Thursday, October 3, 2013

विश्वास,अन्धविश्वास

हम अपने जीवन में अनेक प्रकार की अवधारणाओं के साथ जीवन व्यतीत करते हैं| हम किसी भी कार्य मे कामयाब होने के लिए अनेक प्रकार की मन्नतें मांगते हैं कि अमुक कार्य पूरा होने परभगवान के मंदिर मे प्रसाद,चदर,दान आदि करूँगा.कार्य पूर्ण होने पर ऐसा करते भी हैं| परन्तु हमने कभी यह विचार नहीं किया कि  ऐसा क्यों होताहै इसविषय मे मेराविचारहै कि मन्नत मांगने के बाद हमारा आत्मविश्वास बढ़ जाता है और सोचा हुआ कार्य पुरे विश्वास से परिश्रम करने पर पूर्ण हो जाता है |प्राय देखने मे आता है कि हम अपने व्यापर मे भगवान को पार्टनर मान कर( जैसे क्रिष्णा ज्वेलर्स ,दुर्गा औतोपार्ट  ,साईं जनरल स्टोर ,शिवा मेडिकल स्टोर आदि )व्यापर करते है हम भगवान को पार्टनर मानते हुए पूर्ण परिश्रम करते है और लाभान्वित होते है परन्तु ऐसा भी देखने मे आता है कि भगवान को पार्टनर बनाने पर भी व्यापर मे हानि हो जाती है हम यह सोच कर कि भगवान हमारे पार्टनर है लाभ तो होगा ही परिश्रम नहीं करते और नुकसान होने पर भगवान  को दोष देते हैं|
       भगवान ,अल्लाह,वाहे गुरु ,गोद हमारे अन्दर ही हैं| कहते हैं कि आत्मा दो परमात्मा | मंदिर ,मस्जिद ,चर्च गुरुद्वारा वें पवित्र स्थान हैं जहाँ कुछ समय व्यतीत करने पर हम अपने मन की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं |मंदिर मे दिए गए दान से मंदिर में होने वाले खर्चों जैसे प्रसाद ,बिजली व् पानी का बिल ,सफाई ,साज सज्जा तथा पुजारी का वेतन आदि की पूर्ति होती है| भगवान ही तो हमें सबकुछ देते हैं यदि हम किसी धार्मिक कार्य मे दान करते हैं या किसी की सहायता करते हैं तो हमें घमंड नहीं करना चाहिए |    

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