Tuesday, September 17, 2013

पाप, पुन्य।

पाप और पुण्य क्या है? पाप, पुण्य की कोई परिभाषा नहीं है। पाप करते पुण्य हो जाया करता है पुण्य करते पाप। जिसे मैं पुण्य सोचता हूँ हो सकता है वह दूसरों के लिये पाप हो और जिसे पाप समझता हूँ वह पुन्य हो।

आक्हे के पेड़ का दूध यदि किसी की आंख मे लग जाये तो उसकी ख़राब हो जाती हैं और आक्हे के पेड़ के फूल से पेट की बीमारी की दवाई बनायी जाती है।

डाक्टर एक ही बीमारी मे दो मरीजों को एक ही दवाई देता है जिससे एक मरीज तो ठीक हो जाता है परन्तु दूसरे मरीज को वही दवाई नुकसान देकर दूसरी बिमारी को भी जन्म दे देती है तो क्या डाक्टर ने पहले मरीज के साथ पुन्य तथा दुसरे के साथ पाप किया।

 पुराने समय मे एक राजा बहुत ही धर्मपरायण था। वह प्रतिदिन दान,हवन पूजन करते हुए अपनी प्रजा के प्रति पूर्ण समर्पित रहते हुए राज्य करता था। मृत्यु के बाद उसे यमलोक लेजाया गया। वहां उसका पाप पुण्य का लेखा जोखा देखकर बताया गया कि इस व्यक्ति ने कोई पाप नहीं किया परन्तु देवताओं के हिस्से का भोजन खाया है राजा बड़ा अचम्भित हुआ और कहा कि मैं प्रतिदिन हवन पूजन करके गरीबों को भोजन खिला कर ही खुद भोजन खाया करता था कृपया बतायें मैंने कैसे देवताओं के हिस्से का भोजन खाया है?ऐसा कहते हैं कि हवन मे प्रयोग होने वाली सामग्री देवताओं का भोजन होता है और अग्नि देवताओं का मुख। जिस देवता के निमित हवन किया जाता है उसका आवाहन करते हुए आहुति दी जाती है। राजा को बताया गया कि आपने सामग्री को मुट्ठी मे लेकर आहुति दी जिससे सामग्री आपके नाखूनों मे भर गई। वह सामग्री भोजन करते समय दाल सब्जी के माध्यम से आपके शरीर मे चली गयी,केवल यही पाप आपने किय। जिसके लिये आपको फिरसे मृत्यु लोक मे जाना होगा।

विचार करें कि क्या उस राजा ने जानबूझ कर उस सामग्री का भक्षण किया जिसकी उसे सजा मिली। इसीलिए हमें अपने विवेक से कार्य करना चाहिए।और  यदि किसी कार्य को करने से हमारी आत्मा को शान्ति मिले वही पुन्य है।यदि किसी कार्य को करने के बाद पश्चाताप हो वह पाप है।    

Thursday, September 12, 2013

आत्मबल

मनुष्य अपने आत्मबल के माध्यम से कोई भी कठिन से कठिन कार्य कर लेता है। कोई भी कार्य असंभव नही है। इस  विषय मे मैं अपने जीवन की सच्ची घटना का वर्णन करता हूँ। मुझे बचपन से ही धुर्मपान की आदत पड़ गयी थी। मैं एक दिन मे लगभग तीन ,चार पैकिट सिगरेट पी लेता था जबकि घर या कार्यालय मे सिगरेट जेब मे नही रखता था। रात्रि मे भी नींद खुलने पर सिगरेट पीने के बाद ही नींद आती थी। मेरी इस आदत से मेरे परिवार वाले भी दुखी रहते थे।  12 मार्च 1999 को कार्यालय जाते समय अपने बेटे से सिगरेट खरीद कर लाने को कह कर मैं कार्यालय चला गया।
कार्य मे व्यस्त रहने के कारण देर से घर आया तो अचानक आंधी व तूफान के साथ तेज बारिश शुरू हो गयी। मैंनेदेखा घर पर सिगरेट नही है तो बेटे से पूछा ?उसने कहा कि सिगरेट लाना तो मेरे याद नही रहा। मुझे बहुत तेज गुस्सा आया और कहा कि जाओ अभी जाकर सिगरेट लाओ। उसी समय छोटी बिटिया हाथ जोड़ कर कहने लगी कि पापा आज की माफ़ी देदो इस तूफान और बारिस मे भैया कैसे बाज़ार जायेगा। उसको हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने पर मेरा मन आत्मग्लानि से भर गया और सोचने लगा कि ऐब मैं करूँ और माफ़ी कोई और मांगे। मैंने निश्चय करके बेटी से कहा कि ठीक है बेटी आज के बाद मैं सिगरेट नही पिऊंगा। इस घटना के बाद मैंने बचपन से शुरू किया गया ऐब अपने आत्मबल के कारण सहज मे ही छोड़ दिया।   

 
 

Tuesday, September 10, 2013

परिवार की इज्जत

परिवार की इज्जत परिवार के सदस्यों से होती है ,इस विषय मे एक घटना का वर्णन करता हूँ। एक गावं में एक छोटा सा वैश्य परिवार रहता था। वैश्य अपनी पत्नि व बेटे के साथ घर में ही दुकान करके परिवार का पालन करता था। उसका बेटा विवाह योग्य हो गया था।
वह अपनी पत्नि से  कहता रहता था कि इस घर की इज्जत मेरे ही कारण है मै ही अपनी मेहनत से धन कमा कर परिवार का पालन करता हूँ पत्नि उसे समझती रहती थी कि परिवार की इज्जत परिवार के सभी सदस्यों के आचरण से होती है। वह इससे इंकार करके कहता था कि मेरे पास काफी धन है जिसके कारण  पूरा गावं व आसपास के गावों मे मेरी इज्जत है। पत्नि ने कहा कि समय आने पर खुद समझ जाओगे।
कुछ समय पश्चात पास के गावं से उसके लड़के का रिश्ता आया उन्होंने लड़का पसंद कर लिया। इसके बाद वह वापस जाने लगे वैश्य ने उन्हें कहा कि आप खाना खा कर ही जायेगें। उसने लड़के के कहा कि घर जा कर मेहमानों के लिए खाना तैयार कराओ।
लड़के ने घर जाकर अपनी माता जी से खाना बनाने के लिए कहा वैश्य की पत्नि ने विचार किया कि उन्हें सबक़ सिखाने का अच्छा अवसर है वैश्य सभी मेहमानों को घर ले आया।पत्नि ने आवाज दे कर कहा कि मेहमानों के लिये चावलों का मांड तैयार है आकर ले जाओ ऐसा सुनकर वह दौड़ कर पत्नि के पास आकार क्रोधित हो कहने लगा कि तुमने यह क्या किया तुमने तो मेरी इज्जत मिटटी में मिला दी। पत्नी ने कहा कि मैंने जो बनाया है  वही तो खिलाऊँगी आपने तो मुझे कुछ बनाने के लिए नहीं कहलवाया था यदि इसमें तुम्हारी इज्जत जा रही है तो मै क्या करूँ।
मेहमानों ने जब चावलों के मांड को खाने के लिए सुना तो वें आपस में विचार करने लगे कि यह वैश्य तो बहुत कंजूस है हम अपनी लड़की की शादी इस परिवार मे नही करेगें।
वैश्य बहुत दुखी था पत्नि ने जले पर नमक छिडकते हुए कहा कि आपकी इज्जत तो पुरे गावं व आसपास के गावों मे है वहां से बुला कर बचा लो वैश्य पत्नी के इस आचरण से दुखी होकर बोला ,भाग्यवान पहले वाली बातो को भुल कर इस घर की इज्जत बचा लो। तब पत्नि बोली अच्छा ऐसा है तो तुम मेहमानों के पास जाकर बैठ जाओ और कहो कि चावलों का मांड जल्दी भेजो।मजबूर हो कर उसने ऐसा ही किया मेहमानों के सामने जब कटोरी में मांड पहुंचा तो वे खाने में आनाकानी करने लगे तो पत्नि ने कहा कि अच्छा एक -एक चम्मच तो खालो।उन्होंने बेमन से चम्मच से मांड को खाना शुरू किया तो देखा उसमे अनेक प्रकार के मेवा है ऐसा देखकर वे विचार करने लगे कि इनके यहाँ जब मांड इस प्रकार से बनता है तो इनका खानपीन और रहनसहन तो बहुत उत्तम होगा।वे बड़े खुश हुए तथा रिश्ता तय हो गया.घर की इज्जत पूरे परिवार के सदस्यों के शुद्ध आचरण से ही होती है.

Monday, September 9, 2013

आत्मा सो परमात्मा

आस्था ,पूजा ,अर्चना इन शब्दों का मनुष्य के जीवन से गहरा संबंध है. मनुष्य चाहे किसी भी धर्म से हो, वह अपने धर्म के अनुसार धर्म के प्रति आस्था व विश्वास के साथ पूजा, अर्चना अवश्य करता है। पूजा किसी भी देव, अल्लाह, गॉड, वाहे गुरू आदि को खुश करने के लिए नही जाती बल्कि अपने ही मन के शुद्धिकरण के लिए की जाती है. (आत्मा सो परमात्मा )पूर्ण आस्था से पूजा ,अर्चना करके मनुष्य अपने अन्दर की आत्मा को ही शुद्ध करता है । ज्यों -ज्यों आत्मा शुद्ध होती है त्यों- त्यों मनुष्य अपने जीवन को दूसरों के प्रति समर्पित कर प्रेम से जीने के लिए प्रेरित होता  है।


 

Sunday, September 8, 2013

मुज़फ्फरनगर: मेरा अनुरोध

मेरे शहर के प्यारे हिंदू व मुस्लिम भाइयों,

मुज़फ्फरनगर: मेरा अनुरोध

मुझे अपने शहर व जिले मे भड़के फ़साद को अमेरिका मे इनेट के माध्यम से पढ कर हार्दिक दुख पहुंचा। हम एक परिवार के सदस्यों की तरह है। परिवार मे प्यार के साथ -साथ झगडे भी होते है। हम सभी को यह समझना होगा कि हम जातिवाद के दंश से बाहर निकल कर यह विचार करें क़ि हम जाति बिरादरी से पहले एक व्यक्ति है। हमें इस जातिवाद मे उलझा कर कुछ राजनैतिक पार्टिया अपने फायदे के लिए हमै लड़ा कर फायदा उठाना चाह्ती है जब भी इलेक्शन का समय होता है ऐसा ही होता है हमें इस पर विचार करना होगा। हमारा कोई भी कार्य एक दूसरे के बगैर पुरा नहीं होता यह भी हम जानते है फिर भी चंद असामाजिक तत्वों के भड़कावे मे आकर हम एक दूसरे के खून के प्यासे होकर लड़ने लगते है ऐसा क्यों ?

यदि सोचा जाये कि यें जाति बिरादरी तो बाद मे आयी पहले आया आदमी। आदमी के अन्दर हर जाति विधमान  है जैसे आदमी जब दिमाक से सोचने का कार्य करता है तो वह एक चिन्तक, विचारक (ब्राहमण, मोलवी, पादरी या गुरु) कोई भी हो सकता है। जब वह हाथों से कोई कार्य करता है तो वह पुरुषार्थी होता है जब उसे भूख लगती है तो वह एक वैश्य (वैश्य कोई जाति नही है वह व्यापर के माध्यम से हर जाति के व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करता है) का कार्य करता है। हर जाति का व्यक्ति अपने ही हाथों से अपने शरीर ,घर आदि की सफाई का कार्य करता है। तो फिर विचार करें कि हम किस जाति के आदमी है?

अंत में मेरा अपने प्यारे शहरवासियों से पुरजोर अनुरोध है कि आप इस जातिवाद से ऊपर उठ कर शहर व जिले मे शान्ति व्यवस्था कायम करने मे अपना पूर्ण सहयोग दें।