Monday, May 5, 2014

नारी व्यथा |

मजबूरियों  का  जाल है  नारी   की  जिन्दगी,
दहेज़ की आग में जलती है औरत की जिन्दगी||

  मां, बाप, भाई, और  पति  की  दर्ष्टि   में,
 एक बब्धन का नाम है नारी की जिन्दगी||

गाँव, शहर  और  नगर  की  हर  गली  गली  में,
कदम कदम पर रौंदी जाती है नारी की जिन्दगी||

दुनिया को  जिसने खुशियाँ  बांटी  उम्रभर,
काँटों से  भरी  सेज  है नारी  की  जिन्दगी ||

चुनरी  की  जगह  इसको  कफ़न तो न दीजिये,
कहे पा का कि खुशियों से भर दो नारी की जिन्दगी||
 

No comments:

Post a Comment