Wednesday, October 23, 2013

सच्ची भक्ति|

हमारे देश में श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शिव् रात्रि का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है| भक्तगण लाखों की संख्या में भगवे वस्त्र पहन कर कुछ दिन पहले से ही गौमुख, हरिद्वार आदि स्थानों से कावड में गंगाजल भर कर लाते हैं| तथा अलग अलग स्थानों पर पैदल चल कर पहुँचते हैं|

जब कावडिये झुंडों के रूप में सड़क मार्ग से जयकारे लगाते हुए भगवे वस्त्र पहने हुए चलते हैं तो बहुत ही विहंगम द्रश्य दिखाई देता है|

एक बार माता पार्वती जी ने ऐसे द्रश्य को देख कर शिवजी जी से कहा कि देखो महाराज आपके भक्त कितने कष्ट उठाते हुए पैदल चल कर आपको प्रसन्न करने के लिए श्रद्धाभाव से जल चढाते हैं फिर भी आप चन्द भक्तों का ही क्यों कल्याण करते हो?

शिवजी जी ने कहा, हे देवी पार्वती ये सभी मेरे सच्चे भक्त नही हैं| आप इनका तरह तरह का नशा करने के बाद वार्तालाप तो सुनिए| जो व्यक्ति मुझे सच्चे मन से याद करते हैं मैं उनका कल्याण अवश्य करता हूँ|

पार्वती जी उनके इस उत्तर से संतुस्ट नहीं हुयी| तो शिव जी ने कहा कि ठीक है हम इनके बीच भेष बदल कर चलते हैं तब आपको स्वयं ही मालूम हो जायेगा|

उन्होंने स्वयं एक अपाहिज रुग्ण बूढ़े व्यक्ति का रूप धारण कर पार्वती जी से कहा कि तुम एक सुन्दर नवयुवती का रूप धारण कर मुझे अपने कन्धों पर बैठा कर इनके बीच चलो|

पार्वती जी एक सुन्दर नारी का रूप धारण कर शिवजी जी को अपने कन्धों पर बिठा कर कावड़ियों के बीच मार्ग में चलना शुरू किया तो कुछ कावड़ियों ने इन्हें देख कर तरह तरह की फब्तियां कसनी शुरू कर दी| कोई कहता कि तुम इतनी सुन्दर और जवान होकर इस बूढ़े खूसट के साथ अपना जीवन क्यों नष्ट कर रही हो, इसे छोड़ कर हमारे साथ चलो, और जीवन का आनंद लो, कोई कहता कि अरे बूढ़े तूने इस स्त्री का जीवन बर्बाद कर दिया है मर क्यों नहीं जाता| इसी प्रकार कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता|

ऐसी फब्तियों को सुन कर शिवजी जी ने पार्वती जी से कहा कि देखो मेरे कैसे कैसे भक्त हैं| उसी समय अचानक एक जवान कावड़िया कंधे पर कावड लिए उनके पास पहुंचा और कहने लगा कि बहन आप इन्हें कहाँ ले कर जा रही हो?

पार्वती जी ने कहा कि हे भाई मुझे एक साधू ने कहा है कि श्रावण मास की चतुर्दशी को अमुक स्थान पर शिवजी जी के मंदिर इनके हाथों से जल चढवा दोगी तो ये ठीक हो जायेंगे इसलिए मैं इनसे मंदिर में गंगाजल चढ़वाना चाहती हूँ| वह व्यक्ति कहने लगा बहन मैं आपकी मदद करना चाहता हूँ आप इन्हें मेरे कंधे पर बिठा दें तो मैं इन्हें मंदिर तक पहुंचा दूंगा|

पार्वती जी ने कहा कि भैया तुन्हारे कंधे पर तो पहले से ही कावड है आप इन्हें कंधे पर कैसे बिठाओगे? तब उसने कहा कि हे बहन मेरे से अधिक आपके पति के द्वारा शिवजी जी पर जल चढ़ाना अति आवश्यक है| मेरा क्या है मैं तो अपनी कावड अगले वर्ष भी चढ़ा लूँगा| यह कोई कुम्भ का मेला तो है नहीं जो बारह साल के बाद आएगा|

ऐसा कहकर उसने आग्रहपूर्वक कहा कि एक भाई के होते बहन कष्ट में हो तो भाई का कावड चढाने का कोई महत्व नहीं है|

उसकी ऐसी आग्रहपूर्वक और भावनाओं से भरी वाणी को सुनकर शिवजी जी ने पार्वती जी से कहा कि देखो पार्वती इस विशाल भीड़ में मेरा यह भी एक भक्त है| ऐसा कहकर शिवजी महाराज ने पार्वती जी के साथ उसे दर्शन देकर क्रतार्थ किया|

अलग अलग धर्म के साधू, संत, फ़कीर व् मुल्ला मोलवी भी हमें यही शिक्षा देते हैं कि मानव जीवन प्राप्त होने पर यदि मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब व् बीमार व्यक्तियों की सहायता करे और सत्य मार्ग पर चलते हुए जीवन व्यतीत करे तो यही भगवान की सच्ची भक्ति है|


 

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