Saturday, December 7, 2013

ईर्ष्या|

एक गावं में एक लक्कडहारा रहता था| वह जंगल से सुक्खी लकड़ी काट कर बाज़ार में बेचने पर जो प्राप्त होता, उसी से वह अपने परिवार का पालन करता था|

जंगल में एक पेड़ पर एक जिन्न रहता था| एक दिन लक्कडहारे ने उस पेड़ को काटने के लिये कुल्हाड़ा उठाया तो जिन्न ने प्रगट होकर कहा कि हरे पेड़ काटना पाप है| अत: इसे मत काटो|

लक्कडहारे ने कहा कि यहाँ के सभी सुक्खे पेड़ समाप्त हो गए हैं| मुझे अपने परिवार के पालन पोषण हेतु हरे पेड़ ही काटने पड़ेंगे, यह मेरी मज़बूरी है|

जिन्न ने कहा, मैं तुम्हे ऐसा वरदान देता हूँ कि अपनी उचित आवश्यकता के अनुसार जो तुम मांगोगे वही तुम को मिल जाया करेगा| जिन्न से वरदान मिलने पर वह वापस लौट आया| उसने घर आकर जिन्न वाली घटना को अपनी पत्नि को बताया| पत्नि ने कहा कि जिन्न के कहे अनुसार कुछ मांग कर देख लो|

लक्कडहारा अपनी आवश्यकता के अनुसार जो मांगता गया उसे वही मिलता गया लक्कडहारा इसे भगवान का प्रसाद समझ भगवान की भक्ति में लीन रहकर अपना समय बिताने लगा| पड़ोस में भी चर्चा होने लगी कि लक्कडहारा अब लकड़ी काटने भी  नहीं जाता और इसका परिवार का रहन सहन भी ठीक हो गया है कहीं इसे कोई गडा हुआ धन तो नहीं मिल गया|

मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने दुःख से नहीं बल्कि दुसरे के सुख से दुखी होता है| अत: ईर्ष्यावश एक पडोसी उसके पास पहुंचा और कहा कि अब तुम लकड़ी काटने भी नहीं जाते हो, क्या जंगल से कोई गडा हुआ धन मिल गया?

लक्कडहारा बहुत ही सरल स्वभाव का व्यक्ति था उसने जिन्न वाली पूरी घटना उसे सुना दी| जिसे सुनकर पडोसी ने लालचवश सोचा कि यदि मैं भी उस पेड़ को काटने के लिए जाऊंगा तो मुझे भी वरदान मिल जायेगा|

अगले दिन वह भी हाथ में कुल्हाड़ी लेकर उस पेड़ को काटने के लिए जंगल में पहुंचा और पेड़ काटने के लिए जैसे ही कुल्हाड़ी उठाई तो जिन्न ने प्रगट हो कर कहा कि तुम तो लकड़ी काटने का काम भी नहीं करते हो फिर इस पेड़ को क्यों काटते हो?

पडोसी ने कहा, यदि लक्कडहारे वाला वरदान मुझे दो तो मैं पेड़ नहीं काटूँगा| जिन्न ने कहा कि ठीक है|  तुम जो मांगोगे तुम्हे वही मिलेगा परन्तु लक्कडहारे को उसका दुगना अपने आप मिल जाया करेगा|

इससे खुश होकर उस व्यक्ति ने घर आकर लालच के वशीभूत होकर जो धन दौलत मांगी वही उसे मिली परन्तु लक्कडहारे को उससे दोगुनी दौलत प्राप्त होती गयी|

लक्कडहारा उस प्राप्त धन से गरीब और असहाय व्यक्तियों की सहायता करने लगा जिससे उसकी ख्याति दूर दूर तक फैलने लगी| जिसे देख वह पडोसी और अधिक ईर्ष्या करने लगा| ईर्ष्यावश उसने जिन्न से माँगा कि मेरा  एक पैर, एक हाथ टूट जाये और एक आँख भी फूट जाये| 

फलस्वरूप उसका एक हाथ, एक पैर टूट गया और एक आँख भी फूट गयी परन्तु लक्कडहारे के दोनों पैर,दोनों हाथ टूट गए और दोनों आँखे फूट गयी जिसे देख कर वह अपने दुःख को भूल कर लक्कडहारे को देखकर खुश होने लगा|

लक्कडहारे ने मन ही मन जिन्न को याद करते हुए कहा कि हे जिन्न महाराज मेरे शरीर के सभी अंगों को ठीक कर दो ताकि मैं फिर से सेवा कार्य में अपना सहयोग दे सकूँ| ऐसा कहते ही वह ठीक हो गया|

पडोसी ने फिर जिन्न को याद कर फिर से उसका बुरा करना चाहा तो जिन्न ने प्रगट होकर कहा कि हे मूर्ख मानव तूने ईर्ष्या के कारण दूसरे का बुरा करना चाहा इसलिए दिया गया वरदान समाप्त हो गया और मैं भी इस जिन्न के रूप को त्याग रहा हूँ तुझे तेरे किये का फल मिल गया है|
ईर्ष्या किसी अनजान व्यक्ति से न होकर किसी अपने मित्र, पड़ोसी, या रिश्तेदार से ही होती है|ईर्ष्या से अपना ही नुकसान होता है अत: हमें ईर्ष्या के चक्रव्यूह से दूर ही रहना चाहिए|












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