मनुष्य अपने आत्मबल के माध्यम से कोई भी कठिन से कठिन कार्य कर लेता है। कोई भी कार्य असंभव नही है। इस विषय मे मैं अपने जीवन की सच्ची घटना का वर्णन करता हूँ। मुझे बचपन से ही धुर्मपान की आदत पड़ गयी थी। मैं एक दिन मे लगभग तीन ,चार पैकिट सिगरेट पी लेता था जबकि घर या कार्यालय मे सिगरेट जेब मे नही रखता था। रात्रि मे भी नींद खुलने पर सिगरेट पीने के बाद ही नींद आती थी। मेरी इस आदत से मेरे परिवार वाले भी दुखी रहते थे। 12 मार्च 1999 को कार्यालय जाते समय अपने बेटे से सिगरेट खरीद कर लाने को कह कर मैं कार्यालय चला गया।
कार्य मे व्यस्त रहने के कारण देर से घर आया तो अचानक आंधी व तूफान के साथ तेज बारिश शुरू हो गयी। मैंनेदेखा घर पर सिगरेट नही है तो बेटे से पूछा ?उसने कहा कि सिगरेट लाना तो मेरे याद नही रहा। मुझे बहुत तेज गुस्सा आया और कहा कि जाओ अभी जाकर सिगरेट लाओ। उसी समय छोटी बिटिया हाथ जोड़ कर कहने लगी कि पापा आज की माफ़ी देदो इस तूफान और बारिस मे भैया कैसे बाज़ार जायेगा। उसको हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने पर मेरा मन आत्मग्लानि से भर गया और सोचने लगा कि ऐब मैं करूँ और माफ़ी कोई और मांगे। मैंने निश्चय करके बेटी से कहा कि ठीक है बेटी आज के बाद मैं सिगरेट नही पिऊंगा। इस घटना के बाद मैंने बचपन से शुरू किया गया ऐब अपने आत्मबल के कारण सहज मे ही छोड़ दिया।
कार्य मे व्यस्त रहने के कारण देर से घर आया तो अचानक आंधी व तूफान के साथ तेज बारिश शुरू हो गयी। मैंनेदेखा घर पर सिगरेट नही है तो बेटे से पूछा ?उसने कहा कि सिगरेट लाना तो मेरे याद नही रहा। मुझे बहुत तेज गुस्सा आया और कहा कि जाओ अभी जाकर सिगरेट लाओ। उसी समय छोटी बिटिया हाथ जोड़ कर कहने लगी कि पापा आज की माफ़ी देदो इस तूफान और बारिस मे भैया कैसे बाज़ार जायेगा। उसको हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने पर मेरा मन आत्मग्लानि से भर गया और सोचने लगा कि ऐब मैं करूँ और माफ़ी कोई और मांगे। मैंने निश्चय करके बेटी से कहा कि ठीक है बेटी आज के बाद मैं सिगरेट नही पिऊंगा। इस घटना के बाद मैंने बचपन से शुरू किया गया ऐब अपने आत्मबल के कारण सहज मे ही छोड़ दिया।
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