Monday, May 19, 2014

"भ्रूणहत्या"

आज हमारा देश "भ्रूणहत्या" नामक अभिशाप से पूर्ण रूप से ग्रसित है| इसको एक सामाजिक बिमारी का नाम दिया जाए तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी|

इस बिमारी को बढ़ावा देने में सबसे बडा हाथ दहेज़ प्रथा का है| जब किसी भी परिवार में कन्या का जन्म होता है तो पूरा परिवार ख़ुशी मनाने के स्थान पर दुखी सा नजर आता है| जबकि लड़के के जन्म होने पर ढोल नगाड़ों से उसका स्वागत किया जाता है|

किसी भी परिवार में जन्मी कन्या जब धीरे धीरे जवान होने लगती है तो उस कन्या के मां बाप की धड़कनें तेज होने लगती हैं| जहां भी लड़की का पिता लड़की के लिए वर खोजने के लिए जाता है तो उसे दहेज़ रूपी राक्षक का सामना करना पड़ता है|

ज्यों त्यों करके जब कन्या की शादी हो जाती है तो वर पक्ष की दहेज़ के प्रति संतुस्ठी न होने के कारण उसकी सजा कन्या के साथ साथ उसके पिता जी को भी भुगतनी पड़ती है| वह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि जिस अपनी लाड चाव से पाली लड़की की शादी में उसने अपनी वर्षों से संचित सम्पत्ति का स्वाहा किया था आज वही लड़की दुखी है| तो उसकी आत्मा चीत्कार कर उठती है|

इस प्रकार की घटनाओं को देख कर यह "भ्रूणहत्या" नामक बिमारी समाज में फैलने लगती है| ख़ास तौर पर इस बिमारी से हिन्दू समाज सबसे अधिक ग्रसित है| हिन्दू समाज में भी सबसे अधिक वैश्य समाज के उच्च श्रेणी का परिवार अपने यहाँ पुत्री को जन्म नहीं देना चाहता है| और वह सरकार के द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भी अपने धन के बल पर यह जानने में सफल हो जाता है कि गर्भ में कन्या है जिससे वह भ्रूणहत्या करा देता है|

इस बिमारी के कारण आज भारत में लड़कों के मुकाबले में लड़कियों की संख्या समय समय पर कम होती जा रही है| जिसका खामियाजा भी अधिकतर उच्च श्रेणी के परिवारों को ही भुगतना पड़ता है| जब पुत्र कीआयु ३० के आंकड़े को पार करने लगती है तो वह मध्यम श्रेणी के परिवार की कन्या खोजनी शुरू कर देता है| परन्तु मध्यम श्रेणी का व्यक्ति भी उच्च श्रेणी में श्रेणी के अंतर के कारण अपनी कन्या की शादी नहीं करता है|

आज यह स्थिति है कि उच्च श्रेणी के परिवार अपने लडके की शादी के लिए निम्न श्रेणी के परिवारों की कन्या से बिना दहेज़ के शादी करने के लिए तैयार हो जाते है|

वैसे तो इस बिमारी से हमारा पूरा समाज ही परेशान है| आज की इस असुरक्षा के माहौल में इज्जत के साथ लड़की का पालन पोषण करना  कठिन दिखाई देता है| इस दिशा में भी हमारे देश की सरकार को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है|

अन्त में मैं अपने देशवासियों से निवेदन करना चाहता हूँ कि हमें इस गंभीर विषय पर अपने देश, समाज और अपने वंश के लिए गंभीरता से विचार करने होगा| वर्ना एक दिन ऐसा आएगा कि समाज में असंतुलन की स्थिति पैदा हो जायेगी और हमारे परिवारों के लड़कों की शादी में परेशानियों का सामना करना पड़ेगा|
                                                                                                                            (प्रमोद कुमार गुप्ता)

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