Thursday, December 26, 2013

भाग्य और लक्ष्मी|

एक शहर में एक गरीब बुढा ब्राह्मण अपनी पत्नि व् सोमदत्त नाम के एक पुत्र के साथ रहता था| सोमदत्त प्रतिदिन राजा की लड़की को कथा सुनाने जाया करता था| वहां से दक्षिणा में जो मिलता उसमे ही वह अपने परिवार का पालन करता था|

एक बार  भाग्य और लक्ष्मी एक दूसरे से अपने आप को बडा बताने लगे| आपस में कोई निर्णय न होने पर दोनों ब्रह्मा जी के पास गए| ब्रह्मा जी ने खुद बूरा न बनते हुए कहा मेरे पास इसका उत्तर नहीं है चलो मैं भी तुम्हारे साथ विष्णु जी के पास चलता हूँ|

तीनों ने विष्णु जी के पास पहुँच कर भाग्य और लक्ष्मी में कौन बडा है यह प्रश्न किया| विष्णु जी ने भी ब्रह्मा जी की तरह बुरा न बनते हुए उत्तर न देकर उन्हें अपने साथ लेकर शिवजी जी के पास पहुँच कर उपरोक्त प्रश्न पुछा| शिवजी जी ने भी कोई उत्तर न देकर कहा कि चलो पृथ्वी पर चलकर इस प्रश्न का उत्तर मालूम करते हैं|

पांचो देवी देवता ने साधू का वेश धारण कर पृथ्वी पर उपरोक्त ब्राह्मण के घर पहुँच अलख जगाई और कहा कि हम रात्रि में भी आपके घर पर ही विश्राम करेंगे| इस पर ब्राह्मण पुत्र सोमदत्त ने अतिथि देवो भव:ऐसा विचार कर कहा महाराज मेरे घर में दक्षिणा में मिले दाल भात आदि से हम तीनों के भोजन की पूर्ति होती है| अत: मैं एक समय के भोजन की व्यवस्था कर सकता हूँ|

साधुओं ने उसे एक बर्तन देकर कहा कि वह दाल भात इस बर्तन में बनाओ तो हम सब का दोनों समय का भोजन बन जाया करेगा| इस प्रकार उस बर्तन में बने भोजन से दोनों समय के भोजन की पूर्ति हो गयी|

अगले दिन प्रात:में सोमदत्त जाने लगा तो एक साधू ने पूछा,तुम कहाँ जा रहे हो? उसने कहा, मैं राजा की लड़की को कथा सुनाने जा रहा हूँ| साधू ने कहा,तुम कथा सुनाने के बाद राजा की लड़की से पूछना कि तुम किस अभिलाषा की पूर्ति हेतु कथा सुनती हो?

सोमदत्त ने कथा सुनाने के बाद उपरोक्त प्रश्न पूछा? राजा की लड़की ने कहा, मैं इस अभिलाषा से कथा सुनती हूँ कि मुझे ऐसा वर मिले जिसकी चर्चा सभी की जबान पर हो, उसके माथे पर चाँद और सूरज की रोशनी हो तथा वह भाग्य का ऐसा धनी हो कि उसके क़दमों में लक्ष्मी थिरकती हुयी हो| तथा ऐसी बारात हो जैसी किसी ने अब तक न देखी हो|

वापस आकर उसने साधुओं को लड़की के उत्तर से अवगत करा दिया| अगले दिन प्रात:काल में जब वह कथा सुनाने के लिए जाने लगा तो साधुओं ने कहा कि बच्चा आज फिर वाही प्रश्न करना वह फिर तुम्हे कल वाली बातें बताये तो तुम तुरंत यह कह कर कि "जैसा पति तुम्हे चाहिए वैसा केवल मैं ही हूँ"यह कह कर भाग आना|

सोमदत्त ने कहा,हे साधू महाराज कहाँ एक मैं गरीब ब्राह्मण जिसका घर उसकी दी हुयी दक्षिणा पर पलता है और कहाँ वह एक राजा की पुत्री? राजा मुझे और मेरे परिवार को मृत्युदंड देकर मोत के घाट उतर देगा| अत; मैं ऐसा नहीं करूँगा|

साधूओं ने कहा कि ठीक है हम तुम्हे परिवार सहित अभी अपने श्राप से भस्म किये देते हैं| सोमदत्त पहले से ही उनके चमत्कार से डरा हुआ था उसने सोचा कि राजा तो बाद में म्रत्युदंड देगा यें अभी अपने श्राप से भस्म कर देंगे|अत:साधुओं को आश्वासन देकर कथा सुनाने चला गया|

कथा सुनाने के बाद सोमदत्त ने कहा कि कल वाले प्रश्न के अनुसार जैसा वर तुम्हे चाहिए वैसा वर मैं ही हूँ|ऐसा कहकर वह वहाँ से भाग आया| राजा की पुत्री को एक दम बहुत आघात पहुंचा| उसने दासी के द्वारा अपने पिता जी को बुला कर सब बात बताई| राजा ने आश्वासन दिया कि उस उदंड ब्राह्मण को इसकी सजा मिलेगी|

राजा ने तुरंत अपने मंत्रियों से विचार विमर्श किया| एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि उसने अपराध तो  फांसी दिए जाने वाला किया है|परन्तु वह एक ब्राह्मण है| उसे फांसी देने पर एक ब्रहमहत्या का पाप लगेगा| कुछ ऐसा किया जाए कि वह दण्डित भी हो और ब्रहमहत्या का पाप भी न लगे|

काफी विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि शादी का निमंत्रण पत्र कुछ शर्तों के साथ भिजवाया जाए| राजा ने शर्तों वाला निमंत्रण पत्र लिखवा कर हलकारे के हाथ सोमदत्त के पिता जी के पास भेज दिया|

उधर सोमदत्त ने घर पहुंच कर साधुओं को बताया कि आपके कहे अनुसार कहने पर राजकन्या बहुत क्रोधित हो गयी थी| अब शीघ्र ही फांसी का सन्देश पहुँचने वाला है| कुछ समय के बाद हलकारा निमंत्रण पत्र लेकर पहुँच गया| साधुओं ने हलकारे को सम्मान सहित बिठा कर सोमदत्त को निमंत्रण पत्र पढ़कर सुनाने के लिए कहा| पत्र इस प्रकार था|

हे ब्राह्मण पुत्र :-
                        हमें तुम्हारा शादी का प्रस्ताव मंजूर है| परन्तु साथ साथ हमारी कुछ शर्तें भी हैं| तुम्हारे द्वारा सभी शर्तें पूरी करने पर हम अपनी लड़की की शादी तुम्हारे साथ कर देंगे| शर्तें पूरी न होने पर तुम्हे परिवार सहित फांसी दे दी जायेगी| शर्तें इस प्रकार हैं|
१:-बारातियों के ठहरने वाले सभी बारातघर तथा बनाए गए सभी तम्बू भरे हुए होने चाहिए| कोई भी तम्बू खाली नहीं रहना चाहिए|
२:-बारातियों के आथित्य सत्कार में बनायी गयी सभी खाद्य सामग्री प्रयोग होनी चाहिए|
३:-ऐसी अद्भुत बारात आनी चाहिए जिसकी चर्चा हर व्यक्ति की जबान पर हो|
बारात आने पर यदि कोई भी शर्त अधूरी होगी तो बरात में आने वाले सभी बारातियों को भी फांसी दे दी जाएगी|

पत्र पढ़कर सोमदत्त डर से कांपने लगा| साधुओं ने कहा, तुम डरो नहीं| हलकारे को भोजन खिला कर पत्र का उत्तर देकर विदा करो और पत्र में लिखो कि आप शादी की तैयारी करैं  हम फला दिन बरात लेकर आ रहे हैं|

हलकारे को भोजन में दाल भात परोसा गया| हलकारे की थाली में वह छतीस प्रकार का भोजन बन गया| विदाई में साधुओं ने उसे मुठ्ठी भर धुनी की राख व् पत्र देकर विदा किया| बाहर आकर हलकारे ने देखा कि वह राख नहीं बल्कि हीरे मोती हैं| वह बहुत खुश हुआ|

राजा ने सकारात्मक उत्तर प्राप्त होने पर विचार किया कि वह गरीब ब्राह्मण किसके भरोसे ऐसा कर रहा है| क्या कोई दुश्मन राजा उसका साथ दे रहा है? यही सोचकर राजा ने शहर के तमाम बारातघर सजवा दिए और अनेकोनेक तम्बू लगवा दिए| राजा को विश्वास था कि अधिक आदमी न आने के कारण वह शर्त हार जाएगा|

सोमदत्त अपनी बारात में चलने के लिए जिसे भी कहता वही उसे यह कह कर मना कर देता कि तुम्हारा तो अंतिम समय आ गया है हम बारात में तुम्हारे साथ मरने के लिए क्यों जाएँ| ऐसी बातें सुनसुन कर वह बहुत परेशान था|

शादी वाले दिन सोमदत्त को परेशान देखकर साधुओं ने कहा, बच्चा आज तुम्हारी शादी है और तुम परेशान हो रहे हो| तैयार होकर हमारे साथ चलो| तुम किसी बात की चिंता मत करो हम तुम्हारे साथ हैं| सोमदत्त ने (भाग्य में जो लिखा है वही होगा) यही सोचकर तैयार होकर साधुओं के साथ चल दिया|

भगवान् शिवजी जी ने इस बारात में चलने के लिए सभी देवताओं को मनुष्य रूप में आमंत्रित किया हुआ था| तथा भुत प्रेत व् अपने सभी गणों को  भी शादी में बुला लिया| जिसके कारण सभी बारातघर व् लगवाये गए सभी तम्बू भर गए| इसके बाद भी कुछ बाराती बिना तम्बू के रह गए|

राजा के पास सूचना भिजवायी गयी कि बारातियों के ठहरने का और प्रबंध कराया जाये| सुचना मिलने पर राजा ने विचार किया कि कहाँ से इतने बाराती आ गए हैं चलकर देखना चाहिए| राजा तुरंत वहां पहुंचे| राजा को आया देखकर शिवजी जी ने शुक्र व शनि जी को बच्चे के रूप में बना कर भूख के कारण रुला दिया| राजा ने दो बच्चों को रोते देखकर पुछा कि यह बच्चे क्यों रो रहे हैं| साधू बने शिवजी जी ने कहा इन्हें भुख लगी है| राजा ने उन बच्चों को खाना खिलाने के लिए भेज दिया|

कुछ समय के बाद राजा के कर्मचारियों ने आकर बताया कि महाराज वें दोनों बच्चे तो सारा का सारा भोजन खा गए हैं और फिर भी भुख भुख चिल्ला रहे हैं| ऐसा सुनकर राजा बहुत परेशान हुए| उन्होंने अपना घमंड त्याग कर साधुओं के सामने नतमस्तक होकर कहा, महाराज अब मेरी लाज आपके हाथ में है| साधुओं ने कहा कि कोई बात नहीं सब कुछ ठीक हो जायेगा| तुम घर जाकर बारात की अगवानी की तैयारी करो|

राजा ने शहर को बहुत ही सुन्दर ढंग से सजवाया| जगह जगह  झालरों से पूरा शहर एक दुल्हन की तरह से सजाया गया| सोमदत्त भी शादी की पोशाक में एक राजकुमार की तरह बहुत सुन्दर दिखाई दे रहा था|

 शाम के समय उसे एक सुन्दर रथ में बिठाया गया| रथ के आगे अनेक प्रकार के बैंडबाजे, नफीरी वाले, ढोल नगाड़े वाले मधुर तान में झूमते हुए चल रहे थे| दुल्हे के मस्तक पर सेहरे को चाँद और सूरज से सजाया गया| बाराती हाथों में नोट (लक्ष्मी) लेकर एक दुसरे पर न्योछावर कर इधर उधर उड़ा रहे थे|

बारात के इस विहंगम द्रश्य को देख कर आपस में कहने लगे कि इस गरीब ब्राह्मण के भाग्य को तो देखो| इसके मस्तक के सेहरे में चाँद सूरज और चारों तरफ से इस प्रकार धन(लक्ष्मी) उड़ाया जा रहा है मानो किसी बहुत बड़े राजा की बारात निकल रही है| ऐसी बारात हमने अपने जीवन में कभी नहीं देखी और न आगे देखने की उम्मीद है|यह भाग्य का बहुत ही धनी है|

पब्लिक की इस प्रकार की बातों को सुनकर ब्रह्मा जी, विष्णु जी, तथा शिवजी जी ने भाग्य व् लक्ष्मी जी से कहा कि देखो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर पब्लिक दे रही है|

अत: मनुष्य को फल की इच्छा न करते हुए कर्म करते रहना चाहिए| मनुष्य को समय से पहले और भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता|










 

Saturday, December 21, 2013

म्रगत्रष्णा

मानव का मन बहुत ही चंचल होता है| मन की इस चंचलता के कारण ही मनुष्य को कभी कभी अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है| कभी कभी अपने आप को ठगा हुआ सा, और कभी कभी सांसारिक मोह माया के जाल में फंस कर मन की म्रगत्रष्णा के कारण अपने आप को लज्जित महसूस करता है |

उपरोक्त विषय में एक पोराणिक कथा का वर्णन करता हूँ| एक बार ऋषि नारद जी ने अपनी घोर तपस्या के बल से कामदेव पर विजय प्राप्त की| कामदेव पर विजय प्राप्त करने के बाद उन्हें घमंड हो गया| जहाँ भी जाते  वहीँ अपनी विजय का ही बखान करते नहीं थकते थे| इसी प्रसंग को नारद जी ने विष्णु जी के सामने भी खूब बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया|

नारद जी के मुख से घमंड भरी बातें सुनकर विष्णु जी ने मन में विचार किया कि एक ऋषि के अन्दर घमंड होना उचित नहीं है| इनका घमंड दूर होना चाहिए| ऐसा विचार कर उन्होंने अपनी योग माया से प्रथ्वी पर एक नगरी बसा कर वहां के राजा की लड़की के रूप में लक्ष्मी जी को भेज दिया|

नारद जी पृथ्वी लोक में  भ्रमण करते करते उसी राजा के दरबार में पहुंचे| राजा उन्हें बहुत ही आदर से अपने घर ले गए| राजा की लड़की विवाह योग्य हो गयी थी| राजा ने नारद जी को अपनी कन्या की जन्म पत्री दिखा कर उसके भविष्य के विषय में पूछा|

नारद जी ने जन्म पत्री देख कर बताया कि यह कन्या तो बहुत ही भाग्यशाली है, जिसके साथ इसकी शादी होगी वह तीनो लोकों का राजा होगा| सुन्दरता में भी इस कन्या के बराबर कोई नहीं है उन्होंने राजा को सलाह दी कि इस कन्या की शादी का स्वम्बर करके जिसके गले में वरमाला पहनाये उससे इसकी शादी करदो| राजा ने कहा ऐसा ही करूँगा|

नारद जी ने मन में विचार किया कि यदि इस कन्या से मेरी शादी हो जाए तो मैं तीनो लोकों का राजा बन जाऊंगा| नारद जी विष्णु जी के पास पहुंचे और उन्हें कन्या की सुन्दरता और भाग्य के विषय में बता कर कहा कि आप मुझे ऐसा सुन्दर रूप प्रदान करें कि वह कन्या मेरी सुन्दरता पर मोहित होकर मेरे गले में वरमाला डाल दे| विष्णु जी ने कहा कि तुम्हे दूसरा रूप दे दिया जाएगा|

राजा ने लड़की की शादी के लिए स्वम्बर करके राजाओं को आमंत्रित किया| वहां विष्णु जी व् नारद जी भी भेष बदल कर स्वम्बर में शामिल हो गए| नारद जी को देखकर उनके आस पास बैठे राजा आपस में खुसर पुसर करने लगे| नारद जी मन ही मन प्रसन्न थे कि ये राजा मेरी सुन्दरता पर ही विचार करके खुसर पुसर कर रहे हैं|

राजा की लड़की वर माला लेकर जब नारद जी के पास पहुंची तो वह उन्हें देखकर हंसती हुई आगे निकल कर जहाँ विष्णु जी भेष बदल कर बैठे थे वहां पहुँच कर उनके गले में वर माला डाल दी| नारद जी ने उस ओर देख कर अपने तपोबल के कारण विष्णु जी को पहचान लिया|

नारद जी क्रोधित होकर विष्णु जी के पास पहुंचे और कहा कि जब आपको ही शादी करनी थी तो मुझे इतना सुन्दर रूप ही क्यों दिया? नारद जी की बात सुनकर सभा में उपस्थित सभी राजा जोर जोर से हँसते हुए कहने लगे कि तुम अपना चेहरा आईने में जाकर देखो, आपका चेहरा एक बन्दर जैसा दिखाई दे रहा है|

ऐसा सुनकर नारद जी को अपना जीवन रात की कालिमा के अनुसार अंधकारमय प्रतीत हुआ उन्होंने अत्यंत क्रोधित होकर विष्णु जी को श्राप दिया कि तुमने जिस रूप को देकर आज मुझे उपहास का पात्र बनाया है एक दिन ऐसा आएगा कि तुम्हे बंदरों से ही सहायता लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा|

विष्णु जी ने कहा कि हे भक्त तुम्हारे वचन सत्य हों| और ऐसा ही हुआ|  रामायण में श्री राम रूपी विष्णु जी को वानरों की सहायता से ही रावण पर विजय प्राप्त हुई थी|

मेरा तो कहना है कि जब एक ऐसे महान तपस्वी ऋषि का मन चलायमान हो सकता है तो मानव की क्या गिनती है| कभी कभी मनुष्य अपने मन की म्रगत्रष्णा के कारण उपहास का पात्र बनकर समाज में लज्जित हो जाता है






 

Wednesday, December 18, 2013

दोस्त की नादानी|

एक गाँव में मोहन और सोहन नाम के दो दोस्त रहते थे| मोहन बहुत ही सीधे स्वभाव का व्यक्ति था| सोहन का स्वभाव चंचल था| कभी कभी सोहन की चंचलता के कारण वह उससे नाराज भी हो जाता था|

सर्दियों के दिन थे| एक दिन  मोहन ने सोहन से कहा कि आज मैंने तरबूज खाया है| उसकी बात सुनकर सोहन ने कहा कि सर्दियों में तरबूज कहाँ से आएगा तुम झूठ बोलकर मेरा बेवकूफ बना रहे हो|

मोहन ने उसे बताया कि शहर में सर्दियों में भी तरबूज मिलते हैं| कल किसी काम से शहर गया था वहां से ही तरबूज खरीद कर लाया था| तुम मेरे घर चलो मैं तुम्हे भी तरबूज खिलाऊंगा|

सोहन ने कहा कि मुझे तुम्हारी बात पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है| यदि तुम तरबूज न खिला पाए तो मुझे क्या  दोगे? मोहन ने कहा ऐसा कुछ नहीं होगा फिर भी तरबूज न खिलाने पर जो तुम कहोगे मैं तुम्हे दे दूंगा|

सोहन ने कहा शर्त हारने पर जिसे मैं मुठ्ठी से पकड़ लूँगा वह मेरी हो जायेगी| मोहन ने यह सोचकर कि तरबूज तो मैं इसे खिला ही दूंगा फिर मुझे शर्त मानने में क्या डर है अत: उसने सरल स्वभाव से उसकी शर्त मान ली| 

मोहन उसे अपने साथ लेकर घर आया| उसने अपनी पत्नी से तरबूज खिलने के लिए कहा| उसकी पत्नी ने कहा कि शेष बचे हुए तरबूज को तो बच्चों ने खा लिया है|  मैं कुछ ओर खिला देती हूँ|

इस पर सोहन ने कहा बात खाने खिलाने की नहीं है आप तरबूज का वह कच्चा भाग ही दिखा दो जो कूड़े में डाल दिया जाता है|मोहन की पत्नी ने कहा कि उस कूड़े को तो जमादार उठा कर ले गया| इस पर सोहन ने कहा चलो जमादार के पास चलते हैं|

दोनों मित्रों ने जमादार के पास जाकर तरबूज के कूड़े के बारे में पुछा तो जमादार ने कहा तरबूज के कूड़े को जानवर खा गए| ऐसा सुनकर सोहन ने कहा तुम शर्त हार चुके हो अत:शर्त के अनुसार वायदा पूरा करो| मोहन ने  कहा ठीक है भाई, हम शर्त हार गए तुम्हारी मुठ्ठी में जितना आये आप लेलें|

सोहन की नियत पहले से ही उसकी पत्नि पर थी| अत: उसने उसकी पत्नि की ओर बढ़ कर उसका हाथ मुठ्ठी में पकड़ना चाहा| सोहन की नियत को भांप कर मोहन व् उसकी पत्नि क्रोधित हो कर उसे डांटने लगे| सोहन ने  कहा यह तो शर्त की बात है, तुम चाहो तो किसी ओर से फैसला करा लो| मोहन ने कहा कि कल किसी ओर से ही इसका फैसला कराया जाएगा|

मोहन ने गाँव के सरपंच से मिलने का निर्णय किया| सरपंच जी के मोहल्ले में पहुँच कर उसने एक लड़के से सरपंच जी के मकान का पता पूछा| लड़के ने कहा पता बताने पर मुझे क्या मिलेगा| मोहन ने कहा तुम पता तो बताओ तुम्हे भी कुछ दे दूंगा|

लड़के ने कहा कि सामने वाला घर सरपंच जी का ही है| मोहन ने जेब से कुछ पैसे निकाल कर उसे देने चाहे तो उस लड़के ने कहा कि मुझे पैसे नहीं मुझे तो आपने कुछ देने का वायदा किया था अत: मुझे तोकुछ ही चाहिए| मोहन के समझाने पर भी बच्चा अपनी जिद पर अड़ कर झगड़ने लगा| बाहर बच्चे के शोर को सुनकर सरपंच जी ने घर से बाहर आकर झगड़े का कारण पूछा?

मोहन ने उन्हें अपने यहाँ आने और पता पूछने वाली बात बताई| सरपंच जी ने दोनों को अपनी बैठक में बिठा कर मकान के अन्दर चले गए| कुछ समय के बाद सरपंच जी दो गिलास दूध लेकर बैठक में वापस आये| एक गिलास मोहन को तथा दूसरा गिलास लड़के को देकर कहा कि आप लोग दूध पियो|

लड़के ने गिलास में देख कर कहा कि इसमें तो कुछ पड़ा हुआ है| सरपंच जी ने कहा कि तुम्हे कुछ चाहिए था इसमें से निकाल कर लेलो| इस पर बच्चा शर्मा कर भाग गया| तब उन्होंने मोहन से आने का कारण पूछा? मोहन ने शर्त वाली बात बता कर सोहन की बदनियती से अवगत कराया| सरपंच जी ने कहा कल सोहन को अपने घर बुला लो, मैं भी समय पर पहुँच जाऊंगा|

अगले दिन सरपंच जी ने मोहन के घर पहुँच कर उसकी पत्नि को कहा कि तुम आँगन में कड़ी सीडी से छत पर पहुँच कर मुडेर के पास खड़ी हो जाओ| इसके बाद सोहन को बुला कर शर्त के अनुसार मुठ्ठी भरने के लिए कहा| सोहन ने देखा कि मोहन की पत्नि छत पर खड़ी है,तो वह सीडी के पास पहुंचा| जैसे ही उसने ऊपर जाने के लिए सीडी का पहला डंडा हाथ से पकड़ा तो सरपंच जी ने कहा कि आपने शर्त के अनुसार अपनी मुठ्ठी में डंडा पकड़ लिया है अत: दूसरा डंडा पकड़ने पर वह डंडा आपके शरीर पर पड़ेगा| तुम सीडी का पहला डंडा उखड कर अपने साथ लेजा सकते हो|

सोहन को जैसे ही अपनी गलती का अहसास हुआ तो वह पश्चाताप करने लगा| सरपंच जी ने उसे समझाते हुए कहा कि तुमने अपने अच्छे और सच्चे मित्र के साथ विश्वासघात किया है| जिसके कारण तुम कभी भी सुखी नहीं रहोगे|

सच्चा और अच्छा मित्र निस्वार्थ भाव से एक दुसरे की सहायता करने के लिए तत्पर रहता है| सच्चा मित्र वही होता है जो मित्र पर आपत्ति आने पर तन,मन और धन से उसके ऊपर न्योछावर हो जाए| सच्चे मित्र की आपत्ति में ही परीक्षा होती है|

   

Friday, December 13, 2013

आम आदमी पार्टी से मेरा निवेदन

भाई कजरीवाल जी व् उनकी आम आदमी पार्टी आज एक ईमानदार, जुझारू, निडर और कर्मठ समाजसेवी के रूप में उभर कर सामने आई है| आम आदमी पार्टी की कार्य प्रणाली शुरू से ही जनता की समस्याओं को उजागर कर एक मजबूत विपक्ष जैसी है|

माननीय उपराज्यपाल जी ने आम आदमी पार्टी के संयोजक श्री केजरीवाल जी को सरकार बनाने के लिए परामर्श करने हेतु बुलाया परन्तु उन्होंने सरकार बनाने से इंकार कर दिया| मेरी सोच के अनुसार सरकार न बनाने के पीछे निम्न कारण हो सकते हैं|

१.सरकार बनाने के लिए बहुमत न होना :- इस विषय में मैं यह कहना चाहता हूँ कि कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी को समर्थन देने से सम्बन्धित एक पत्र माननीय उपराज्यपाल जी को लिखित रूप में दे दिया है| इसके अलावा इन्होने स्वयं अन्य दलों से निवेदन किया है कि ईमानदार छवि के विधायक हमारा समर्थन करें| इस विषय में मेरा कहना है कि हर पार्टी में ईमानदार विधायकों की काफी संख्या होती है| हो सकता है कि जो व्यक्ति अन्य दलों में ईमानदार छवि वाले जीत कर आये हैं वह बहुमत सिद्ध करने वाले दिन सदन में उपस्थित ही न रहें और आपकी पार्टी का बहुमत सिद्ध हो जाये|

२.सरकार न चलाने का तजुर्बा :- इस विषय में मेरा मानना है कि प्रयास करने पर ही तजुर्बा होता है| अन्यथा की स्थिति में आपकी हालत कबीर दास जी की इन पक्तियों के अनुसार हो जायेगी जो  इस प्रकार हैं :-

                                       जिन ढूंढा तिन पाइया गहरे पानी पैंठ |
                                       मैं बावरी बूढन डरी रही किनारे  बैठ ||

अत;केजरीवाल जी आपकी पार्टी के अबतक के ब्यान से यही दिखाई दे रहा है कि आप डूबने के डर से सरकार बनाने में अपने कदम पीछे हटा रहे हो| यदि मोती प्राप्त करना है तो छलांग तो लगानी ही होगी, अन्यथा जनता की नज़रों में उपेक्षित हो जाओगे|

३.जनता से किये गए वायदे :- हो सकता है कि अब आप ऐसा महसूस कर रहे हों कि मैंने जो जनता से वायदे किये हैं वह पुरे न हों| क्योंकि आपने वायदे ही कुछ इस प्रकार के किये हैं | जैसे बिजली के मूल्यों में ५०% तक की कटोती करना| पानी को भी काफी हद तक मुफ्त में जनता को दिलाना| तथा दिल्ली की दबी कुचली जनता को महंगाई, बेरोजगारी, लुट खसोट, बलात्कार से भय मुक्त वातावरण बनाना | दिनांक १३-१२-२०१३ के अमर उजाला अखबार में मैंने पढ़ा कि दिल्ली बिजली वितरण कम्पनियों ने बिजली नियामक बोर्ड से बिजली की दरों में लगभग ४ या 5 % बढाने के लिए लिखा है| यदि सरकार नहीं बनेगी तो बिजली का मूल्य घटने के बजाये बढ़ जायेगा |

अत: में मैं अपनी बात यह ही कह कर समाप्त करता हूँ कि :-
करत करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान|  इसलिए आपको सभी तथ्यों सहित मेरी बात पर विचार करते हुए सरकार बना कर दुसरे दलों के ईमानदार विधायकों का समर्थन लेकर अपने द्वारा जनता से किये गए वायदे पुरे करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए| दुसरे दलों के अवरोध पैदा करने पर आप पुन:जनता के बीच जाएँ| ऐसा करने पर आपको तजुर्बा भी हो जाएगा और यदि फिर से चुनाव हुए तो आपको पूर्ण बहुमत भी मिलेगा

 

Saturday, December 7, 2013

ईर्ष्या|

एक गावं में एक लक्कडहारा रहता था| वह जंगल से सुक्खी लकड़ी काट कर बाज़ार में बेचने पर जो प्राप्त होता, उसी से वह अपने परिवार का पालन करता था|

जंगल में एक पेड़ पर एक जिन्न रहता था| एक दिन लक्कडहारे ने उस पेड़ को काटने के लिये कुल्हाड़ा उठाया तो जिन्न ने प्रगट होकर कहा कि हरे पेड़ काटना पाप है| अत: इसे मत काटो|

लक्कडहारे ने कहा कि यहाँ के सभी सुक्खे पेड़ समाप्त हो गए हैं| मुझे अपने परिवार के पालन पोषण हेतु हरे पेड़ ही काटने पड़ेंगे, यह मेरी मज़बूरी है|

जिन्न ने कहा, मैं तुम्हे ऐसा वरदान देता हूँ कि अपनी उचित आवश्यकता के अनुसार जो तुम मांगोगे वही तुम को मिल जाया करेगा| जिन्न से वरदान मिलने पर वह वापस लौट आया| उसने घर आकर जिन्न वाली घटना को अपनी पत्नि को बताया| पत्नि ने कहा कि जिन्न के कहे अनुसार कुछ मांग कर देख लो|

लक्कडहारा अपनी आवश्यकता के अनुसार जो मांगता गया उसे वही मिलता गया लक्कडहारा इसे भगवान का प्रसाद समझ भगवान की भक्ति में लीन रहकर अपना समय बिताने लगा| पड़ोस में भी चर्चा होने लगी कि लक्कडहारा अब लकड़ी काटने भी  नहीं जाता और इसका परिवार का रहन सहन भी ठीक हो गया है कहीं इसे कोई गडा हुआ धन तो नहीं मिल गया|

मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने दुःख से नहीं बल्कि दुसरे के सुख से दुखी होता है| अत: ईर्ष्यावश एक पडोसी उसके पास पहुंचा और कहा कि अब तुम लकड़ी काटने भी नहीं जाते हो, क्या जंगल से कोई गडा हुआ धन मिल गया?

लक्कडहारा बहुत ही सरल स्वभाव का व्यक्ति था उसने जिन्न वाली पूरी घटना उसे सुना दी| जिसे सुनकर पडोसी ने लालचवश सोचा कि यदि मैं भी उस पेड़ को काटने के लिए जाऊंगा तो मुझे भी वरदान मिल जायेगा|

अगले दिन वह भी हाथ में कुल्हाड़ी लेकर उस पेड़ को काटने के लिए जंगल में पहुंचा और पेड़ काटने के लिए जैसे ही कुल्हाड़ी उठाई तो जिन्न ने प्रगट हो कर कहा कि तुम तो लकड़ी काटने का काम भी नहीं करते हो फिर इस पेड़ को क्यों काटते हो?

पडोसी ने कहा, यदि लक्कडहारे वाला वरदान मुझे दो तो मैं पेड़ नहीं काटूँगा| जिन्न ने कहा कि ठीक है|  तुम जो मांगोगे तुम्हे वही मिलेगा परन्तु लक्कडहारे को उसका दुगना अपने आप मिल जाया करेगा|

इससे खुश होकर उस व्यक्ति ने घर आकर लालच के वशीभूत होकर जो धन दौलत मांगी वही उसे मिली परन्तु लक्कडहारे को उससे दोगुनी दौलत प्राप्त होती गयी|

लक्कडहारा उस प्राप्त धन से गरीब और असहाय व्यक्तियों की सहायता करने लगा जिससे उसकी ख्याति दूर दूर तक फैलने लगी| जिसे देख वह पडोसी और अधिक ईर्ष्या करने लगा| ईर्ष्यावश उसने जिन्न से माँगा कि मेरा  एक पैर, एक हाथ टूट जाये और एक आँख भी फूट जाये| 

फलस्वरूप उसका एक हाथ, एक पैर टूट गया और एक आँख भी फूट गयी परन्तु लक्कडहारे के दोनों पैर,दोनों हाथ टूट गए और दोनों आँखे फूट गयी जिसे देख कर वह अपने दुःख को भूल कर लक्कडहारे को देखकर खुश होने लगा|

लक्कडहारे ने मन ही मन जिन्न को याद करते हुए कहा कि हे जिन्न महाराज मेरे शरीर के सभी अंगों को ठीक कर दो ताकि मैं फिर से सेवा कार्य में अपना सहयोग दे सकूँ| ऐसा कहते ही वह ठीक हो गया|

पडोसी ने फिर जिन्न को याद कर फिर से उसका बुरा करना चाहा तो जिन्न ने प्रगट होकर कहा कि हे मूर्ख मानव तूने ईर्ष्या के कारण दूसरे का बुरा करना चाहा इसलिए दिया गया वरदान समाप्त हो गया और मैं भी इस जिन्न के रूप को त्याग रहा हूँ तुझे तेरे किये का फल मिल गया है|
ईर्ष्या किसी अनजान व्यक्ति से न होकर किसी अपने मित्र, पड़ोसी, या रिश्तेदार से ही होती है|ईर्ष्या से अपना ही नुकसान होता है अत: हमें ईर्ष्या के चक्रव्यूह से दूर ही रहना चाहिए|












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