Thursday, November 20, 2014

धर्माचार्य और फरेब के बीच निर्दोष आस्था|

हमारा देश भिन्न भिन्न धर्मों को मानने वाला देश है| इस देश के निवासी धर्म के नाम पर निर्दोष आस्था के वशीभूत अपने तन, मन और धन को न्यौछावर कर देते हैं| अपनी मेहनत की कमाई को धर्म के नाम पर अपनी आँखे मुंद कर दोनों हाथों से लुटा देते हैं| मानव की इस प्रकार की सच्ची और निर्दोष आस्था के कारण रामपाल जैसे धर्म के ठेकेदार नाजायज फायदा उठा कर अपनी सल्तनत खड़ी कर लेते हैं| 
रामपाल ने एक साधारण से व्यक्तित्व से ऊपर उठ कर एक ढोंगी और फरेबी संत होने का नाटक करके भोली भाली जनता को दोनों हाथों से लुटा और जनता धर्म के नाम पर लुटती रही| एक रामपाल ही क्या न जाने हमारे देश में इस प्रकार के पाखंडी और फरेबी कितने ऐसे आदमी हैं जो धर्म के नाम पर लुटते रहते हैं|
धर्म किसे कहते हैं बस यही जानने की आवश्यकता है| सच्चे मन से दूसरों की सहायता करना, अपने आचरण से किसी को कष्ट न पहुंचाना झूठ और फरेब से बचना यही सही मायने में धर्म है| सच्चे मन से अपने परिवार का पालन करना भी धर्म है|
आज के इस धोखे और फरेब की दुनिया में इस प्रकार के ढोंगी और पाखंडी संतों का बहिष्कार करके अपने आप को बचाए रखने की आवश्यकता है| हमें धर्म के नाम पर किसी से डरने की जरुरत नहीं है| धर्म किसी को डराता नहीं है| जबकि इस प्रकार के धर्म के ठेकेदार धर्म का डर दिखा कर भोले भाले व्यक्तियों को अपने चंगुल में फंसा लेते हैं

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