Thursday, December 26, 2013

भाग्य और लक्ष्मी|

एक शहर में एक गरीब बुढा ब्राह्मण अपनी पत्नि व् सोमदत्त नाम के एक पुत्र के साथ रहता था| सोमदत्त प्रतिदिन राजा की लड़की को कथा सुनाने जाया करता था| वहां से दक्षिणा में जो मिलता उसमे ही वह अपने परिवार का पालन करता था|

एक बार  भाग्य और लक्ष्मी एक दूसरे से अपने आप को बडा बताने लगे| आपस में कोई निर्णय न होने पर दोनों ब्रह्मा जी के पास गए| ब्रह्मा जी ने खुद बूरा न बनते हुए कहा मेरे पास इसका उत्तर नहीं है चलो मैं भी तुम्हारे साथ विष्णु जी के पास चलता हूँ|

तीनों ने विष्णु जी के पास पहुँच कर भाग्य और लक्ष्मी में कौन बडा है यह प्रश्न किया| विष्णु जी ने भी ब्रह्मा जी की तरह बुरा न बनते हुए उत्तर न देकर उन्हें अपने साथ लेकर शिवजी जी के पास पहुँच कर उपरोक्त प्रश्न पुछा| शिवजी जी ने भी कोई उत्तर न देकर कहा कि चलो पृथ्वी पर चलकर इस प्रश्न का उत्तर मालूम करते हैं|

पांचो देवी देवता ने साधू का वेश धारण कर पृथ्वी पर उपरोक्त ब्राह्मण के घर पहुँच अलख जगाई और कहा कि हम रात्रि में भी आपके घर पर ही विश्राम करेंगे| इस पर ब्राह्मण पुत्र सोमदत्त ने अतिथि देवो भव:ऐसा विचार कर कहा महाराज मेरे घर में दक्षिणा में मिले दाल भात आदि से हम तीनों के भोजन की पूर्ति होती है| अत: मैं एक समय के भोजन की व्यवस्था कर सकता हूँ|

साधुओं ने उसे एक बर्तन देकर कहा कि वह दाल भात इस बर्तन में बनाओ तो हम सब का दोनों समय का भोजन बन जाया करेगा| इस प्रकार उस बर्तन में बने भोजन से दोनों समय के भोजन की पूर्ति हो गयी|

अगले दिन प्रात:में सोमदत्त जाने लगा तो एक साधू ने पूछा,तुम कहाँ जा रहे हो? उसने कहा, मैं राजा की लड़की को कथा सुनाने जा रहा हूँ| साधू ने कहा,तुम कथा सुनाने के बाद राजा की लड़की से पूछना कि तुम किस अभिलाषा की पूर्ति हेतु कथा सुनती हो?

सोमदत्त ने कथा सुनाने के बाद उपरोक्त प्रश्न पूछा? राजा की लड़की ने कहा, मैं इस अभिलाषा से कथा सुनती हूँ कि मुझे ऐसा वर मिले जिसकी चर्चा सभी की जबान पर हो, उसके माथे पर चाँद और सूरज की रोशनी हो तथा वह भाग्य का ऐसा धनी हो कि उसके क़दमों में लक्ष्मी थिरकती हुयी हो| तथा ऐसी बारात हो जैसी किसी ने अब तक न देखी हो|

वापस आकर उसने साधुओं को लड़की के उत्तर से अवगत करा दिया| अगले दिन प्रात:काल में जब वह कथा सुनाने के लिए जाने लगा तो साधुओं ने कहा कि बच्चा आज फिर वाही प्रश्न करना वह फिर तुम्हे कल वाली बातें बताये तो तुम तुरंत यह कह कर कि "जैसा पति तुम्हे चाहिए वैसा केवल मैं ही हूँ"यह कह कर भाग आना|

सोमदत्त ने कहा,हे साधू महाराज कहाँ एक मैं गरीब ब्राह्मण जिसका घर उसकी दी हुयी दक्षिणा पर पलता है और कहाँ वह एक राजा की पुत्री? राजा मुझे और मेरे परिवार को मृत्युदंड देकर मोत के घाट उतर देगा| अत; मैं ऐसा नहीं करूँगा|

साधूओं ने कहा कि ठीक है हम तुम्हे परिवार सहित अभी अपने श्राप से भस्म किये देते हैं| सोमदत्त पहले से ही उनके चमत्कार से डरा हुआ था उसने सोचा कि राजा तो बाद में म्रत्युदंड देगा यें अभी अपने श्राप से भस्म कर देंगे|अत:साधुओं को आश्वासन देकर कथा सुनाने चला गया|

कथा सुनाने के बाद सोमदत्त ने कहा कि कल वाले प्रश्न के अनुसार जैसा वर तुम्हे चाहिए वैसा वर मैं ही हूँ|ऐसा कहकर वह वहाँ से भाग आया| राजा की पुत्री को एक दम बहुत आघात पहुंचा| उसने दासी के द्वारा अपने पिता जी को बुला कर सब बात बताई| राजा ने आश्वासन दिया कि उस उदंड ब्राह्मण को इसकी सजा मिलेगी|

राजा ने तुरंत अपने मंत्रियों से विचार विमर्श किया| एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि उसने अपराध तो  फांसी दिए जाने वाला किया है|परन्तु वह एक ब्राह्मण है| उसे फांसी देने पर एक ब्रहमहत्या का पाप लगेगा| कुछ ऐसा किया जाए कि वह दण्डित भी हो और ब्रहमहत्या का पाप भी न लगे|

काफी विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि शादी का निमंत्रण पत्र कुछ शर्तों के साथ भिजवाया जाए| राजा ने शर्तों वाला निमंत्रण पत्र लिखवा कर हलकारे के हाथ सोमदत्त के पिता जी के पास भेज दिया|

उधर सोमदत्त ने घर पहुंच कर साधुओं को बताया कि आपके कहे अनुसार कहने पर राजकन्या बहुत क्रोधित हो गयी थी| अब शीघ्र ही फांसी का सन्देश पहुँचने वाला है| कुछ समय के बाद हलकारा निमंत्रण पत्र लेकर पहुँच गया| साधुओं ने हलकारे को सम्मान सहित बिठा कर सोमदत्त को निमंत्रण पत्र पढ़कर सुनाने के लिए कहा| पत्र इस प्रकार था|

हे ब्राह्मण पुत्र :-
                        हमें तुम्हारा शादी का प्रस्ताव मंजूर है| परन्तु साथ साथ हमारी कुछ शर्तें भी हैं| तुम्हारे द्वारा सभी शर्तें पूरी करने पर हम अपनी लड़की की शादी तुम्हारे साथ कर देंगे| शर्तें पूरी न होने पर तुम्हे परिवार सहित फांसी दे दी जायेगी| शर्तें इस प्रकार हैं|
१:-बारातियों के ठहरने वाले सभी बारातघर तथा बनाए गए सभी तम्बू भरे हुए होने चाहिए| कोई भी तम्बू खाली नहीं रहना चाहिए|
२:-बारातियों के आथित्य सत्कार में बनायी गयी सभी खाद्य सामग्री प्रयोग होनी चाहिए|
३:-ऐसी अद्भुत बारात आनी चाहिए जिसकी चर्चा हर व्यक्ति की जबान पर हो|
बारात आने पर यदि कोई भी शर्त अधूरी होगी तो बरात में आने वाले सभी बारातियों को भी फांसी दे दी जाएगी|

पत्र पढ़कर सोमदत्त डर से कांपने लगा| साधुओं ने कहा, तुम डरो नहीं| हलकारे को भोजन खिला कर पत्र का उत्तर देकर विदा करो और पत्र में लिखो कि आप शादी की तैयारी करैं  हम फला दिन बरात लेकर आ रहे हैं|

हलकारे को भोजन में दाल भात परोसा गया| हलकारे की थाली में वह छतीस प्रकार का भोजन बन गया| विदाई में साधुओं ने उसे मुठ्ठी भर धुनी की राख व् पत्र देकर विदा किया| बाहर आकर हलकारे ने देखा कि वह राख नहीं बल्कि हीरे मोती हैं| वह बहुत खुश हुआ|

राजा ने सकारात्मक उत्तर प्राप्त होने पर विचार किया कि वह गरीब ब्राह्मण किसके भरोसे ऐसा कर रहा है| क्या कोई दुश्मन राजा उसका साथ दे रहा है? यही सोचकर राजा ने शहर के तमाम बारातघर सजवा दिए और अनेकोनेक तम्बू लगवा दिए| राजा को विश्वास था कि अधिक आदमी न आने के कारण वह शर्त हार जाएगा|

सोमदत्त अपनी बारात में चलने के लिए जिसे भी कहता वही उसे यह कह कर मना कर देता कि तुम्हारा तो अंतिम समय आ गया है हम बारात में तुम्हारे साथ मरने के लिए क्यों जाएँ| ऐसी बातें सुनसुन कर वह बहुत परेशान था|

शादी वाले दिन सोमदत्त को परेशान देखकर साधुओं ने कहा, बच्चा आज तुम्हारी शादी है और तुम परेशान हो रहे हो| तैयार होकर हमारे साथ चलो| तुम किसी बात की चिंता मत करो हम तुम्हारे साथ हैं| सोमदत्त ने (भाग्य में जो लिखा है वही होगा) यही सोचकर तैयार होकर साधुओं के साथ चल दिया|

भगवान् शिवजी जी ने इस बारात में चलने के लिए सभी देवताओं को मनुष्य रूप में आमंत्रित किया हुआ था| तथा भुत प्रेत व् अपने सभी गणों को  भी शादी में बुला लिया| जिसके कारण सभी बारातघर व् लगवाये गए सभी तम्बू भर गए| इसके बाद भी कुछ बाराती बिना तम्बू के रह गए|

राजा के पास सूचना भिजवायी गयी कि बारातियों के ठहरने का और प्रबंध कराया जाये| सुचना मिलने पर राजा ने विचार किया कि कहाँ से इतने बाराती आ गए हैं चलकर देखना चाहिए| राजा तुरंत वहां पहुंचे| राजा को आया देखकर शिवजी जी ने शुक्र व शनि जी को बच्चे के रूप में बना कर भूख के कारण रुला दिया| राजा ने दो बच्चों को रोते देखकर पुछा कि यह बच्चे क्यों रो रहे हैं| साधू बने शिवजी जी ने कहा इन्हें भुख लगी है| राजा ने उन बच्चों को खाना खिलाने के लिए भेज दिया|

कुछ समय के बाद राजा के कर्मचारियों ने आकर बताया कि महाराज वें दोनों बच्चे तो सारा का सारा भोजन खा गए हैं और फिर भी भुख भुख चिल्ला रहे हैं| ऐसा सुनकर राजा बहुत परेशान हुए| उन्होंने अपना घमंड त्याग कर साधुओं के सामने नतमस्तक होकर कहा, महाराज अब मेरी लाज आपके हाथ में है| साधुओं ने कहा कि कोई बात नहीं सब कुछ ठीक हो जायेगा| तुम घर जाकर बारात की अगवानी की तैयारी करो|

राजा ने शहर को बहुत ही सुन्दर ढंग से सजवाया| जगह जगह  झालरों से पूरा शहर एक दुल्हन की तरह से सजाया गया| सोमदत्त भी शादी की पोशाक में एक राजकुमार की तरह बहुत सुन्दर दिखाई दे रहा था|

 शाम के समय उसे एक सुन्दर रथ में बिठाया गया| रथ के आगे अनेक प्रकार के बैंडबाजे, नफीरी वाले, ढोल नगाड़े वाले मधुर तान में झूमते हुए चल रहे थे| दुल्हे के मस्तक पर सेहरे को चाँद और सूरज से सजाया गया| बाराती हाथों में नोट (लक्ष्मी) लेकर एक दुसरे पर न्योछावर कर इधर उधर उड़ा रहे थे|

बारात के इस विहंगम द्रश्य को देख कर आपस में कहने लगे कि इस गरीब ब्राह्मण के भाग्य को तो देखो| इसके मस्तक के सेहरे में चाँद सूरज और चारों तरफ से इस प्रकार धन(लक्ष्मी) उड़ाया जा रहा है मानो किसी बहुत बड़े राजा की बारात निकल रही है| ऐसी बारात हमने अपने जीवन में कभी नहीं देखी और न आगे देखने की उम्मीद है|यह भाग्य का बहुत ही धनी है|

पब्लिक की इस प्रकार की बातों को सुनकर ब्रह्मा जी, विष्णु जी, तथा शिवजी जी ने भाग्य व् लक्ष्मी जी से कहा कि देखो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर पब्लिक दे रही है|

अत: मनुष्य को फल की इच्छा न करते हुए कर्म करते रहना चाहिए| मनुष्य को समय से पहले और भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता|










 

No comments:

Post a Comment