Wednesday, December 18, 2013

दोस्त की नादानी|

एक गाँव में मोहन और सोहन नाम के दो दोस्त रहते थे| मोहन बहुत ही सीधे स्वभाव का व्यक्ति था| सोहन का स्वभाव चंचल था| कभी कभी सोहन की चंचलता के कारण वह उससे नाराज भी हो जाता था|

सर्दियों के दिन थे| एक दिन  मोहन ने सोहन से कहा कि आज मैंने तरबूज खाया है| उसकी बात सुनकर सोहन ने कहा कि सर्दियों में तरबूज कहाँ से आएगा तुम झूठ बोलकर मेरा बेवकूफ बना रहे हो|

मोहन ने उसे बताया कि शहर में सर्दियों में भी तरबूज मिलते हैं| कल किसी काम से शहर गया था वहां से ही तरबूज खरीद कर लाया था| तुम मेरे घर चलो मैं तुम्हे भी तरबूज खिलाऊंगा|

सोहन ने कहा कि मुझे तुम्हारी बात पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है| यदि तुम तरबूज न खिला पाए तो मुझे क्या  दोगे? मोहन ने कहा ऐसा कुछ नहीं होगा फिर भी तरबूज न खिलाने पर जो तुम कहोगे मैं तुम्हे दे दूंगा|

सोहन ने कहा शर्त हारने पर जिसे मैं मुठ्ठी से पकड़ लूँगा वह मेरी हो जायेगी| मोहन ने यह सोचकर कि तरबूज तो मैं इसे खिला ही दूंगा फिर मुझे शर्त मानने में क्या डर है अत: उसने सरल स्वभाव से उसकी शर्त मान ली| 

मोहन उसे अपने साथ लेकर घर आया| उसने अपनी पत्नी से तरबूज खिलने के लिए कहा| उसकी पत्नी ने कहा कि शेष बचे हुए तरबूज को तो बच्चों ने खा लिया है|  मैं कुछ ओर खिला देती हूँ|

इस पर सोहन ने कहा बात खाने खिलाने की नहीं है आप तरबूज का वह कच्चा भाग ही दिखा दो जो कूड़े में डाल दिया जाता है|मोहन की पत्नी ने कहा कि उस कूड़े को तो जमादार उठा कर ले गया| इस पर सोहन ने कहा चलो जमादार के पास चलते हैं|

दोनों मित्रों ने जमादार के पास जाकर तरबूज के कूड़े के बारे में पुछा तो जमादार ने कहा तरबूज के कूड़े को जानवर खा गए| ऐसा सुनकर सोहन ने कहा तुम शर्त हार चुके हो अत:शर्त के अनुसार वायदा पूरा करो| मोहन ने  कहा ठीक है भाई, हम शर्त हार गए तुम्हारी मुठ्ठी में जितना आये आप लेलें|

सोहन की नियत पहले से ही उसकी पत्नि पर थी| अत: उसने उसकी पत्नि की ओर बढ़ कर उसका हाथ मुठ्ठी में पकड़ना चाहा| सोहन की नियत को भांप कर मोहन व् उसकी पत्नि क्रोधित हो कर उसे डांटने लगे| सोहन ने  कहा यह तो शर्त की बात है, तुम चाहो तो किसी ओर से फैसला करा लो| मोहन ने कहा कि कल किसी ओर से ही इसका फैसला कराया जाएगा|

मोहन ने गाँव के सरपंच से मिलने का निर्णय किया| सरपंच जी के मोहल्ले में पहुँच कर उसने एक लड़के से सरपंच जी के मकान का पता पूछा| लड़के ने कहा पता बताने पर मुझे क्या मिलेगा| मोहन ने कहा तुम पता तो बताओ तुम्हे भी कुछ दे दूंगा|

लड़के ने कहा कि सामने वाला घर सरपंच जी का ही है| मोहन ने जेब से कुछ पैसे निकाल कर उसे देने चाहे तो उस लड़के ने कहा कि मुझे पैसे नहीं मुझे तो आपने कुछ देने का वायदा किया था अत: मुझे तोकुछ ही चाहिए| मोहन के समझाने पर भी बच्चा अपनी जिद पर अड़ कर झगड़ने लगा| बाहर बच्चे के शोर को सुनकर सरपंच जी ने घर से बाहर आकर झगड़े का कारण पूछा?

मोहन ने उन्हें अपने यहाँ आने और पता पूछने वाली बात बताई| सरपंच जी ने दोनों को अपनी बैठक में बिठा कर मकान के अन्दर चले गए| कुछ समय के बाद सरपंच जी दो गिलास दूध लेकर बैठक में वापस आये| एक गिलास मोहन को तथा दूसरा गिलास लड़के को देकर कहा कि आप लोग दूध पियो|

लड़के ने गिलास में देख कर कहा कि इसमें तो कुछ पड़ा हुआ है| सरपंच जी ने कहा कि तुम्हे कुछ चाहिए था इसमें से निकाल कर लेलो| इस पर बच्चा शर्मा कर भाग गया| तब उन्होंने मोहन से आने का कारण पूछा? मोहन ने शर्त वाली बात बता कर सोहन की बदनियती से अवगत कराया| सरपंच जी ने कहा कल सोहन को अपने घर बुला लो, मैं भी समय पर पहुँच जाऊंगा|

अगले दिन सरपंच जी ने मोहन के घर पहुँच कर उसकी पत्नि को कहा कि तुम आँगन में कड़ी सीडी से छत पर पहुँच कर मुडेर के पास खड़ी हो जाओ| इसके बाद सोहन को बुला कर शर्त के अनुसार मुठ्ठी भरने के लिए कहा| सोहन ने देखा कि मोहन की पत्नि छत पर खड़ी है,तो वह सीडी के पास पहुंचा| जैसे ही उसने ऊपर जाने के लिए सीडी का पहला डंडा हाथ से पकड़ा तो सरपंच जी ने कहा कि आपने शर्त के अनुसार अपनी मुठ्ठी में डंडा पकड़ लिया है अत: दूसरा डंडा पकड़ने पर वह डंडा आपके शरीर पर पड़ेगा| तुम सीडी का पहला डंडा उखड कर अपने साथ लेजा सकते हो|

सोहन को जैसे ही अपनी गलती का अहसास हुआ तो वह पश्चाताप करने लगा| सरपंच जी ने उसे समझाते हुए कहा कि तुमने अपने अच्छे और सच्चे मित्र के साथ विश्वासघात किया है| जिसके कारण तुम कभी भी सुखी नहीं रहोगे|

सच्चा और अच्छा मित्र निस्वार्थ भाव से एक दुसरे की सहायता करने के लिए तत्पर रहता है| सच्चा मित्र वही होता है जो मित्र पर आपत्ति आने पर तन,मन और धन से उसके ऊपर न्योछावर हो जाए| सच्चे मित्र की आपत्ति में ही परीक्षा होती है|

   

No comments:

Post a Comment