पाप और पुण्य क्या है? पाप, पुण्य की कोई परिभाषा नहीं है। पाप करते पुण्य हो जाया करता है पुण्य करते पाप। जिसे मैं पुण्य सोचता हूँ हो सकता है वह दूसरों के लिये पाप हो और जिसे पाप समझता हूँ वह पुन्य हो।
आक्हे के पेड़ का दूध यदि किसी की आंख मे लग जाये तो उसकी ख़राब हो जाती हैं और आक्हे के पेड़ के फूल से पेट की बीमारी की दवाई बनायी जाती है।
डाक्टर एक ही बीमारी मे दो मरीजों को एक ही दवाई देता है जिससे एक मरीज तो ठीक हो जाता है परन्तु दूसरे मरीज को वही दवाई नुकसान देकर दूसरी बिमारी को भी जन्म दे देती है तो क्या डाक्टर ने पहले मरीज के साथ पुन्य तथा दुसरे के साथ पाप किया।
पुराने समय मे एक राजा बहुत ही धर्मपरायण था। वह प्रतिदिन दान,हवन पूजन करते हुए अपनी प्रजा के प्रति पूर्ण समर्पित रहते हुए राज्य करता था। मृत्यु के बाद उसे यमलोक लेजाया गया। वहां उसका पाप पुण्य का लेखा जोखा देखकर बताया गया कि इस व्यक्ति ने कोई पाप नहीं किया परन्तु देवताओं के हिस्से का भोजन खाया है राजा बड़ा अचम्भित हुआ और कहा कि मैं प्रतिदिन हवन पूजन करके गरीबों को भोजन खिला कर ही खुद भोजन खाया करता था कृपया बतायें मैंने कैसे देवताओं के हिस्से का भोजन खाया है?ऐसा कहते हैं कि हवन मे प्रयोग होने वाली सामग्री देवताओं का भोजन होता है और अग्नि देवताओं का मुख। जिस देवता के निमित हवन किया जाता है उसका आवाहन करते हुए आहुति दी जाती है। राजा को बताया गया कि आपने सामग्री को मुट्ठी मे लेकर आहुति दी जिससे सामग्री आपके नाखूनों मे भर गई। वह सामग्री भोजन करते समय दाल सब्जी के माध्यम से आपके शरीर मे चली गयी,केवल यही पाप आपने किय। जिसके लिये आपको फिरसे मृत्यु लोक मे जाना होगा।
विचार करें कि क्या उस राजा ने जानबूझ कर उस सामग्री का भक्षण किया जिसकी उसे सजा मिली। इसीलिए हमें अपने विवेक से कार्य करना चाहिए।और यदि किसी कार्य को करने से हमारी आत्मा को शान्ति मिले वही पुन्य है।यदि किसी कार्य को करने के बाद पश्चाताप हो वह पाप है।
आक्हे के पेड़ का दूध यदि किसी की आंख मे लग जाये तो उसकी ख़राब हो जाती हैं और आक्हे के पेड़ के फूल से पेट की बीमारी की दवाई बनायी जाती है।
डाक्टर एक ही बीमारी मे दो मरीजों को एक ही दवाई देता है जिससे एक मरीज तो ठीक हो जाता है परन्तु दूसरे मरीज को वही दवाई नुकसान देकर दूसरी बिमारी को भी जन्म दे देती है तो क्या डाक्टर ने पहले मरीज के साथ पुन्य तथा दुसरे के साथ पाप किया।
पुराने समय मे एक राजा बहुत ही धर्मपरायण था। वह प्रतिदिन दान,हवन पूजन करते हुए अपनी प्रजा के प्रति पूर्ण समर्पित रहते हुए राज्य करता था। मृत्यु के बाद उसे यमलोक लेजाया गया। वहां उसका पाप पुण्य का लेखा जोखा देखकर बताया गया कि इस व्यक्ति ने कोई पाप नहीं किया परन्तु देवताओं के हिस्से का भोजन खाया है राजा बड़ा अचम्भित हुआ और कहा कि मैं प्रतिदिन हवन पूजन करके गरीबों को भोजन खिला कर ही खुद भोजन खाया करता था कृपया बतायें मैंने कैसे देवताओं के हिस्से का भोजन खाया है?ऐसा कहते हैं कि हवन मे प्रयोग होने वाली सामग्री देवताओं का भोजन होता है और अग्नि देवताओं का मुख। जिस देवता के निमित हवन किया जाता है उसका आवाहन करते हुए आहुति दी जाती है। राजा को बताया गया कि आपने सामग्री को मुट्ठी मे लेकर आहुति दी जिससे सामग्री आपके नाखूनों मे भर गई। वह सामग्री भोजन करते समय दाल सब्जी के माध्यम से आपके शरीर मे चली गयी,केवल यही पाप आपने किय। जिसके लिये आपको फिरसे मृत्यु लोक मे जाना होगा।
विचार करें कि क्या उस राजा ने जानबूझ कर उस सामग्री का भक्षण किया जिसकी उसे सजा मिली। इसीलिए हमें अपने विवेक से कार्य करना चाहिए।और यदि किसी कार्य को करने से हमारी आत्मा को शान्ति मिले वही पुन्य है।यदि किसी कार्य को करने के बाद पश्चाताप हो वह पाप है।