दास दासियाँ छोड़ दी|

गडरिया अनेक प्रकार के सुख जैसे स्वादिस्ट भोजन. दास दासियों के द्वारा सेवा किया जाना व् मखमली गद्दों पर सोना इत्यादि प्रकार के आराम के कारण यहाँ आने का उद्देश्य भी भूल गया|

प्रति दिन राजा उससे मिलने आते थे| एक दिन हालचाल पूछने पर उसने कहा कि मुझे आज रात में ठीक से नींद नहीं आई| राजा के पूछने पर उसने कहा कि रात भर कुछ चुभता रहा है|

नौकर के द्वारा बिस्तर देखने पर गद्दे की ऊपरी सतह में एक बिनोला मिला| जिसके चुभने के कारण गडरिये को नींद नहीं आई|

इस पर राजा ने कहा कि इसमें इसका कोई दोष नहीं है| पहले इसे भेड़ बकरी चराते चराते भीषण गर्मी में पेड़ के नीचे ऊबड़ खाबड़ जमीन पर नींद आ जाती थी| परन्तु यहाँ मिली सुविधाओं के कारण समय बिताने पर एक बिनोला ही कष्ट पहुंचा रहा है|

अत:उपरोक्त कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि जिस प्रकार एक राजा जो प्रतिदिन अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन चखता था उसे भुख, प्यास में रुखी सुखी रोटी भी स्वादिष्ट पकवान से अच्छे लगे|और इसके विपरीत गडरिये को राजसी सुविधाओं के मिलने पर एक बिनोला भी चुभने लगा| उसी प्रकार हमारे मन की स्थिति है| हमें हर परिस्थिति में मन पर कंट्रोल रख कर कर्म करते रहना चाहिए|