Monday, November 11, 2013

नफ़रत की बदबू|

एक छोटी कक्षा में पढने वाले बच्चे आपस में लड़ झगड़ कर एक दुसरे की शिकायत गुरु जी से किया करते थे| गुरु जी के समझाने के बाद भी उनमे झगडे होते ही रहते थे|

एक दिन गुरु जी ने विचार किया कि इनको खेल के माध्यम से नफरत के विषय में शिक्षा देनी चाहिए| अत: उन्होंने एक प्लास्टिक का एक एक छोटा थैला सभी बच्चों को देकर कहा कि मैं तुम्हारे साथ एक खेल खेलना चाहता हूँ|

गुरु जी ने कहा कि प्रत्येक छात्र अपने घर से स्केच पेन के द्वारा अलग अलग आलूओं पर उन बच्चों के नाम लिख कर लायेगा जिन जिनके साथ झगडा होता है| अगले दिन प्रत्येक छात्र से उन्होंने पूछा कि बताओ आपके थैले में कितने कितने आलू हैं?

किसी छात्र ने कहा कि मेरे थैले में दो आलू हैं, किसी ने तीन तो किसी ने पांच आलू बताये| कुछ बच्चों ने कहा कि हमारे थैले में एक भी आलू नहीं है| क्योंकि हमारा किसी से झगडा नहीं होता है|

गुरु जी ने कहा हमारे खेल के अनुसार आपको एक सप्ताह तक सोते जागते यह थैला हर समय अपने पास रखना होगा|

एक सप्ताह बाद गुरु जी ने बच्चों से थैले के आलूओं के विषय में पूछा| तो सभी बच्चों ने कहा कि थैले के सभी आलू सड़ गए हैं| उनमे से बदबू आरही है|

तब गुरु जी ने बच्चों को समझाया कि जिस प्रकार आलू एक साथ रहकर भी बिना शुद्ध हवा के सड़ गए उसी प्रकार हमारे अन्दर से भी प्यार रूपी हवा से दूर रहने पर नफरत रूपी बदबू आने लगेती है| इसलिए हमें आपस के झगडे रूपी नफरत की बदबू से दूर रहकर प्यार रूपी हवा में मिलजुल कर रहना चाहिए|  

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