Thursday, July 3, 2014

आस्था और विश्वास|

 शंकराचार्य श्री स्वरूपानन्द जी महाराज आज कल श्री सांई राम जी के संदर्भ में अपनी गलत बयानबाजी के कारण विवादों के घेरे में फंसते जा रहे हैं| जबकि इतने महान व्यक्ति को इस प्रकार की बयानबाजी न करके समाज को जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए|

हमारे देश में अनेक धर्मों को मानने वाले व्यक्ति निवास करते हैं| सभी हिन्दू, मुस्लिम, सिख और इसाई अपने धर्म के अनुसार अपने अपने पीर पैगम्बरों की पूजा अर्चना करते है| हमारा हिन्दू समाज तो अनेकोंनेक देवी देवताओं की अपनी आस्था और विश्वास के साथ पूजा करते हैं|

हमारे देश में हिन्दू समाज ही नहीं बल्कि दूसरे  धर्म वाले भी व्यक्ति पूजा में विश्वास करते हैं| यदि कोई भी व्यक्ति नि:स्वार्थ  भाव से  समाज को सुधारने के साथ साथ  समाज में फैली कुरीतियों को दूर करते करते अपने प्राणों कीआहुति दे देता है तो लोग स्वत: ही उसके आदर्शों को मानते हुए देवता के सामान उसकी पूजा करने लगते है|

श्री शंकराचार्य जी महाराज कहते हैं कि श्री सांई राम जी के अनुसार सबका मालिक एक है सबका मालिक एक| इस पर शंकराचार्य जी का कहना है कि जिसका मालिक कोई और है आखिर उसकी पूजा क्यों की जाए|

उपरोक्त विषय में हमारे देश के सभी धर्मों के धर्माचार्य कहते हैं कि पूजा पाठ करने के रास्ते अनेक हैं परन्तु सबकी मंजिल एक है| अर्थात वह अद्धभुत, अतुलनीय,स्मरणीय और  चमत्कारिक शक्ति एक ही है जो इस समस्त चराचर को संचालित कर रही है वह शक्ति अजन्मा और निराकार है| फिर भी लोग अनेकोंनेक देवी देवताओं की पूजा अपनी आस्था और विश्वास के साथ करते हैं|

हमारे देशवासी बहुत ही आशावादी और एकदूसरे का अनुशरण करने वाले हैं| इसी संदर्भ में संस्क्रत की एक कहानी "गतानुगति लोके:" का वर्णन करता हूँ जो इस प्रकार है|

हमारे देश में हिन्दू समाज में हर गाँव गाँव और शहरों में आसाढ़ माह में शीतला माता का गाँव या शहर से बाहर बने स्थान पर माँ बहनें अपने बच्चों के साथ  खील पतासे, मिट्ठे पूड़े और  कई प्रकार की दालों को एक साथ मिलाकर जल के लौटे से माता को स्नान कराकर पूजन करती हैं|

एक बार ऐसा हुआ कि एक बहन अपने बच्चे के साथ उपरोक्त सामान लेकर गाँव से बाहर माता का पूजन करने के लिए जा रही थी| रास्ते में उसे बहुत जोर से पेशाब जाने की इच्छा हुई तब उसने एक एकांत स्थान देख कर जल के लौटे के साथ पूजन की समस्त सामग्री अपने बच्चे को पकड़ा कर पेशाब करने के लिए चली गयी| वापस आकर उसने बच्चे से कहा कि लौटे के जल से मेरे हाथ धुलादे| बच्चे ने जैसे ही लोटे से पानी हाथों पर डाला तो उसका दूसरा हाथ डौल गया जिससे पूजा का कुछ सामान जैसे पूड़े, दाल व् खील पतासे वहां पर गिर गए|

उस स्थान से गुजरने वाली अन्य बहनों ने देखा कि यहाँ पर भी किसी ने पूजन किया है हो सकता है सबसे पहले इसी स्थान पर पूजन किया जाता हो अत: मुझे भी यहाँ पूजन करना चाहिए| इसी धटना से उस स्थान को भी पूजा जाने लगा|

इस घटना  का सम्बन्ध केवल आस्था और विश्वास से जुड़ा हुआ है वैसे भी देहात की एक कहावत है की मानते का ही देव है| अर्थात सच्चे मन से किसी भी देवी देवता की आराधना करने से मानव इस भवसागर से पार हो जाता है| 

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