Thursday, November 14, 2013

मानव,दानव|

रामायण में जब किसी राक्षस का वर्णन आता है तो हम कल्पना करते हैं कि राक्षसों के दो सींग,बड़े बड़े दांत व् लम्बे,लम्बे नाख़ून होते थे| और वह मानव जाति को तरह तरह से सता कर उनका खून पीते थे| परन्तु ऐसा कुछ नहीं है|

आदमी के ही दो रूप होते हैं| सात्विक और सद्विचारों के साथ जीवन बिताने वाले को मानव,और राक्षसी विचारधारा के साथ मांस व् शराब आदि तामसी भोजन का प्रयोग करने वाले को राक्षस कहते हैं| बच्चा जब पैदा होता है तब उसका स्वभाव सोम्य और निर्मल होता है| उसका मन कुम्हार की मिटटी के समान होता है| जिस प्रकार कुम्हार मिटटी को ढाल, ढाल कर सुन्दर सुन्दर बर्तन बनाता है उसी प्रकार बच्चे के कोमल मन पर परिवार के संस्कारों व् विचारों का जैसा जैसा प्रभाव पड़ता है उसी दिशा में उसका विकास होने लगता है


आज हमारे समाज में मनुष्य अनेक प्रकार की प्रति स्पर्धा के बीच जीवन व्यतीत करता है| अपने से अधिक सामर्थ्यवान व्यक्ति के पास अपने से अधिक वस्तुएं देख कर उसका मन कुंठा से भर जाता है| उसके समान जीने की प्रति स्पर्धा के कारण वह गलत तरीके से धनोपार्जन करने हेतु गलत काम करने लगता है तब उसका स्वभाव बदलने के कारण वह मानव से दानव बन जाता है|

पाप की दुनिया चकाचोंद भरी होती है| मनुष्य एक बार गलत काम करके इसकी दलदल में फंसता चला जाता है| इससे बचने के लिए हमें अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है| हमें अपनी मुलभुत आवश्यकताओं की पूर्ति अच्छे मार्ग पर चलते हुए करनी चाहिए| कबीर दास जी ने कहा है कि:-

                                सांई इतना दीजिये जामे कुटुम्ब समाय|
                               मैं भी भूखा न रहूँ साधू भी भूखा न जाए||

अच्छे संस्कारों के मिलने से दानव भी मानव बन सकता है| जैसे बाल्मीकि ऋषि अपने परिवार के पालन हेतु लूट खसोट का कार्य करते थे| एक बार उन्होंने रास्ते में जा रहे साधुओं को रोक कर लूटने का प्रयत्न किया| साधुओं ने कहा हम अपना सब कुछ तुम्हे स्वयं ही दे देंगे| परन्तु तुम हमारे एक प्रश्न का उत्तर दो कि तुम यह गलत कार्य किसके लिए करते हो?

बाल्मीकि जी ने कहा कि मैं यह गलत कार्य अपने परिवार के पालन हेतु करता हूँ| साधुओं ने कहा कि तुम अपने परिवार वालों से यह पूछ कर बताओ कि मेरे द्वारा गलत रास्ते से कमाए गए धन के पाप कर्म में भी आप बराबर के हिस्सेदार बनोगे?

बाल्मीकि जी ने कहा बहुत खूब मैं परिवार वालों से पूछने जाऊं और तुम रफूचक्कर हो जाओ| साधुओं ने कहा तुम हमें पेड़ से बांध कर चले जाओ| साधुओं की बात मान उन्हें पेड़ से बांध कर वह अपनी पत्नी से पूछने के लिए घर आया|

बाल्मीकि जी ने पत्नी से वही प्रश्न किया तो पत्नी ने उत्तर दिया कि तुम्हारे द्वारा किये गए किसी भी अच्छे या बुरे कार्य में हम कैसे हिस्सेदार हो सकते हैं| पत्नी की बातें सुन कर उनका मन अपने आप से घर्णा करने लगा| उन्होंने तुरंत वापस आकर साधुओं को खोल दिया,और तपस्या करने के लिए बनों में चले गए| तपस्या करके बाल्मीकि जी दानव से मानव बनकर बहुत बड़े ऋषि बने|

समाज में कुछ ऐसी भी घटनाएँ घटित होती हैं कि शक्तिशाली व्यक्ति के द्वारा अपने से कमजोर व्यक्ति को आवश्यकता से अधिक सताए जाने पर भी वह मजबूरीवश उससे बदला लेने के लिए बहुत बडा बदमाश(दानव) बन जाता है|

अत:जो व्यक्ति सत्य मार्ग पर चलते हुए समाज द्वारा बनाये गए नियमों का पालन करते हुए अपने परिवार का पालन करता है सही मायने में वही सच्चा मानव कहलाने का अधिकारी है|

 

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