Saturday, December 21, 2013

म्रगत्रष्णा

मानव का मन बहुत ही चंचल होता है| मन की इस चंचलता के कारण ही मनुष्य को कभी कभी अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है| कभी कभी अपने आप को ठगा हुआ सा, और कभी कभी सांसारिक मोह माया के जाल में फंस कर मन की म्रगत्रष्णा के कारण अपने आप को लज्जित महसूस करता है |

उपरोक्त विषय में एक पोराणिक कथा का वर्णन करता हूँ| एक बार ऋषि नारद जी ने अपनी घोर तपस्या के बल से कामदेव पर विजय प्राप्त की| कामदेव पर विजय प्राप्त करने के बाद उन्हें घमंड हो गया| जहाँ भी जाते  वहीँ अपनी विजय का ही बखान करते नहीं थकते थे| इसी प्रसंग को नारद जी ने विष्णु जी के सामने भी खूब बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया|

नारद जी के मुख से घमंड भरी बातें सुनकर विष्णु जी ने मन में विचार किया कि एक ऋषि के अन्दर घमंड होना उचित नहीं है| इनका घमंड दूर होना चाहिए| ऐसा विचार कर उन्होंने अपनी योग माया से प्रथ्वी पर एक नगरी बसा कर वहां के राजा की लड़की के रूप में लक्ष्मी जी को भेज दिया|

नारद जी पृथ्वी लोक में  भ्रमण करते करते उसी राजा के दरबार में पहुंचे| राजा उन्हें बहुत ही आदर से अपने घर ले गए| राजा की लड़की विवाह योग्य हो गयी थी| राजा ने नारद जी को अपनी कन्या की जन्म पत्री दिखा कर उसके भविष्य के विषय में पूछा|

नारद जी ने जन्म पत्री देख कर बताया कि यह कन्या तो बहुत ही भाग्यशाली है, जिसके साथ इसकी शादी होगी वह तीनो लोकों का राजा होगा| सुन्दरता में भी इस कन्या के बराबर कोई नहीं है उन्होंने राजा को सलाह दी कि इस कन्या की शादी का स्वम्बर करके जिसके गले में वरमाला पहनाये उससे इसकी शादी करदो| राजा ने कहा ऐसा ही करूँगा|

नारद जी ने मन में विचार किया कि यदि इस कन्या से मेरी शादी हो जाए तो मैं तीनो लोकों का राजा बन जाऊंगा| नारद जी विष्णु जी के पास पहुंचे और उन्हें कन्या की सुन्दरता और भाग्य के विषय में बता कर कहा कि आप मुझे ऐसा सुन्दर रूप प्रदान करें कि वह कन्या मेरी सुन्दरता पर मोहित होकर मेरे गले में वरमाला डाल दे| विष्णु जी ने कहा कि तुम्हे दूसरा रूप दे दिया जाएगा|

राजा ने लड़की की शादी के लिए स्वम्बर करके राजाओं को आमंत्रित किया| वहां विष्णु जी व् नारद जी भी भेष बदल कर स्वम्बर में शामिल हो गए| नारद जी को देखकर उनके आस पास बैठे राजा आपस में खुसर पुसर करने लगे| नारद जी मन ही मन प्रसन्न थे कि ये राजा मेरी सुन्दरता पर ही विचार करके खुसर पुसर कर रहे हैं|

राजा की लड़की वर माला लेकर जब नारद जी के पास पहुंची तो वह उन्हें देखकर हंसती हुई आगे निकल कर जहाँ विष्णु जी भेष बदल कर बैठे थे वहां पहुँच कर उनके गले में वर माला डाल दी| नारद जी ने उस ओर देख कर अपने तपोबल के कारण विष्णु जी को पहचान लिया|

नारद जी क्रोधित होकर विष्णु जी के पास पहुंचे और कहा कि जब आपको ही शादी करनी थी तो मुझे इतना सुन्दर रूप ही क्यों दिया? नारद जी की बात सुनकर सभा में उपस्थित सभी राजा जोर जोर से हँसते हुए कहने लगे कि तुम अपना चेहरा आईने में जाकर देखो, आपका चेहरा एक बन्दर जैसा दिखाई दे रहा है|

ऐसा सुनकर नारद जी को अपना जीवन रात की कालिमा के अनुसार अंधकारमय प्रतीत हुआ उन्होंने अत्यंत क्रोधित होकर विष्णु जी को श्राप दिया कि तुमने जिस रूप को देकर आज मुझे उपहास का पात्र बनाया है एक दिन ऐसा आएगा कि तुम्हे बंदरों से ही सहायता लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा|

विष्णु जी ने कहा कि हे भक्त तुम्हारे वचन सत्य हों| और ऐसा ही हुआ|  रामायण में श्री राम रूपी विष्णु जी को वानरों की सहायता से ही रावण पर विजय प्राप्त हुई थी|

मेरा तो कहना है कि जब एक ऐसे महान तपस्वी ऋषि का मन चलायमान हो सकता है तो मानव की क्या गिनती है| कभी कभी मनुष्य अपने मन की म्रगत्रष्णा के कारण उपहास का पात्र बनकर समाज में लज्जित हो जाता है






 

No comments:

Post a Comment