Friday, November 29, 2013

डावांडोल आस्था|

एक बार एक व्यक्ति हवाई जहाज से यात्रा कर रहा था| अचानक से घोषणा की गयी कि किसी तकनीकी  कारण से हवाई जहाज में कुछ खराबी आ गयी है| अत:सभी यात्री पैरासूट पहन कर नीचे कूद जाएँ|

उस व्यक्ति ने भी पैरासूट पहन कर नीचे छलांग लगा दी| वह पैरासूट के सहारे नीचे किसी समुद्री विरान टापू पर गिरा| उसने देखा कि वह बच गया तो उसने भगवान को धन्यवाद दिया|

कुछ समय बाद भुख, प्यास का अहसास हुआ तो उसने खाने पीने की तलाश शुरू की| समुद्री टापू पर तरह तरह  के पेड़ पौधे, झाड़ियाँ तथा घास थी| कोई फलदार वृक्ष नहीं था| तथा समुद्र के खारे पानी के अलावा पीने योग्य पानी नहीं था|

भुख, प्यास से परेशान उस व्यक्ति ने घास व् वृक्षों के पत्तें खाकर समुद्र का खारा पानी पीकर अपनी जान बचाई| वह व्यक्ति भगवान् को याद कर कहने लगा कि हे प्रभु मैंने जब से होश सम्भाला है तभी से तुम्हारी पूजा करता आया हूँ| फिर मुझे यह कष्ट क्यों प्राप्त हो रहा है|

उसने वहां से बाहर निकलने के लिए बहुत कोशिश की| कईं दिनों की भागदौड़ करने पर भी जब कोई सहायता नहीं मिली तो फिर से दुखी मन से भगवान् को दोष देते हुए कहने लगा कि मैंने अपने जीवन में किसी का बुरा नहीं किया फिर भी मैं अनेक कष्ट भोग रहा हूँ| मेरा आप से विश्वास समाप्त होता जा रहा है|

उसने देखा कि आकाश में घने काले बादल छा गए हैं| अत: बारिस से बचने के लिए पेड़ों से सुखी लकड़ी तोड़ कर एक झोपडी बनाकर उसे घासफुंस से ढक दिया|

काले काले बादलों की गडगडाहट से वह अकेला इस विरान टापू पर बहुत डर रहा था कि बादलों से बिजली भी कडकने लगी| अचानक से कडकती हुयी बिजली उसके द्वारा बनायी गयी झोपडी पर गिर पड़ी| ओर वह धू धू कर जलने लगी|

इस द्रश्य को देख कर वह व्यक्ति बदहवास होकर जोर जोर से बोलते हुए अनेक प्रकार के अपशब्दों के साथ भगवान् को कोसने लगा कि संसार में तेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है| इस प्रकार भगवान् से उसकी आस्था डावांडोल होने लगी|

कुछ समय बाद उसे किसी व्यक्ति की आवाज सुनाई दी| आवाज सुन वह उस दिशा में दौड़ता हुआ गया| वहां उसे कुछ आदमी दिखाई दिए| उन आदमियों ने उसे कहा कि हम नाव के द्वारा इधर से जा रहे थे कि अचानक यहाँ लगी आग और तुम्हारे जोर जोर से बोलने की आवाज सुन कर ही यहाँ पहुंचे हैं|

अचानक मिली सहायता से वह खुश भी हुआ और आत्मग्लानि से भी भर गया| वह सोचने लगा कि जिस आग को देखकर मैं भगवान् को दोष दे रहा था उसी आग के कारण ही मुझे इस दारुण दुःख से छुटकारा मिला|

मानव स्वभाव है कि वह आपत्ति आने पर परेशान हो कर भगवान को दोष देने  लगता है जबकि गीता में कहा गया है कि जो हुआ वह ठीक हुआ, जो हो रहा है वह ठीक हो रहा है और जो होगा वह भी ठीक ही होगा| अत: हमें भगवान् पर भरोसा करके पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कार्य करते रहना चाहिए|

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